नई दिल्ली(एजेंसी)। इन दिनों उत्तर भारत के अनेक क्षेत्रों में स्वाइन फ्लू के मामले बढ़त पर हैं। वायरस से होने वाली यह बीमारी लापरवाही बरतने पर गंभीर रूप अख्तियार कर सकती है, लेकिन सुखद बात यह है कि इसका समय रहते कारगर इलाज संभव है। कुछ सजगताएं बरतकर स्वाइन फ्लू से बचा जा सकता है आम बोलचाल में स्वाइन फ्लू के नाम से जाना जाने वाला इंफ्लूजा एक विशेष प्रकार के वायरस इंफ्लूजा ‘ए’ एच1 एन1 के कारण फैल रहा है। यह वायरस सुअर में पाए जाने वाले कई प्रकार के वायरस में से एक है। सुअर के शरीर में इस वायरस के रहने के कारण ही इसे स्वाइन फ्लू कहते हैं। वायरस के ‘जीन्स’ में स्वाभाविक तौर पर परिवर्तन होते रहते हैं।
ऐसे फैलता है स्वाइन फ्लू
स्वाइन फ्लू का संक्रमण व्यक्ति को स्वाइन फ्लू के रोगी के संपर्क में आने पर होता है। इस रोग से प्रभावित व्यक्ति को स्पर्श करने (जैसे हाथ मिलाना), उसके छींकने, खांसने या पीड़ित व्यक्ति की वस्तुओं के संपर्क में आने से स्वाइन फ्लू से कोई व्यक्ति ग्रस्त होता है। खांसने, छींकने या आमने-सामने निकट से बातचीत करते समय रोगी से स्वाइन फ्लू के वायरस दूसरे व्यक्ति के श्वसन तंत्र (नाक, कान, मुंह, सांस मार्ग, फेफड़े) में प्रवेश कर जाते हैं। अनेक लोगों में यह संक्रमण बीमारी का रूप नहीं ले पाता या कई बार सर्दी, जुकाम और गले में खराश तक ही सीमित रहता है।
ऐसे लोग जिनका प्रतिरक्षा तंत्र (इम्यून सिस्टम) कमजोर होता है। जैसे बच्चे,वृद्ध, डायबिटीज या एच.आई.वी से ग्रस्त व्यक्ति।
- दमा और ब्रॉन्काइटिस के मरीज।
- नशा करने वाले व्यक्ति।
- कुपोषण, एनीमिया या अन्य क्रोनिक बीमारियों से प्रभावित लोग।
- गर्भवती महिलाएं इस संक्रमण की चपेट में जल्दी आती हैं। गर्भवती महिलाओं में संक्रमण के कारण मृत्यु दर तुलनात्मक रूप से अधिक होती है। ऐसी
- महिलाओं को अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत अन्य लोगों की तुलना में ज्यादा हो सकती है।
स्वाइन फ्लू के सामान्य लक्षणों के जटिल होने से रोगी को लोअर रेस्पाइरेटरी ट्रैक्ट इंफेक्शन, डीहाइड्रेशन और निमोनिया हो सकता है। ऐसी स्थितियों में रोगी की जान खतरे में पड़ सकती है। गले का खराब होना और कभी-कभी छाती में तकलीफ आदि जटिलताएं संभव हैं। इसके अलावा पुरानी गंभीर बीमारी का बिगड़ना जैसे अपर रेस्पाइरेटरी ट्रैक्ट की बीमारियां (साइनोसाइटिस आदि) और लोअर रेस्पाइरेटरी ट्रैक्ट की बीमारियां (निमोनिया, ब्रॉन्काइटिस और दमा) होने की आशंकाएं ज्यादा होती हैं। इसी तरह हृदय संबंधी कुछ बीमारियों के होने का जोखिम भी बढ़ जाता है। वहीं स्वाइन फ्लू की गंभीर स्थिति में न्यूरोलॉजिकल डिस्ऑर्डर भी उत्पन्न हो सकते हैं।
Hindi News से जुडे अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter पर फॉलो करें।