भले ही उत्तर प्रदेश सरकार राज्य में अपराधों के कम करने का दावा करती है लेकिन ताजा घटना ने यह साबित कर दिया है कि हिंसक तत्वों को नियंत्रण करने में पुलिस अभी भी नाकाम है। शामेली क्षेत्र में कुछ लोगों ने पुलिस की वैन में एक व्यक्ति को उतारकर उसकी पीट-पीटकर हत्या कर दी। पहले तो पुलिस इस घटना से मुकर ही गई फिर पुलिस कर्मियों को निलंबित कर उनके खिलाफ विभागीय जांच भी शुरू कर दी। यह तो सोशल मीडिया का कमाल है जहां एक वीडियो वायरल होने से पुलिस का झूठ सामने आ गया।
यह मामला भीड़ द्वारा की गई मारपीट का है। उत्तर प्रदेश में पहले भी ऐसी घटनाएं घट चुकी हैं और सुप्रीम कोर्ट भी इस मामले में केंद्र सरकार को लताड़ लगा चुकी है, लेकिन सुधार होता दिख नहीं रहा। कई राज्यों में भीड़ इतनी तेजी से हिंसा भड़काती है कि पुलिस बल बिल्कुल नाकाम नजर आते है। अब तो हद ही हो गई जब भीड़ ने व्यक्ति को पुलिस के हाथों से छीनकर उसकी हत्या कर दी।
दरअसल पुलिस प्रबंधों को चुस्त-दरुस्त बनाने की राजनीतिक इच्छा शक्ति ही नजर नहीं आ रही। पुलिस को आधुनिक सुविधाओं से लैस करना तो दूर अभी तक पुलिस में कर्मचारियों की गिनती की समस्या ही हल नहीं हुई। उत्तर प्रदेश पुलिस में एक लाख से अधिक पद खाली हैं। पुलिस कर्मियों की गिनती पूरी नहीं हो रही और न ही कर्मचारियों को आराम देने के लिए कोई कानून पास किया गया है। विभिन्न राज्यों में पुलिस में सप्ताहिक छुट्टी रखने की चर्चा तो होती रहती है लेकिन बात पूरी नहीं होती।
अब मध्य प्रदेश में कांग्रेस पार्टी ने अपने चुनावी मैनीफेस्टो में पुलिस कर्मियों को सप्ताहिक छुट्टी देने का वायदा किया है। हैरानी इस बात की है कि पुलिस विभाग को इतना ज्यादा अनदेखा किया गया कि सप्ताह में एक छुट्टी को चुनाव का मुद्दा बनाना पड़ रहा है। पुलिस आंतरिक सुरक्षा व कानून प्रबंधों के लिए जिम्मेदार होती है। पुलिस प्रबंध की खामियां बहुत समय पहले हल हो जानी चाहिए थी, यह भी कड़वी सच्चाई है कि राजनेताओं ने पुलिस को केवल मंत्रियों के दौरे पर रैलियों को सफल बनाने का स्त्रोत बना लिया है।
आम लोगों की सुरक्षा को पुलिस की जिम्मेदारी नहीं समझा जाता। पुलिस प्रबंधों में राजनीतिक दखलअंदाजी ने इसकी स्थापना के उद्देश्य को कमजोर कर दिया है। अपराधों की रोकथाम के लिए केवल भाषणों या आंकड़ों का खेल काफी नहीं बल्कि पूरी वचनबद्धता से काम करने की आवश्यकता है। यह समझना होगा कि एक-एक नागरिक की जान कीमती है और हजारों हत्याएं हो जाने पर भी अपराधों की कमी के दावे करना कोई खुश होने वाली बात नहीं। पुलिस प्रबंधों को चुस्त-दुरस्त करने के साथ-साथ पुलिस में राजनीतिक दखलअन्दाजी बंद करने से ही अपराध कम हो सकते हैं।
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