देश में आजादी के पूर्व से लेकर आजादी के बाद आज तक कुपोषण की गंभीर समस्या विद्यमान है। ग्लोबल न्यूट्रिशन रिपोर्ट 2018 के अनुसार विश्व भर में 15 करोड़ से अधिक बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। भारत में 4 करोड़ 66 लाख बच्चे बौने व कम लंबाई के रूप में कुपोषण से ग्रस्ति हैं, यह संख्या दुनिया भर में सर्वाधिक है। इस मामले में नाइजीरिया और पड़ोसी देश पाकिस्तान 1.39 करोड़ और 1.7 करोड़ के साथ क्रमश: दूसरे व तीसरे पायदान पर है। वहीं भारत के 604 जिलों में से 239 जिलों में अविकसित बच्चों का प्रतिशत 40 फीसदी से अधिक है। दरअसल कुछ जिलों में इन बच्चों की संख्या 12.4 फीसदी तो कुछ जिलों में 65.1 फीसदी तक है। देश में लंबाई के मुकाबले कम वजन वाले बच्चों की संख्या 2.55 करोड़ हैं जो नाइजीरिया और इंडोनेशिया से भी अधिक है। रिपोर्ट के अनुसार कम वजन वाले दुनिया के आधे से अधिक बच्चे दक्षिण एशिया में रहते हैं। ऐसे बच्चों की आधी संख्या वाले तीन देशों में से दो एशिया में हैं। भारत में 4.66 करोड़ और पाकिस्तान में 1.7 करोड़ बच्चे कम वजन वाले हैं। भारत उन देशों में भी शामिल है जहां दस लाख से अधिक बच्चे मोटापे का शिकार हैं। ऐसे बच्चों की अधिक संख्या उच्च-मध्यम आय वर्ग वाले देशों और सबसे कम संख्या कम आय वर्ग वाले देशों में हैं।
भारत की जनसंख्या अधिक होने के कारण यहां कुपोषण का स्तर व्यापक है। दरअसल कुपोषण का इकलौता कारण भोज्य पदार्थों की पर्याप्त पहुंच ना हो पाना ही नहीं है बल्कि सही मायनों में आहार में पोषक तत्वों की कमी होना है। क्योंकि ये पोषक तत्व ही हमारे शरीर में ऊर्जा प्रदान करने का माध्यम है। जब आहार में प्रोटीन, काबोर्हाइड्रेट, वसा, विटामिन और खनिज जैसे पोषक तत्व पर्याप्त मात्रा में नहीं मिलते तब व्यक्ति अल्पपोषण से पीड़ित हो जाता है। परिणामस्वरूप व्यक्ति की उम्र के हिसाब से ऊंचाई और वजन कम होने लगता हैै। और जब इन पोषक तत्वों की शरीर में अधिकता हो जाती है तो अतिपोषण के रूप में व्यक्ति को मोटापा घेरने लगता है, उसे हृदय रोग, मधुमेह व कैंसर की बीमारियां का शिकार होना पड़ता है।
भारत के बच्चों में सर्वाधिक कुपोषण का कारण लड़कियों की कम उम्र में शादी होना है। देश में आज भी बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 व कानून मौजूद होने के बावजूद 47 फीसदी लड़कियों की शादी 18 वर्ष की उम्र से पहले हो जाती है। इस कारण नाबालिग लड़की की कोख से जन्म लेने वाले अधिकतर बच्चे अविकसित व कुपोषण का शिकार हो जाते हैं। इसके अलावा हमारे देश में लड़कियों से होने वाले भेदभाव के चलते उनकी सेहत पर उतना ध्यान नहीं दिया जाता जितना की लड़के की सेहत पर दिया जाता है। एक कहावत के अनुसार मां लड़के की खिचड़ी में घी ज्यादा ही डालती है। इस वजह से लड़कियों को पर्याप्त मात्रा में वे सभी पोषक तत्व मिल नहीं पाते जो उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि कर सकें। देश में कम वजन वाले कुपोषित बच्चों की संख्या अधिक वजन यानी मोटापा से ग्रस्त बच्चों की संख्या से कई गुणा अधिक है। भारत में आज भी 27 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने को विवश है। जाहिर है कि इस स्थिति में इन लोगों को पर्याप्त मात्रा में कैलोरी युक्त भोजन की प्राप्ति नहीं हो पाती है।
वहीं जन्म के समय शिशु के लिए मां का दूध उत्तम व अनिवार्य आहार होने के बाद भी देश में केवल 37.1 प्रतिशत नवजात शिशु ही मां का स्तनपान करते हैं। नवजात के लिए पौष्टिक व प्रतिरक्षा मूल्य के लिए आवश्यक मां का दूध उन्हें नहीं मिलने से वे कुपोषित हो जाते हैं। राष्ट्र के विकास और संवृद्धि पर प्रश्नचिह्न लगाने वाली यह वर्तमान रिपोर्ट इसलिए ओर भी चिंताजनक हो जाती है कि देश जहां एक ओर विश्व की बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था कहलाया जा रहा है तो दूसरी ओर देश के सरकारी गोदामों में प्रतिवर्ष लाखों क्विंटल अनाज बारिश से सड़ जाने के कारण भविष्य कहे जाने वाले बच्चों को कुपोषित होना पड़ रहा है। जहां बी.पी.एल परिवारों को शासकीय उचित मूल्य दुकानों के माध्यम से कम दर में पोषण युक्त अन्न उपलब्ध कराया जा रहा है, जहां कुपोषण से निपटने के लिए अनेकों योजनाएं और हेल्थ केयर सिस्टम चलाया जा रहा है, उस देश में बच्चे कुपोषित हैं यह कहीं ना कहीं उन नीतियों का सही क्रियान्वयन ना होना ही है।
निसंदेह देश में कुपोषण को लेकर जागरूकता की कमी है व कार्यकतार्ओं में पर्याप्त प्रशिक्षण का अभाव है। इन समस्याओं के लिए एक पहल यह हो सकती है कि हम कार्यकतार्ओं को ज्यादा से ज्यादा कुपोषित बच्चों की पहचान करने के लिए प्रोत्साहित करें, ऊष्मायन केंद्रों को अत्याधुनिक बनाएं, संसाधनों के साथ मेडिकल स्टाफ की पूर्ति करें, गरीब परिवारों को आर्थिक सहायता प्रदान करें, उन्हें अच्छी तरह से कुपोषण के प्रति एवं उसके दुष्परिणामों के प्रति जागरूक करें। इसके लिए हमारा मकसद ‘पोलियो मुक्त भारत’ की भांति ‘कुपोषण मुक्त भारत’ का होना चाहिए।
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