प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राष्टÑीय पैंशन योजना में अपनी भागीदारी 4 प्रतिशत बढ़ाकर 18 लाख कर्मचारियों को बड़ा लाभ दिया है। इसके अलावा कर्मचारियों द्वारा सेवामुक्ति के बाद अपना 60 प्रतिशत निकलवाया गया पैसा भी टैक्स मुक्त होगा। नि:संदेह कर्मचारी वर्ग को राहत की आवश्यकता थी, जो रोजाना हिसाब कर अपने घर-परिवार के खर्च चलाता है। सरकार के इस निर्णय के लोक सभा चुनावों में लाभ लेने की मंशा झलक रही है।
अपने चार सालों के कार्यकाल में एनडीए सरकार ने कर्मचारियों को कोई राहत नहीं दी। हर साल यह उम्मीद की जाती रही है कि आमदन कर का दायरा बढ़ाया जाए, लेकिन सरकार ने चतुराई से कर्मचारियों को मामूली राहत दी है। एक तरफ सरकार बजट पेश करने में लगे कर्मचारियों को नजरअंदाज करती है दूसरी तरफ पैंशन योजना संबंधी ताजा निर्णय उस वक्त पर लिया गया है जब बजट पेश करने में मुश्किल से 2 माह का समय ही बचा है।
सरकार लोक सभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए लुभावने फैसले ले रही है जिससे आगामी लोक सभा चुनाव के लिए वोट लिए जाएं। इससे पूर्व रबी की फसलों के कम-से-कम समर्थन मूल्य में भारी विस्तार कर सरकार ने अपने किसान विरोधी होने का दाग धोने का काम किया था। दरअसल सरकार को चुनाव से पहले किए वायदे जरूर पूरे करने चाहिए लेकिन हालात यह है कि सरकार वायदे पूरे करने की बजाय नई-नई घोषणाओं से वोट बैंक को सेंध लगाने की कोशिश कर रही है। सरकार का स्वामीनाथन आयोग की सिफारशों के अनुसार फसलों के भाव देने का वायदा अधूरा है।
रोजाना किसान आत्महत्याएं कर रहे हैं। कुछ राज्य सरकारें कर्ज माफी से कृषि संकट का हल निकालने की कोशिश में हैं लेकिन केंद्र सरकार द्वारा कृषि क्षेत्र को अनदेखा किया जा रहा है। सन 2015 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हुसैनीवाला (पंजाब) में शहीद भगत सिंह, राजगुरू व सुखदेव को श्रद्धांजलि समारोह के दौरान किसानों को 5000 रुपए मासिक पैंशन का ऐलान किया था। आज तीन साल बाद भी वह वायदा अधूरा पड़ा है। कितनी हैरानी की बात है कि केंद्र व राज्य सरकारों के फैसलों में कोई तालमेल ही नहीं बैठ रहा।
राज्य सरकारें कृषि के लिए दुहाई दे रही हैं लेकिन केंद्र सरकार की नीतियों में कृषि संकट कहीं नजर नहीं आ रहा। दरअसल कर्मचारियों की संख्या किसानों के मुकाबले बहुत कम है इसीलिए सरकार किसान की मांगों को स्वीकार करने के लिए सरकारी खजाने पर भारी बोझ डालना नहीं चाहती। केवल कर्मचारियों को कुछ लाभ देने से अर्थ शास्त्रीय नजरिए से देश के साथ न्याय नहीं किया जा सकता। सरकार कर्मचारियों को राहत देने के साथ-साथ प्रत्येक वर्ग का ध्यान रखे। संतुलित व वैज्ञानिक निर्णय लेने के लिए चुनाव का इन्तजार नहीं करना चाहिए। चुनाव को मुख्य रखकर लिए गए फैसले सरकार की किसी समझदारी या उपलब्धि का संकेत नहीं बल्कि इसमें सरकार की नाकामी व मौकापरस्ती झलकती है।