गोरखपुर (एजेंसी)। उत्तर प्रदेश की राजनीति में अहम योगदान देने वाले अति पिछड़े क्षेत्रों में शुमार पूर्वांचल (Purvanchal UP )में विकास का पहिया रफ्तार पकड़ने लगा है तो वहीं भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की दो सहयोगी दलों के साथ रिश्तों में आयी खटास का असर आगामी लोकसभा चुनाव में पड़ने के कयास लगाये जाने लगे हैं।
वर्ष 2018 के दौरान पूर्वी उत्तर प्रदेश देश की राजनीति को नयी दिशा और धार देने की भूमिका में खडा होते नजर आया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी और गोरखपुर में गोरक्षपीठाधीश्वर महंत योगी आदित्यनाथ के हाथों में प्रदेश की बागडोर है। इसी तरह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ .आरएसएस. अयोध्या में भव्य राम मंदिर के निर्माण की मुहिम को धार देने में जुटा है।
औद्योगिक दृष्टि से अति पिछड़ा लेकिन आध्यत्मिक और राजनैतिक रूप से जागरूक माना जाने वाला पूर्वी उत्तर प्रदेश दशकों तक जिस विकास के लिए तरस रहा था। उसके द्वार गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ के उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के बाद खुले हैं। बन्द पडी विकास की परियोजनायें अब तेजी से आगे ब-सजय रही हैं। रहा है।
अब वर्ष 2019 में जब प्रवेश कर रहे हैं तो राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के दो घटक अपना दल अनुप्रिया पटेल और सुहेल राजभर के नेतृत्व वाले दल ने भाजपा से दूरी बना रही है। राजनैतिक विशेषज्ञों का यह आंकलन है कि यदि ऐसा जारी रहा तो निश्चित ही राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की सीटों पर वर्ष 2019 के आम चुनाव पर असर पड़ सकता है।
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