लुधियाना में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की प्रतिमा पर कालिख पोतकर राजनीति में नई जंग छेड़ दी है। जिस तरह कालिख पोतने के आरोपी ने अकाली नेता बिकरमजीत सिंह मजीठिया की उपस्थिति में गिरफ्तारी दी, उससे ऐसा स्पष्ट होता है कि शिरोमणी अकाली दल ने दिल्ली के 1984 दंगों को मुद्दा बनाकर कांग्रेस के खिलाफ रणनीति बनाई है। दरअसल मुख्यमंत्री अमरिन्दर सिंह ने सज्जन कुमार के खिलाफ आए फैसले का स्वागत कर कांग्रेस पर गाज को गिरने से रोका था।
अकाली दल ने अमरिन्दर सिंह के बयान पर पलड़ा भारी दिखाने के उद्देश्य से प्रतिमाओं पर कालिख पोतने का नया हथकंडा अपनाना शुरू कर दिया है। पंजाब के लिए एक ओर दुखांतक व निराशजनक दौर है। धर्म के नाम पर राजनीति करने की परंपरा पंजाब में पुरानी चली आ रही है और यही राजनैतिक पार्टियों के लिए कारगर साबित होती आई है। दरअसल धर्म का संबंध भावनाओं के साथ है। लोगों की भावनाओं को भड़काकर राजनैतिक पार्टियां अपने हित साधने में कामयाब रही हैं। ऐसीं कोशिशों से राजनैतिक लाभ होना स्वभाविक है लेकिन समाज में एक ऐसी नफरत घोल दी जाती है जो लंबे समय तक अमन-शांति व भाईचारे के लिए खतरा बन जाती है।
दिल्ली में सिख हत्याकांड बेहद निंदनीय व मानवता के इतिहास का काला अध्याय है। 34 सालों के बाद पीड़ितों को न्याय मिलना भी सहज नहीं लेकिन फिर भी इस बात से संतुष्टि है कि आखिर दोषी कानून के शिकंजे में आ ही गए। न्याय मिलने में देरी का कारण राजनैतिक प्रणाली भी है। दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसले में जिस प्रकार इस मामले के भयानक चेहरे की व्याख्या की है, उससे समूह देशवासियों की हमदर्दी पीड़ित परिवारों के साथ है। न्यायालय की भाषा ने इस हत्याकांड को मानवता के खिलाफ अपराध का नाम दिया है।
नि:संदेह दिल्ली दंगे ने हर कलेजे को पसीज दिया है और मानवता के दर्द के सामने धर्म, जाति, भाषा व पार्टी शब्द सब छोटे पड़ गए हैं। कोई भी व्यक्ति राजनैतिक नेता इन दंगों का समर्थन करने की हिम्मत नहीं करता। आज समूह देशवासी अन्य दोषियों को सजा की मांग कर रहे हैं। यह काम न्यायालय का है और उसने ही दोषियों को सजा सुनानी है। सजा सुनाने का श्रेय किसी पार्टी को नहीं जा सकता यह सिर्फ और सिर्फ न्यायालय के अधिकार क्षेत्र अधीन है। राजनैतिक पार्टियों को इस मामले से अपने हित साधने से गुरेज करना चाहिए।
2019 के लोक सभा चुनावों के मद्देनजर अदालती फैसलों पर राजनीति करना सही नहीं, फिर भी यदि इस वक्त जरूरत है तो राजनेता उन पीड़ित परिवारों की सहायता करें, जिन्होंने अपने परिवारिक सदस्यों को न्याय दिलवाने के लिए अदालत में लंबी लड़ाई का दर्द बर्दाश्त किया है। यूं भी कालिख पोतना, मूर्तियों का अपमान करना किसी तरह से संस्कृतिक व बौद्धिक तौर पर सही नहीं।
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