गडकरी के बयान की गंभीरता को समझें नेता

Nitin Gadkari

केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के वादे पूरे नहीं करने पर पिटाई वाले बयान पर सियासत गरमा गई है। कांग्रेस और उसकी सहयोगी पार्टी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने कहा है कि गडकरी का बयान भाजपा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विफलता के प्रति उठती आवाज को दर्शाता है। वहीं, भाजपा ने कहा है कि केंद्रीय मंत्री ने विपक्षी दल को बेनकाब किया है। गडकरी ने बीते रविवार को मुंबई में एक समारोह में कहा था कि जो नेता जनता से बड़े-बड़े वादे करते हैं, लेकिन वादे पूरे नहीं करते तो जनता उन्हें पीटती भी है। उन्होंने यहा भी कहा कि वह काम करते हैं और जनता से किए गए वादे पूरे किए हैं।

केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी का ये बयान चचार्ओं में है कि वायदे वही करो जिन्हें पूरा कर सको वरना जनता पीटेगी। गडकरी उन चंद राजनेताओं में से हैं जो काम करने के लिए जाने जाते हैं। महाराष्ट्र के लोक निर्माण मंत्री के तौर पर उनके काम की देश भर में प्रशंसा हुई थी। नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद उन्हें गंगा सफाई, सड़क, पुल, फ्लाईओवर, हाइवे और बंदरगाह बनाने जैसे काम वाला मंत्रालय दिया गया और पाँच साल पूरे होते-होते वे ही ऐसे मंत्री हैं जिनका रिपोर्ट कार्ड उन्हें 90 फीसदी अंक देता है। उनके ताजा बयान को प्रधानमंत्री पर कटाक्ष के रूप में लिया जा रहा है। राजनीति का विश्लेषण करने वालों के अनुसार गडकरी की नजर चुनाव बाद के सियासी हालात पर है।

चुनाव जीतने के बाद मानव नेता की आत्मा ही बदल जाते हैं आप जिस नेता को जिताने के लिए अपना दिन रात एक कर के उसके प्रचार-प्रसार में लगे रहते थे वही नेता आपको घास भी नहीं डालता और अपने वादों को ऐसे भूल जाता है जैसे वादे कभी किए ही नहीं थे आप नेता से मिलने का प्रयास भी करते हैं लेकिन आपको मिलने नहीं दिया जाता और गलती से आप मिल भी जाते हैं तो आप को फिर से किसी ना किसी प्रकार के झूठे आश्वासन देकर भेज दिया जाता है और यह चीज फिर अगले चुनावों में दोहराई जाती है फिर से आ तो वही नेता या कोई और नेता भी झूठी बातें वही झूठे वादे और आम जनता को बेवकूफ बना और हर बार नेता से आस लगा के रखना इस बार तो है ना लेकिन कभी आता नहीं है ना कभी होता है।

हालिया चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों के अनुसार 2019 के लोकसभा चुनाव में यद्यपि एनडीए सबसे ज्यादा सीटें जीतेगा लेकिन उसे बहुमत नहीं मिलेगा और उस सूरत में मोदी की बजाय गडकरी के नाम पर बाहरी समर्थन बटोरकर सरकार बनाई जा सकेगी। लोकसभा चुनाव के पहले दिए उनके ताजा बयान को उसके वास्तविक परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो वह एक संदेश है सभी राजनीतिक दलों के लिए जो चुनाव जीतने के लिए ऐसे-ऐसे वायदे कर देते हैं जिन्हें पूरा नहीं किया जा सकता और उसकी वजह से जनता के मन में गुस्सा तो बढ़ता ही है उससे भी ज्यादा राजनीति के बारे में अविश्वास का भाव उत्पन्न होता है।

1971 के लोकसभा चुनाव में अपनी ही पार्टी के भीतर संकट से घिरी इंदिरा जी ने जनताा के बीच जा-जाकर कहा कि मैं कहती हूं गरीबी हटाओ और विपक्षी कहते हैं इंदिरा हटाओ। देश की जनता ने उनकी बात पर भरोसा करते हुए उन्हें प्रचंड बहुमत दे दिया। लेकिन गरीबी हटना तो दूर अब तो गरीबी रेखा से नीचे वाली श्रेणी भी अस्तित्व में आ गई। यही हाल रोजगार का है। केंद्र की सत्ता में आई हर सरकार ने बेरोजगारी मिटाने का वायदा तो किया किन्तु उसे पूरा करने में विफल रही। किसानों के साथ किये गए वायदे भी हवा-हवाई होकर रह गए। आज देश में जो अविश्वास और चौतरफा असन्तोष का वातावरण है उसका सबसे बड़ा कारण चुनावी वायदे पूरे न होना ही है। आजकल किसानों के कर्ज माफ किया जाना चुनाव जीतने का नुस्खा बन गया है। लेकिन सत्ता में आने के बाद उसे पूरा करने में तरह-तरह की परेशानियां आती हैं जिससे किसानों में गुस्सा बढ़ता है।

हमारी सरकार और उनके वादे? हमारा देश एक लोकतान्त्रंरिक देश है. यहाँ सबको अपनी स्वतन्त्रता का अधिकार प्राप्त है। यहां सब लोग स्वतन्त्र हैं पर दुख इस बात का है कि हमारे देश में आज भी आधे से अधिक लोग गरीबी की रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे हैं। हमारे देश में साक्षरता भी निम्न है। बेरोजगारी भी बढ़ रही है आज दुनिया के देश विकसित हंै। और हमारा देश विकासशील ऐसा क्यों? हमारे देश मे प्रति वर्ष अनेकों किसान आत्महत्या करते हैं क्यों? इन सबका जबाब किसी के पास नहीं है? यहां तक कि जो हमारी सरकार है उनके पास भी नहीं हैं। हमारे देश में लगभग सवा अरब से भी ज्यादा जनसंख्या है और इतने बड़े लोकतन्त्र देश में हम लोग एक सही लीडर नहीं चुन सकते जो हमारे लिये बड़ी दु:ख एवं शर्म की बात है। और इसका नतीजा ये होता है कि हमारे देश की डोर गलत सरकार के हाथों में चली जाती है और जिसका परिणाम हमें ही भुगतना पड़ता है।

गडकरी जी के जिस बयान पर दो दिनों से बवाल मचा है उसके बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने सत्ता में आने के बाद हर व्यक्ति को न्यूनतम आय देने का वायदा करते हुए कह दिया कि उनके खाते में प्रति माह एक निश्चित राशि जमा कर दी जावेगी। कहा जा रहा है कि मोदी सरकार तीन दिन बाद पेश किए जाने वाले बजट में ऐसा ही प्रावधान करने वाली है। इसी के साथ किसानों के खाते में भी हर फसल के पहले तय रकम जमा करने का प्रावधान भी अपेक्षित है। गरीब लोगों को मिलने वाली विभिन्न सब्सिडी के एवज में राशि उनके बैंक खाते में जमा किये जाने की उम्मीद भी जताई जा रही है। यदि वाकई मोदी सरकार ऐसा करती है तब उसके पीछे एकमात्र उद्देश्य लोकसभा चुनाव जीतना होगा। राहुल ने मनरेगा की चर्चा करते हुए कहा कि कांग्रेस ने 100 दिन का रोजगार सुनिश्चित किया था। जैसे-जैसे चुनाव करीब आएंगे वायदों की टोकरी और भी भरती जावेगी। प्रश्न ये है कि उन्हें पूरा करने की गारंटी क्या है?

चुनावी घोषणा पत्र के माध्यम से झूठे वादे करने वाले राजनीतिक दलों के मुखियों उम्मीदवारों के खिलाफ पर्चे दर्ज किए जाने चाहिए। लोगों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ करने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए। ऐसे नेता लोग जनता से झूठे वादे करके सत्ता का सुख लेते हैं लेकिन किए हुए वादे नहीं निभाते। चुनाव आयोग को ऐसे नेताओं पर चुनाव लड़ने का प्रतिबंध लगाना चाहिए।चुनाव आयोग के साथ सर्वोच्च न्यायालय ने भी समय-समय पर चुनाव घोषणापत्र को हलफनामे के तौर पर लिए जाने की बात कही किन्तु राजनीतिक दल उसके लिए राजी नहीं हैं और आगे भी शायद ही होंगे क्योंकि उनका मकसद येन केन प्रकारेण सत्ता हासिल करना मात्र है। यदि वे ईमानदार होते तो देश में नेताओं और राजनीति के प्रति इतनी वितृष्णा नहीं होती।

उस दृष्टि से गडकरी ने वायदे पूरे न होने पर जनता द्वारा पीटे जाने संबंधी जो बात कही उसे गम्भीरता से लिया जाना चाहिए क्योंकि पीटे जाने से आशय केवल सत्ता से हटाना मात्र नहीं बल्कि उसके आगे भी सम्भव है। समय आ गया है जब चुनावी वायदे करने की गारंटी का भी प्रावधान चुनाव आयोग रखे वरना राजनेताओं की पिटाई को रोकना असम्भव हो जाएगा। आखिर सहनशक्ति की भी कोई सीमा होती है। कानून में प्रावधान है कि किसी की भावनाओं के साथ खिलवाड़ करने और धोखा करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए। हैरानीजनक है कि हर पांच वर्षों के बाद राजनीतिक पार्टियोंं के नुमाइंदे झूठे चुनावी वायदे करते हैं और लोगों से किए वादे नहीं निभाते। उन्होंने वोटरों से अपील की है कि वह ऐसे नेताओं के खिलाफ संघर्ष के लिए मैदान में आएं। गडकरी ने जो कहा उसका राजनीतिक निहितार्थ तो लोगों ने निकाल लिया लेकिन उसमें जो व्यवहारिक और सामयिक चेतावनी है उस पर किसी का ध्यान नहीं जा रहा और यही हमारी देश की सबसे बड़ी विडंबना है।

तारकेश्वर मिश्र

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