युवाओं के समक्ष आदर्श व्यक्तित्व का अभाव

Lack Of Ideal Personality In Front Of Youth

किसी भी राष्ट्र की उन्नति एवं प्रगति का दारोमदार वहां के युवाओं पर ही निर्भर करता है क्योंकि युवाओं के अन्दर (Lack Of Ideal Personality In Front Of Youth) ही वह कूव्वत होती है जिसके दम पर वे नामुमकिन को भी मुमकिन कर सकते हैं। इतिहास गवाह है कि न सिर्फ अपने देश में बल्कि पूरे विश्व में युवा पुरातन अवधारणाओं और अवनतिकारी रीतियों को चुनौती देते हुए समाज में एक नए सकारात्मक बदलाव का परचम लहराते रहें हैं। युवाओं की अहमियत कल भी थी, आज भी है और हमेशा रहेगी, चाहे काल व परिस्थितियां कितनी भी क्यों न बदल जाएं। जिस देश में जितनी अधिक युवा आबादी होगी उसका भविष्य उतना ही उज्ज्वल होगा। यह भारत का सौभाग्य है कि यहां युवा सम्पदा भरी पड़ी है। इसी के बलबूते पर ही भारत आने वाले समय विश्व की महाशक्ति बनने का ख्वाब देख रहा है। वर्तमान समय में भारत दुनिया का सबसे युवा देश है। इसलिए इसे दुनिया भर में उम्मीद की नजरों से देखा जा रहा है। युवा आबादी देश की तरक्की को रफतार दे सकती है। जैसा की डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम जी ने कहा था कि हमारे पास युवा संसाधन के रूप में अपार सम्पदा है और यदि समाज के इस वर्ग को सशक्त बनाए जाए तो हम महाशक्ति के लक्ष्य को समय से पहले ही हासिल कर सकते हैं।

परन्तु आज के युवाओं को देखें तो अधिकांश भटकाव की स्थिति में नजर आते है। ऐसा नहीं है कि वह अपने दम (Lack Of Ideal Personality In Front Of Youth) पर तरक्की पाने को प्रयत्नशील नहीं है, इसके लिए वह जी तोड़ मेहनत भी कर रहा है। लेकिन मुश्किल यह है कि उन्हें बेहतर दिशा निर्देश और उपयुक्त मार्गदर्शन नहीं मिल पा रहा है। यह हमेशा से महत्वपूर्ण रहा है कि शक्ति के इस भण्डार को सही दिशा- निर्देश और संचालन मिले। हमेशा ही आवश्यकता पड़ी है ऐसे पथ-प्रदर्शक की, जो अच्छे मूल्यों व सिद्धान्तों का संचार कर युवाओं के जीवन को बेहतर दशा और दिशा दे सके। पुरातन काल में आदर्श व्यक्तित्व की तलाश ईश्वरीय शक्तियों , देवी-देवताओं और उनके अवतारों में की जाती थी। न सिर्फ उनकी पूजा होती थी बल्कि ग्रन्थ रूपी उनके जीवन वृतांत के संदेश और सार को जीवन में उतारने की कोशिश भी की जाती थी। मर्यादा पुरूषोत्तम राम, सोलह कलाओं से संपूर्ण कृष्ण , सती- साध्वी सीता, ईसा मसीह, गौतम बुद्ध, मोहम्मद साहब आदर्श पुरूष और महिला होने के मानक थे। फिर दौर आया शासकों में आदर्श ढ़ूढ़नें का । शुरूवात हुई राजाओं से- सत्यवादी हरिश्चंद्र , अकबर महान, न्यायप्रिय विक्रमादित्य, ज्ञान के प्रकाश से प्रबोधित अशोक आदि। इसी श्रृंखला में स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान राजनेताओं को जनता के आदर्श का दर्जा मिला।

ऐसे समय में हमारे समाज को अलग-अलग क्षेत्रों से ऐसे रोल मॉडलो की जरूरत है जो युवा पीढ़ी को सकारात्मक और बेहतर रास्ता दिखा सके । एक तरफ जो शहरी युवा वर्ग है, जो आधुनिक है ,संसाधनों तक उसकी पहुंच ज्यादा है। वह खुद को बेहतर मानव संसाधन में तब्दील करने के बेहद करीब है। जबकि दूसरी तरफ ग्रामीण तबका है जो अब तक मुख्यधारा का हिस्सा नहीं बन सका है। ऐसे में जरूरत सबको बराबरी के मौके देने की भी है । यह जिम्मेदारी सरकार की बनती है कि वह अपने युवाओं को विकास में हिस्सेदार बनाए उन्हें तरक्की के लिए बराबरी का मौका मुहैया कराए। ऐसा नहीं होने पर समाज में असंतोष बढ़ेगा और हम अपने मानव संसाधन के इस्तेमाल से जो प्रगति कर सकते हैं, उससे भी वंचित रह जाएंगे। दरअसल समाज में हर युवा को बराबरी के मौके मिलें, इस पर सरकार का ध्यान नहीं जाता । यह एक चिंतित करने वाली बात है। हमारे यहां राजनीति लोगों के जीवनस्तर को सबसे ज्यादा प्रभावित करती है। राजनीति में शामिल लोग जाति, धर्म और क्षेत्रीयता के आधार पर समाज को बांटकर अपनी राजनीतिक दुकान चलाते हैं। उनकी कोशिश हमेशा आम जनता को बरगलाने की होती है । वह सब कुछ अपने वोट बैंक को ध्यान में रखकर करते हैं।

इस लिहाज से वे समाज को बाटंने में कामयाब भी हो जाते हैं। ऐसे में युवाओं की भूमिका सबसे अहम हो जाती है। देश में 18 साल की उम्र से मतदान करने का अधिकार मिला हुआ है, युवाओं को अपने मताधिकार का प्रयोग करना चाहिए और अपने जनप्रतिनिधियों का चुनाव सोच समझकर करना चाहिए। अगर हम राजनीति में ईमानदारी और स्वच्छ छवि के लोगों को चुनेगें तो वह एक बेहतर शासन दे पायेगा । युवाओं को इस दिशा में काफी सक्रियता दिखानी होगी। हांलाकि आज की उपभोक्तावादी संस्कृति में युवाओं का ध्यान राजनीति से हट रहा है लेकिन शासन व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए उसमें युवाओं की सक्रिय भागीदारी बेहद जरूरी है। देश की प्रगति युवाओं के लिए जरूरी है, और युवाओं की तरक्की से देश प्रगति की राह पर आगे बढेगा । इस संबंध को ज्यादा मजबूत किए जाने की आवश्यकता है। देश में शिक्षा का स्तर अभी बहुत बेहतर नहीं है। नागरिक सुविधाएं भी तीसरी दुनिया की याद दिलाती हैं। गरीबी और बेरोजगारी की समस्या अपनी जगह कायम है। देश की तरक्की के लिए आने वाले दिनों में समाज भ्रष्टाचार और लेट-लतीफी को खत्म करना ही होगा और इसकी जिम्मेदारी युवा पीढ़ी पर ही है। सुनील तिवारी

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