हाल ही में सोशल मीडिया पर झूठी खबर फैलाने पर फेसबुक के सीईओ मार्क जुकरबर्ग ने अमेरिकी कांग्रेस को बताया कि इस मामले मे उनकी कंपनी बेहद गंभीरता से काम कर रही है। दरअसल, फेसबुक व व्हाट्स एप जैसे सॉफ्टवेयर आने से जहां एक ओर इनकी सकारात्मकता बढ़ी है वहीं दूसरी ओर इन सॉफ्टवेयरों को कुछ लोगों नें नकारात्मकता में घेर लिया।
हालांकि यह बात स्वयं पर निर्भर करती है कि आप किसी भी बात या चीज से क्या लाभ ले सकते हैं। पिछले कुछ समय से झूठी खबरों का प्रचलन इस कदर चल पड़ा है कि लोग उस पर विश्वास करते हुए सही समझने लगे व अमल करने लगे।
यदि हम केवल इस घटना को हिंदुस्तान जैसे देश के परिवेश मे देखें तो इसके दुष्परिणाम लगातार सामने आ रहे हैं। कुछ शरारती तत्व या गंदी राजनीती करने वाले लोग देश मे नकारात्मक लहर चलाने के लिए झूठी खबरों का सर्जन करते हैं जिस पर मूर्ख के साथ अब समझदार व पढ़े लिखे लोग भी इसकी चपेट मे आ रहे हैं।
यदि आपको ज्ञात हो कि कुछ पहले दिनों दो लड़को की फोटो वायरल हुई थी और उन्हें व्हाट्स एप पर चोर कहकर फैला दिया जिससे एक जगह उन्हें किसी ने पहचान लिया व भीड़ ने उनको बिना जांच पड़ताल के शक के आधार पर ही जान से मार दिया था । मामले की जांच हुई तो पता चला कि वह निर्दोंष थे। मान लिजिए वह दोषी भी थे तो उन्हें जान से मारना तो कोई सजा नहीं हो सकती थी। आप कानून के हवाले भी कर सकते थे। ऐसी घटनाओं से मॉब लिंचिंग भी बढ़ रही है। इस तरह के कई सजीव उदाहरण हैं। कुछ लोग तो इतिहास के साथ छेड़छाड भी करके उस बात को सोशल मीडिया पर ऐसे ट्रेंड करवा देते हैं जैसे वो घटना सत्य हो लेकिन उस से ज्यादा दुख तब होता है जब लोग बिना जांच किए उस बात को शेयर या फॉरवर्ड कर देते हैं। इससे सबसे बड़ा नुकसान तब होता है जब जनता इसे सच मान लेती है व उनकी जानकारी गल़त होने के कारण दुनिया में एक अलग तरह की भ्रमकता फैल रही है। यदि हम सोशल साइट का सदुपयोग करें तो यह मानव जीवन को अग्रसर करने वाली क्रांति हैं क्योंकि आज की पीढ़ी को हमे यह समझाना चाहिए अब से दो दशक पहले इतनी तकनीकियां नहीं थी। कुछ वर्षों पहले लोग चिठ्ठी का इंतजार करते थे और लोगों को आपस को देखे हुए भी सालों बीत जाते थे लेकिन अब तुरंत वीडियो कॉलिंग करके एक दूसरे को देखकर बात कर सकते हैं व फोटों भी दे सकते हैं। लेकिन देश में ही नही ऐसे गलत व घटिया मानसिकता के लोग पूरे दुनिया मे भ्रम फैलाने का काम कर रहे हैं।
जिन सॉफ्टवेयरों खासतौर फेसबुक से हमें हमारी दुनिया के वो लोग मिलें है जो हमसे छुट चुके थे या यूं कहें कि उनसे मिलने की हर तरह की उम्मीद खो चुके थे लेकिन कहते हैं न गंगाजल से भरी पूरी बाल्टी को दूषित करने के लिए एक बूंद गंदे पानी की काफी है वैसी ही तर्ज पर कुछ लोग काम कर रहे हैं। पूरे विश्व में सबसे ज्यादा फेक अकाउंट भारत देश मे बनाए जा रहे हैं इसकी प्रमाणिकता एक मजबूत कारण यह भी जो खबर या पोस्ट बेहद संवेदनशील होती है वो किसी सही व्यक्ति नाम से अकाउंट नही मिलती। हमारे देश में आपस मे बांटने से लेकर गलत खबरों या मैसेज से जनता को बड़े स्तर भ्रमित किया जा रहा है। अब दरअसल हमें यह भी जानना चाहिए कि खबर की सच्चाई की कैसे जांच हो? इसके लिए फेसबुक,ट्विटर व गूगल पर कुछ शब्दों के जरिये फिल्टर लगाया जाता है। सॉफ्टवेयर किसी भी पोस्ट में किसी भी प्रकार का प्रतिबंधित शब्द देखेगा तो उसे स्पैम मान लेगा। जो इस तरह की पोस्ट करता है या तो उसको वह झूठे व गलत शब्दों को हटाने को कहेगा या डिलीट कर देगा। इस प्रक्रिया में कुछ शब्द ही नहीं पूरे सेनटेंस की ही जांच होगी जो बेहद अच्छी तकनीकी मानी जाती है। फेसबुक के सीईओ जुकरबर्ग जिस टेक्नोलॉजी के दम पर यह दावा कर रहे हैं, उसका नाम है आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस यानी कृत्रिम बुद्धिमत्ता है। आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस से युक्त मशीनें कुछ मानकों के आधार पर खुद फैसला लेती है। आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का इस्तेमाल मेडिकल से लेकर हथियार बनाने तक हर क्षेत्र में किया जाने लगा है। इसी के इस्तेमाल से फेसबुक पर झूठी खबरों पर लगाम की तैयारी है। फेसबुक की टीम ऐसा सॉफ्टवेयर तैयार कर रही है जो खबरों की विश्वसनीयता को जांचने में सक्षम होगा। इस सॉफ्टवेयर से अश्लीलता व नफरत फैलाने वाली पोस्टों को हटाया जा सकेगा। यह सॉफ्टवेयर उस खबर के माध्यम या स्रोत की जांच व पुष्टि करेगा। अर्थात किसी नई व बिना प्रमाणिकता वाली वेबसाइट से यदि कोई ऐसे न्यूज पोस्ट होती है जिसमे संदिग्ध या शब्द या वाक्य हैं तो सॉफ्टवेयर अन्य तमाम प्रचलित व प्रमाणिकता वाली वेबसाइट, माध्यम और डाटाबेस से उसकी पुष्टि करेगा। यदि पुष्टि नही हो पाई तो उस खबर या मैसेज को झूठा मानकर तुंरत डिलीट कर देगा। बहराहल अब देखना यह है कि ये प्रक्रिया कितनी कारगर सिद्ध होती है क्योंकि जितनी सरलता से मार्क जुकरबर्ग इसकी हुंकार भर रहे हैं वो उतनी आसान नहीं हैं लेकिन फिर भी आंकलन के आधार यही कह सकते हैं कि यदि यह कदम पूर्णत कामयाब हुआ तो दोबारा से एक नई व सकारात्मक दुनिया का निर्माण होगा। क्योंकि सोशल मीडिया पर गलत व झूठ फैलाने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है।
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