कृषि के लिए संतुलित नीतियों की आवश्यकता

Balanced, Policies, Agriculture

पंजाब में धान का उत्पादन कम रहने की रिपोर्टें सरकार की कृषि नीतियों पर सवाल खड़े कर रही है। इस वर्ष राज्य सरकार ने 20 जून से पहले धान की बिजाई न करने की अधिसूचना जारी की थी, जिसका किसानों ने विरोध किया। किसानों की शंकाए आज सच साबित हो रही हैं। किसानों का तर्क था कि धान की बिजाई 20 जून से शुरू करने से केवल पांच-सात दिन में बिजाई मुकम्मल नहीं हो सकती। धान की बिजाई वाली मशीनें फेल होने के कारण व बाहरी राज्यों से प्रवासी मजदूरों की संख्या कम होने के कारण पंजाब-हरियाणा में मजदूरों का टोटा पड़ गया है। साथ ही धान की बिजाई देरी से हुई। दूसरी तरफ यदि इस बार गेहूँ की बिजाई पिछड़ गई तब अगले साल धान की बिजाई की तारीख को लेकर सरकार व किसानों में फिर टकराव हो सकता है। दरअसल कृषि संबंधी नीतियां बनाते समय संतुलित सोच से काम नहीं लिया जाता।

सरकारी अधिकारियों की बैठक में भू-जल का मामला हावी हो जाता है, जो धान की लेट बिजाई को इसका एकमात्र हल मान लेते हैं और दूसरे पहलुओं पर कोई चर्चा नहीं हो पाती। अभी पंजाब प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड ने 25 जून से पूर्व धान न लगाने की पेशकश सरकार के समक्ष रखी थी, जिसे सरकार ने मंजूर नहीं किया। यदि ऐसा हो जाता तब उत्पादन 30 प्रतिशत तक गिर सकता था। धान की कटाई के वक्त पराली न जलाने पर जोर दिया जाता है और अधिकारी गेहूँ की बिजाई भूल जाते हैं।

इससे गेहूँ की बिजाई में देरी होगी, जिसका गेहूँ के उत्पादन पर प्रभाव पड़ेगा। भले ही राज्य सरकारों का 20 जून से पूर्व धान की बिजाई न करने के पीछे तर्क गिरता भू-जल स्तर है, लेकिन एक समस्या का हल कई और समस्याओं को भी जन्म देता है। सरकार की पराली न जलाने की मुहिम भी देरी से बिजाई के कारण सफल नहीं हो रही। किसान गेहूँ की बिजाई में कुछ दिन बचे होने के कारण पराली को खेत में न जलाने के लिए मजबूर हैं। यदि गेहूँ की बिजाई के लिए कुछ दिन और मौसम साथ दे तब पराली की समस्या भी कुछ हद तक हल हो सकती है।

दरअसल कृषि संबंधी संतुलित नीतियों की कमी ही कृषि संकट का मुख्य कारण है। केवल दफ्तरों में बैठकर नीतियां बनाने पर सरकारी आदेशों को जैसे-तैसे लागू करने की की विचारधारा को छोड़कर कृषि, वातारवण व देश हित के लिए संतुलित नीति बनाने की आवश्यकता है। किसानों संबंधी नीतियों में कृषि से जुड़े हालात किसान से अधिक कोई नहीं जानता। कम-से-कम कृषि नीति को तैयार करते वक्त किसान नेताओं की राय को अवश्य ध्यान में रखना चाहिए।

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