पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि मालिक से प्यार लगाना आसान है लेकिन ओड़ निभाना बड़ा मुश्किल है। प्रत्येक इन्सान मालिक से प्यार करने के लिए कह तो देता है लेकिन जब आखिर तक ओड़ निभानी होती है तो मन और मनमते लोगों का टोला उस इन्सान को मालिक से ओड़ नहीं निभाने देते। वह उसकी राह में रुकावटें व परेशानियां खड़ी कर देते हैं। इन्सान पर मन इतना हावी हो जाती है कि वह सतगुरु, मौला जिसके लिए वो अपनी जान कुर्बान कर सकता है व जिसके लिए वह यह सोचता है कि सारी दुनिया एक तरफ और मेरा मालिक एक तरफ मनमते लोगों व मन की बातों में आकर वह एक पल में उससे मन मोड़ लेता है।
पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि मन बड़ी जालिम ताकत है और उसको मनमते लोग हवा देने के लिए तैयार बैठे हैं। जैसा कि देखा है और किया करते थे कि खेतों में आमतौर पर पड़ी लकड़ियों को जलाते व कई बार जो लकड़ी गीली होती वह जलने में काफी समय लेती। उसको जलाने के लिए मुंह से फूंक मारते और वह लकड़ी सुलगती रहती।
बार-बार फूंक मारने से कई बार आंखों में धुआं भी चला जाता लेकिन अंत में हारकर वो जल पड़ती थी। इसी तरह पहले तो इंसान को उसका मन हवा देता है लेकिन वह सुमिरन व भक्ति करता है जिस कारण सतगुरु का प्यार उसको यह करने से रोकता है। फिर मतमते लोग आ जाते हैं जिनका खुद का कोई ईमान व कोई आधार नहीं होता।
वो तो केवल बिन पैंदे के लौटे होते हैं। वो न किसी के परोपकार को मानते हैं और न ही मालिक का अहसान मानते हैं। तो वो भी उस इन्सान के कान भरना (फूंक मारना) शुरू कर देते हैं। इसलिए उस इन्सान को जो आग पहले से ही लगी होती है, उसके मन ने उसको पहले से ही भ्रम में डाला हुआ है, धीरे-धीरे उसके मन की आग को और भी बढ़ा देता है और एक दिन जीव उससे जल उठता है। फिर वह सारी जिंदगी उस आग में जलता रहता है।
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