समूची वैश्विक अर्थव्यवस्था में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) को अपनाए जाने के तीन कारक रहे हैं। व्यापक स्तर पर समानांतर (Time to adopt artificial intelligence on a wider scale) अभिकलन संसाधनों की उपलब्धता, एआई की गतिविधि से सामंजस्य बिठाने वाली बेहतर कंप्यूटर प्रणाली का विकास और इंटरनेट से संबंधित प्रचुर आंकड़ों की उपलब्धता का एआई के तीव्र विकास में खास योगदान रहा है। इनके सम्मिलित असर से इमेज लेबलिंग में त्रुटि की दर 2010 के 28.5 फीसदी से घटकर महज 2.5 फीसदी पर आ चुकी है। पीडब्ल्यूसी की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2030 तक विश्व अर्थव्यवस्था में एआई का योगदान 15.7 लाख करोड़ डॉलर तक पहुंच जाएगा जो चीन एवं भारत के मौजूदा साझा आउटपुट से भी अधिक होगा। वहीं एक्सेंचर की रिपोर्ट रीवायर फॉर ग्रोथ में कहा गया है कि एआई के चलते भारत की वार्षिक वृद्धि दर में वर्ष 2035 तक 1.3 फीसदी की उछाल आ सकती है।
इसका मतलब है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में 957 अरब डॉलर की अतिरिक्त रकम आ जाएगी जो भारत के मौजूदा सकल (Time to adopt artificial intelligence on a wider scale) मूल्य संवर्द्धन का 15 फीसदी होगा। विकासशील देशों में भारत एआई का अधिकतम लाभ उठा पाने की स्थिति में है। तकनीक के मोर्चे पर हमारी मजबूत स्थिति, अनुकूल जनांकिकीय परिदृश्य और समुन्नत आंकड़ों की उपलब्धता में संरचनात्मक लाभ होने से भारत एआई के लिए कहीं बेहतर तैयार है। दरअसल वैश्विक एआई उपयोगकर्ताओं के लिए भारत के संदर्भ में आंकड़ों की विविधता एक बड़ी बाधा रही है क्योंकि एआई की मौजूदा गणना-पद्धतियों को र्इंधन देने का काम आंकड़े ही करते हैं। भारत एआई-आधारित स्टार्टअप की संख्या के मामले में वर्ष 2016 में जी-20 देशों के बीच तीसरे स्थान पर था। इस तरह के स्टार्टअप भी वैश्विक स्तर से अधिक वर्ष 2011 के बाद 86 फीसदी बढ़ गए थे।
नीति आयोग इस तरह के कई प्रोजेक्ट चला रहा है। नमओपनमाइंड डॉट आॅर्ग एक ऐसा ही प्रोजेक्ट है जो प्रशिक्षण उद्देश्यों के लिए कूटबद्ध एवं अनाम आंकड़ों के इस्तेमाल का जरूरी टूल बनाने में लगा है। इस तरह निजी आंकड़े पूरी तरह निजी बने रहेंगे लेकिन मशीनी गणना पद्धति उनसे सबक हासिल कर सकेगी। एआई को अक्सर सरकारें सुदूर भविष्य वाली तकनीक की तरह देखती हैं। पहला, आयोग इसरो और आईबीएम के साथ मिलकर फसलों की उपज बढ़ाने और मृदा स्वास्थ्य को बेहतर करने में एआई समाधान तलाशने की कोशिश कर रहा है। उपग्रहों से प्राप्त तस्वीरों और सरकार के पास उपलब्ध अन्य आंकड़ों की मदद से यह किया जा रहा है। इसके असर और सटीकता को जांचने के लिए शुरूआत में इसे देश के 25 जिलों में लागू किया जाएगा। हालांकि यूपीआई और आधार जैसे नवाचार और मोबाइल फर्स्ट उपयोग के चलते अब हमारे स बहुत सारे विशिष्ट आंकड़े भी मौजूद हैं। हमारी जरूरतें भी खास तरह की हैं। हमें निजता के संदर्भ में नया नजरिया अपनाना चाहिए ताकि कूटबद्ध बहुपक्षीय गणना जैसी मशीनी सीख को संरक्षित रखा जा सके।
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