संदर्भ: अमेरिका में फर्जी विवि में प्रवेश लेने वाले भारतीय छात्र हिरासत में
अमेरिका के फर्जी विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाले भारतीय छात्र संकट में आ गए हैं। इन छात्रों की संख्या सैंकड़ों में है। छात्रों को हिरासत में लेकर कड़ी पुछताछ की जा रही है। कई छात्रों को ह्यट्रेकिंग डिवाइसह्य भी लगाई गई हैं। उन्हें थाना क्षेत्र से बाहर नहीं जाने की हिदायत दी गई है। जबकि अमेरिकी प्रशासन को पहले यह जानने की जरूरत थी कि अमेरिका में फर्जी विवि न केवल चल रहे हैं, बल्कि विज्ञापन देकर तीसरी दुनिया के छात्रों को पढ़ने के लिए लुभा भी रहे हैं। अमेरिका के आव्रजन एवं सीमा शुल्क प्रवर्तन विभाग ने विवि से 130 छात्रों को गिरफ्तार किया है। इनमें 129 भारतीय हैं। छात्रों पर आरोप है कि ये विवि में अध्ययन के लिए पंजीकृत तो हैं, लेकिन पढ़ाई करने की बजाय ये पूरे देश में काम कर रहे थे। छात्रों को उम्मीद थी कि विवि वैध है और उन्हें कालांतर में रोजगार के लिए एफ-1 वीजा मिल जाएगा।
किंतु वे जालसाजी का शिकार हो गए। हालांकि भारत सरकार ने इन गिरफ्तारियों पर कड़ा विरोध जताते हुए दिल्ली स्थित अमेरिकी दूतावास को ह्यडिमार्शह्य जारी किया है। डिमार्श कूटनीतिक तौर पर विरोध जताने का एक तरीका है। दूतावास को लिखे पत्र में सरकार ने कहा है कि छात्रों के साथ उनसे धोखाधड़ी करने वालों की ही तरह पेश नहीं आना चाहिए। इस फर्जी विवि में छात्रों को प्रवेश दिलाने का काम अमेरिका का ही ह्यपे एंड स्टेह्य गिरोह का रहा था। हालांकि परदेश के फर्जी शिक्षा संस्थानों में घटी यह कोई पहली घटना नहीं है। अमेरिका समेत कई अन्य देशों में ऐसे अनेक संस्थान चल रहे हैं। ये आकर्शक विज्ञापन देकर युवाओं को विदेश में पढ़ने के लिए लालायित करते हैं। इस गोरखधंधे में भारतीय भी शामिल रहते हैं। इनका समय-समय पर पदार्फाश भी होता रहता है, लेकिन विराम नहीं लगता। नतीजतन अनेक छात्रों के लिए विदेशी शिक्षा ग्रहण साबित हो रही है।
इसके पहले अमेरिका के ही ट्राई वैली विश्वविद्यालय में भारतीय छात्रों के साथ वाशिंगटन में धोखाधड़ी का मामला सामने आया था। उस समय यूनिवर्सिटी आॅफ नॉर्दन वर्जीनिया में करीब 2400 छात्र पढ़ रहे थे। इनमे ंसे करीब 90 फीसदी भारत के आंध्रप्रदेश से थे। इस विवि में अमेरिकी अधिकारियों द्वारा की गई छापें मारी में बड़े स्तर पर गड़बड़ियां पाईं गई थीं। यह विवि केवल 50 विदेशी छात्रों को प्रवेश देने के लिए पात्र्रता रखता था, लेकिन इसने हजारों छात्रों को धन कमाने के लालच में भर्ती कर लिया था। वैश्वीकरण और बाजारवाद जैसी वजहों से उच्च शिक्षा के अध्ययन-अध्यापन में तेजी आई है। कई योरोपीय देशों की डूबती अर्थव्यवस्था को संवारने का आधार भी विदेशी शिक्षा बन रही है। इस कारण शिक्षा के बाजारीकरण को अमेरिका जैसा सख्त मिजाज देश भी प्रोत्साहित कर रहा है।
नतीजतन वहां लगातार फर्जी विश्वविद्यालय सामने आ रहे हैं। ये विवि बाकायदा विज्ञापन देकर विदेशी छात्रों को रिझाने का काम करते हैं। वर्शों बाद पता चलता है कि विवि फर्जी हैं। ये संस्थान उच्च शिक्षा के बहाने विदेशी मुद्रा कमाने के गोरखधंधे में लगे हैं। विदेशी शिक्षा की मृगतृश्णा ने हजारों भारतीय व एशियाई देशों के छात्रों के भविष्य पर ग्रहण तो लगाया ही, वहां की सरकार ने भारतीय छात्रों के टखनों में ट्रेकिंग डिवाइस या रेडियों कॉलर लगाकर पशुवत अमानवीय व्यवहार भी किया। कमोबेश ऐसा आचरण जंगली जानवरों पर नजर रखने के लिए किया जाता है। अमेरिकी अधिकारी इन मामलों को परदेशगमन (इमीग्रेशन) में धोखाधड़ी का मामला बताते हैं, जबकि यह छात्रों का दोष नहीं होता हैं ? यह तो सीधे-सीधे विवि का दोष है।
शिक्षा के वैश्विक बाजार में इस समय उछाल आया हुआ है, जो कई योरोपीय देशों की अर्थव्यवस्था को समृद्ध बना रहा है। विकासशील देशों के हरेक साल हजारों छात्र, अमेरिका, आस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, दक्षिण कोरिया, जापान, जर्मनी, रूस और कनाडा उच्च शिक्षा हासिल करने जाते हैं। भारत और चीन के छात्र विदेशी शिक्षा अध्ययन में सबसे ज्यादा रुचि दिखा रहे हैं। विदेश जाने वाले विद्यार्थियों में से 81 प्रतिशत छात्रों के पंसदीदा देश अमेरिका और आॅस्ट्रेलिया हैं। अंतरराष्ट्रीय शिक्षा यज्ञ में आहुति देने का प्रमुख योगदान भारत और चीन का है। 2016 के आंकड़ों का आकलन करें तो ऐसे छात्रों ने अमेरिकी अर्थव्यवस्था में 36 अरब डॉलर और आॅस्टेज्लियाई अर्थव्यवस्था में करीब 14 अरब डॉलर का योगदान किया था। मंदी के दौर में लड़खड़ाती अर्थव्यवस्थाओं को स्थिरता देने में इस विपुल धनराशि का महत्वपूर्ण योगदान है। वर्तमान में करीब 26 लाख छात्र विदेशों में पढ़ रहे हैं। इनकी संख्या में और इजाफा हो इसलिए कई नामचीन देश शिक्षा नीतियों को शिथिल तो कर ही रहे हैं, शिक्षा-वीजा को भी आसान बना रहे हैं। लिहाजा विदेश पढ़ने जाने वाले छात्रों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है।
ये मामले संस्थागत दोष के हैं। ये विवि बाकायदा विज्ञापन देकर गैरकानूनी शिक्षा व्यापार में दो दशक से भी ज्यादा समय से छात्रों को छलपूर्वक ठगने में लगे हैं। इन विश्वविद्यालयों में भूल से भी यह नहीं सोचा जा सकता कि अमेरिका जैसे देश में भी अनेक विश्वस्तरीय फर्जी विवि अस्तित्व में हो सकते हंै। विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाले छात्रों को बाकायदा विवि ने प्रतिस्पर्धा परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद दाखिला दिया था। इसी बिना पर अमेरिका दूतावास ने तय अवधि के लिए शिक्षा वीजा भी दिया था। ये वीजा जारी करने में अमेरिका जितनी सख्ती बरतता है, उतनी सख्ती वह विश्वविद्यालयों में अमेरिकी कानून व्यवस्था लागू करने में क्यों नहीं बरतता ? बीस साल से ये विवि कायम रह कर पात्रता से अधिक छात्रों को प्रवेश देते हैं। अब तक न जाने कितने छात्र इन विश्वविद्यालयों की फर्जी डिग्री हासिल कर अमेरिका समेत दुनिया के तमाम देशों में नौकरी भी पा चुके होंगे ? अब इस धोखाधड़ी के खुलासे के बाद उनके भविष्य पर खतरे के बादल मंडरा रहें होंगे ?
इन घटनाओं के लिए वह भारतीय मानसिकता भी दोषी है, जो हरहाल में विदेशी शिक्षा को सर्वश्रेष्ठ मानती है। इसी सोच व आकांक्षा का लाभ छोटे-बड़े विदेशी शिक्षा संस्थान उठा रहे हैं। विदेशों में पढ़ाई एक ऐसी होड़ बन गई है कि वहां के शिक्षा संस्थानों में प्रवेश दिलाने के दृष्टिगत भारत में कई एजेंसियां भी वजूद में आ गई हैं। ये एजेंसियां दिल्ली, मुबंई, कोलकाता, चंडीगढ़ चैन्नई, बैंग्लुरु और हैदराबाद जैसे महानगरों में छात्रों को दाखिला दिलाने से लेकर पासपोर्ट व वीजा बनाने तक का काम ठेके पर लेती हैं।
अमेरिका अथवा आॅस्ट्रेलिया में कौनसा महाविद्यालय अथवा विश्वविद्यालय फर्जी है, इसकी जानकारी इन एजेंसियों के कर्ताधतार्ओं को भी नहीं होती। लिहाजा बिचैलिये इनकी हैसियत का मूल्यांकन बढ़-चढ़कर करके विदेशों में पढ़ने वाले छात्रों की मंशा को सरलता से भुना लेते हैं। बड़े-बड़े विज्ञापन भी छात्रों को लुभाते हैं। यही नही आस्टेज्लिया में तो ऐसे संस्थान भी वजूद में हैं, जो परदेशियों को सिलाई, कढ़ाई, बाल कटाई, रसोई जैसे कार्यों से जुड़े कौशल दक्षता के पाठ भी पढ़ा रहे हैं। मोटर मैकेनिक और कंप्युटर-मोबाइल के बुनियादी प्रशिक्षण जैसे मामूली पाठ्यक्रम भी यहां विदेशी पूंजी कमाने के लाभकारी माध्यम बने हुए हैं।
हैरानी तो तब है, जब आस्ट्रेलिया और अमेरिका में भारतीय छात्रों पर लगातार जानलेवा हमलों के बाद भी ये इन देशों में पढ़ने के लिए उतावले हैं। जबकि इन्हें इन देशों में नस्लभेदी हमलों का भी शिकार होना पड़ जाता है। कई छात्र इन हमलों में जान भी गंवा चुके हैं। दरअसल भारतीयों की श्रमसाध्य कर्तव्यनिष्ठा का लोहा हरेक देश मान रहा है। लेकिन भारतीयों की यही शालीनता और समर्पित भाव की स्थिति कुछ स्थानीय चरमपंथी समूहों के लिए नागवार हालात पैदा करती रही है। नतीजतन वे इसे स्थानीय नागरिकों के मौलिक अधिकारों के हनन के रुप में देखते हैं और हिंसक बर्ताव के लिए मजबूर हो जाते हैं। बहरहाल भारतीय छात्र और उनके अभिभावकों को ही विदेशी शिक्षा के सम्मोहन से मुक्त होने की जरूरत है।
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