दिल्ली सरकार की लापरवाही को जिम्मेवार ठहराते हुए 25 करोड़ रुपए जुर्माना ठोका
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT strong decision against pollution) ने बढ़ रहे प्रदूषण के पीछे दिल्ली सरकार की लापरवाही को जिम्मेवार ठहराते हुए 25 करोड़ रुपए जुर्माना ठोका है। नई बात यह है कि जुर्माना सरकार की बजाय अधिकारियों को अपनी जेब से भरना होगा। नि:संदेह ट्रिब्यूनल की यह कार्रवाई उचित है, क्योंकि सरकारी खजाने से पैसा जा रहा था जिसकी अधिकारियों को रत्ती भर भी सिरदर्दी नहीं थी। आम तौर पर अधिकारी कानून की उल्लंघना करने वाले फैक्ट्री मालिकों के साथ मिलकर प्रदूषण फैलाने वालों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करते।
अधिकारी चाहकर भी उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं कर सकते
इससे रिश्वतखोरी का धंधा बढ-फूल रहा है। अधिकारी वेतन के अलावा कई गुणा ज्यादा पैसा रिश्वत के रूप में वसूलकर अपनी जेब भर रहे थे। इस निर्णय का मजबूत पक्ष यह है कि अधिकारियों में जवाबदेही बढ़ेगी लेकिन निर्णय का एक कमजोर पक्ष यह भी है कि जो फैक्ट्री मालिक अधिकारियों की परवाह न करते हुए सीधा राजनेताओं के साथ सांठगांठ कर लेते हैं, अधिकारी चाहकर भी उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं कर सकते, यह उन अधिकारियों के साथ अन्याय भी होगा। दरअसल एनजीटी का निर्णय अधिकारियों की लापरवाही के खिलाफ केवल सजा जुर्माने तक ही सीमित है।
राजनेता अधिकारियां के हाथ बांधकर रखते हैं
इस मामले का प्रशासनिक व्यवस्था से सबंधित पक्ष गायब है। यह सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि वे प्रशासनिक व्यवस्था को ऐसा बनाएं कि गैर-कानूनी कार्य करने वालों की राजनैतिक पहुंच खत्म हो। मंत्रियों व विधायकों की भी जिम्मेदारी तय की जाए। आम तौर पर मंत्री/ विधायक अपनी नाकामी अधिकारियों के सिर मढ़ देते हैं। एक तरफ राजनेता अधिकारियां के हाथ बांधकर रखते हैं दूसरी तरफ किसी नुकसान के लिए अधिकारियों को आगे कर देते हैं। ऐसे में यदि कोई उपलब्धि हो तो श्रेय मंत्री या सरकार को मिलता है।
बड़े-बड़े घोटालों में मंत्री बरी हो रहे हैं
देश की समस्याएं जवाबदेही व इमानदारी की कमी के कारण बढ़ रही हैं। बड़े-बड़े घोटालों में मंत्री बरी हो रहे हैं लेकिन अधिकारियों के खिलाफ चार्जशीट जरूर दायर हो जाती है। यहां प्रश्न यह उठता है कि यदि अधिकारी चालाक हैं तो फिर मंत्री किस मर्ज की दवा हैं जो भ्रष्ट अधिकारियों की निगरानी करने में नाकाम रहते हैं। मंत्रियों को पद केवल वेतन और भत्तों के लिए ही नहीं दिए जाते। एनजीटी मंत्रियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर सकता लेकिन यह तो मुख्यमंत्री ने देखना है कि उसके मंत्री सरकार की नीतियों के अनुसार काम कर भी रहे हैं या नहीं।
एनजीटी का अधिकारियों के खिलाफ सख्ती का निर्णय सही
एनजीटी का अधिकारियों के खिलाफ सख्ती का निर्णय सही है, लेकिन बीमारी की जड़ को हाथ डालने के लिए सरकारों को अपनी व्यवस्था में भी सुधार करना होगा। ‘राइट टू रीकाल’ की चर्चा भी हमारे देश में चल चुकी है लेकिन यह काम सरकारों ने करना है। अपने ही मंत्रियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए कौन बहादुरी दिखाता है? कौन नियम बनाता है? भ्रष्टाचार या राजनीति में बढ़ रहे अपराधीकरण को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट ही फैसले सुना रही है। राजनेता भी अपनी आत्मा की आवाज सुनें और कानून कायदों को लागू करने की जिम्मेदारी निभाएं।
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