बेंजामिन फ्रैंकलिन का कथन है – ‘बीता हुआ समय कभी वापिस नहीं आता।’ समय का इंतजार इंसान तो कर सकता है लेकिन, समय इंसान का इंतजार नहीं करता। समय का प्रवाह अविरल है। इंसान के पास धरती पर रहने के लिए सीमित समय है। यह इंसान के विवेक और बुद्धि पर निर्भर करता है कि वो इस समय का सदुपयोग करे है या दुरुपयोग। समय मुट्ठी में बंद रेत की तरह फिसलता जाता है। दरअसल, वक्त को जाते वक्त नहीं लगता। दीगर, यह भी सच्चाई है कि हर इंसान को अपना अतीत सुहाना लगता है। बहरहाल, बातों ही बातों में एक ओर साल हमसे विदा हो रहा है और नववर्ष 2019 दस्तक दे रहा है।
किन्हीं के लिए साल 2018 जल्दी-जल्दी गुजरा होगा, तो किन्हीं के लिए विलंब से बीता होगा। जिनके लिए बुरा रहा है। उन्हें अपना यह अतीत भुलाकर आने वाले कल के बारे में सोचना होगा। क्योंकि यह नववर्ष नये उत्साह, उमंग, हर्ष, नव निर्माण व नूतन संकल्पों का पावन प्रसंग है। यह हमें बीते साल की गलतियोें व भूलों को सुधार कर जीने का एक नया अवसर प्रदान करता है। बेशक, नववर्ष खूब से कई बेहतर की तलाश करने का माध्यम है। नववर्ष अपने आलिंगन में हरेक के लिए कुछ न कुछ नयी सौगातें, सपने एवं अवसर समेटकर लाता है। जिन्हें पूरा करने का हमें इस दिन संकल्प लेना होता है। नववर्ष महज महंगी-महंगी होटलों में शराब के नाम पर बेशुमार पैसों का अपव्यय करने का दिन मात्र नहीं हैं अपितु ये तो पुराने साल का विश्लेषण व आने वाले साल के इस्तकबाल का अहम समय है। जहां इंसान को सोच-समझकर नववर्ष में अपने को बेहतर तरीके से दुनिया के समक्ष प्रस्तुत करना है। या यूं कहे तो नववर्ष सपनों व आशाओं का आशियाना है। जहां गरीब से लेकर अमीर तक नये सपने और नयी आशाओं को अपने उर में पालते हैं।
नववर्ष में आशा की जानी चाहिए कि देश से गरीबी का कीचड़ साफ हो जाएं, भ्रष्टाचार का भूत शिष्टाचारियों को सताना बंद कर दें, महंगाई डायन सरकार के काबू में आ जाएं, आतंकवादियों का हृदय परिवर्तन हो जाएं और वे आतंक का रास्ता छोड़कर आत्मसमर्पण कर दें, नेता वायदों की कबड्डी खेलना बंद करें और देश के उत्थान का संकल्प लें, युवापीढ़ी फैशन और व्यसन से हाय-तौबा करके आदर्श नागरिक बनकर देश के नव निर्माण में अपनी किंचित मात्र ही सही आहुति प्रदान करें, घरेलू हिंसा का दौर थमे, कोई फुटपाथ पर सोने को मजबूर न हों और किसी का आत्मगौरव व आत्मविश्वास शमिंर्दा न हों, सबके भुजबलों में इतनी शक्ति व सामर्थ्य जगे कि वे जीवन कि हर परिस्थिति का पूरे जोश के साथ मुकाबला कर सकें, बुजुर्गों का हर घर में सम्मान हों और बहुओं को दहेज के नाम पर नहीं जलाया जाएं। हर समस्या का समाधान हो और हर कोई जीवन के प्रति बेहद ही सकारात्मक व आशावादी दृष्टिकोण से सोचना-देखना शुरू कर दें।
जिंदगी का मतलब दुखों का घर है। यहां महज गरीब ही नहीं अमीर भी अपने-अपने दुखों से परेशान हैं। ऐसे में हालातों और जीवन की विषमता से घबराकर नहीं अपितु साहस और हिम्मत से लड़कर-भिड़कर हाथों की तकदीर और माथे के मुकद्दर को परिवर्तित करने का संकल्प लेना होगा। कुछ छ्द्म राष्ट्रवादी और कट्टरपंथी यह भी कहते और सुने जा सकते हैं कि यह नववर्ष अंग्रेजों का दिन है। इसे भारतीयों को मनाने से बचना चाहिए। हाँ, यह सच है कि यह नववर्ष अंग्रेजों का ही है। क्योंकि यह ग्रेगोरियन कैलेंडर पर आधारित है। लेकिन, यहां विरोधाभास यह भी है कि अंग्रेजों का तो हमारे पास बहुत कुछ है हम उसको त्यागने की कभी जरूरत महसूस नहीं करते। और वैसे भी इंसान को जहां कई से भी अच्छी व सच्ची बातें सीखने को मिलें उसे अपने व्यावहारिक जीवन में अंगीकार करते जाना चाहिए।
जहां एक दिन पूरी दुनिया नववर्ष को लेकर खुशियां का उत्सव मना रही हो तो वहां हमें भी पीछे नहीं रहना चाहिए। नववर्ष ऐसे समय में दस्तक देता है जहां शीतलहर व समुद्र के ठंडे होते जल के कारण कई जीव-जंतु बेमौत मर रहे होते हैं। लेकिन, इसी विषम व दुख की घड़ी से निकलकर परिस्थितियों से लड़ने का साहस बांधने के लिए विश्व के हर कोने में नववर्ष मनाया जाता है। नववर्ष को लेकर साहित्य जगत के कवियों व लेखकों ने भी नये साल को नये उत्सव के विशेषणों से सुशोभित किया है। इसी संदर्भ में हालावादी कवि हरिवंश राय बच्चन की ये पंक्तियां नववर्ष को हर किसी के समक्ष एक संदेश के रूप में प्रस्तुत करती प्रतीत होती है –
नव वर्ष, हर्ष नव, जीवन उत्कर्ष नव।
नव उमंग, नव तरंग, जीवन का नव प्रसंग।
नवल चाह, नवल राह, जीवन का नव प्रवाह।
गीत नवल, प्रीति नवल, जीवन की रीति नवल,
जीवन की नीति नवल, जीवन की जीत नवल !
अभी तो मीलों चलें हम और हमें मीलों चलना है। क्योंकि चलना ही नियति है।
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