इंटरव्यू: जावेद अख्तर
जावेद अख्तर साहब का अब परिचय देना खुद में बेमानी सा लगता है। कला क्षेत्र के प्रत्येक विधाओं में उन्होंने जिस तरह से छाप छोड़ी है वहां तक पहुंचना किसी के लिए सपना मात्र होता है। कवि, हिंदी फिल्मों के मशहूर गीतकार, पटकथा लेखक, डायलॉग राइटर, सामाजिक कार्यकर्ता के अलावा भी कई ऐसी खूबियां इस प्रचंड शख्सियत में व्याप्त हैं जिसे लोग कम ही जानते हैं। राजनीति के क्षेत्र में भी विगत सालों से सक्रिय हैं। जावेद अख्तर साहब को पिछले दिनों दिल्ली सरकार की ओर से शलाका सम्मान से नवाजा गया। इस मौके पर रमेश ठाकुर ने उनसे बातचीत की। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश।
पिछले कुछ समय से आपकी सक्रियता सार्वजनिक मंचों पर ज्यादा देखी जा रही है, कुछ खास वजह?
शख्सियत बड़ी हो या छोटी। उसकी निमार्ता जनमानस होती है। मुल्क की आवाम ने मुझे जो प्यार-सम्मान दिया है, बस उसी को ध्यान में रखकर उनकी बेहतरी के लिए हर संभव कुछ अच्छा करने का प्रयास करता हूं। वैसे अब चाहत किसी चीज की नहीं हैं खुदा ने उम्मीद से ज्यादा दे रखा है। सार्वजनिक मंचों पर जाने के संबंध में मैं आपको बस इतना ही कह सकता हूं। ये मंच ही इंसान को बुनियादी एहसासों से रूबरू कराते हैं। क्योंकि पूरा जीवन तो हमारा रंगमंच से ही जुड़ा रहा है। जिस कारण इन मंचों से हमारी दूरी रही। खास जीवन के इतर अब आम जीवन जीने में मजा आ रहा है। विगत कुछ सालों से मुझे एहसास भी हुआ है कि सामाजिक जीवन जीने का आनंद ही कुछ और है।
दिल्ली सरकार ने इस वर्ष आपको शलाका पुरस्कार से नवाजा है, लेकिन मंच पर बोलने नहीं दिया, ऐसा क्यों?
दरअसल कुछ गलतफहमियों के कारण ऐसा हुआ। मेरा सम्मान करने के तुरंत बाद किसी दूसरे का नाम बोल दिया गया। मैं हक्का-बक्का रह गया। कुछ क्ष़्ाण मंच पर रूका भी, लेकिन किसी ने माइक पर बोलने को नहीं कहा। थोड़ा गुस्सा भी आया, जिस कारण मैं मंच छोड़कर बाहर निकल आया। तभी पीछे से कई लोग भागकर मेरे पास आए। और बोलने लगे कि सर कुछ गलतियों के कारण आपको बोलने के लिए आमंत्रित नहीं किया गया। खैर, बाद में मैं दोबारा से मंच पर गया और अपने विचार रखे। सम्मान के लिए मैं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया को धन्यवाद देना चाहूंगा। उनके उज्जवल भविष्य की मैं कामना करता हूं।
दिल्ली सरकार, केंद्र सरकार और उप-राज्यपाल के बीच टकराव को आप कैसे देखते हैं?
देखिए मैं कोई राजनैतिक बयान देकर बखेड़ा खड़ा नहीं करना चाहता। लेकिन मुझे लगता इन सभी के बीच कुछ तालमेल की कमी दिखती है। इसमें कोई दो राय नहीं कि अरविंद केजरीवाल अपने स्तर पर दिल्ली के लिए अच्छा न कर रहे हों। हां, वह अलग बात है उनकी केंद्र सरकार से पटरी न खा रही हो। लेकिन जनता की भलाई के लिए दोनों सरकारों को मधरु संबंध स्थापित कर आपसी तालमेल में मिठास घोलने की दरकार है। अरविंद केजरीवाल पर दिल्ली की जनता के अलावा दूसरे राज्यों की आवाम को भी बहुत भरोसा और उम्मीदें हैं। मैं उम्मीद करूंगा कि वह उनकी आकांक्षाओं पर खरा उतरेंगे। दिल्ली को लेकर उनका काम कैसा है इसकी समीक्षा आप पत्रकार लोग करोगे।
सदन में आने के बाद आपकी कलात्मक क्षेत्रों से कुछ दूरी बनी है?
किस क्षेत्र को कितना और कब समय देना है, उसको मैं ठीक से मैंनेज कर लेता हूं। बेटा फरहान अख्तर भी कुछ ऐसे ही सवाल अक्सर करता रहता है। देखिए, ये आपकी उर्जा पर निर्भर करता है कि आप कितना वर्क उठा सकते हो। सदन के जरिए मुझे अपने पूरे मुल्क की समस्याओं पर बोलने का मौका मिला था। जिसे मैंने स्वभाग्य समझा। संसद में देश की जनता का प्रतिनिधित्व बनकर आवाज उठाना सभी का सपना होता है। मैं एहसानमंद हूं कला क्षेत्र का जिसके जरिए मुझे ये मौका मिला। रही बात कला क्षेत्र से दूरी बनाने की, वो नहीं हो सकता। यही वो क्षेत्र है जिसने मुझे जावेद अख्तर बनाया। जिंदगी के आखिरी लम्हों तक पटकथा लेखन से जुड़ा रहूंगा। इसके बिना जिंदगी अधूरी सी लगती है।
फिल्मों की पटकथा का स्वरूप अब पहले से काफी जुदा है, आपको असहजता तो नहीं होती?
मैं बूढा हो गया हूं इसलिए ये सवाल कर रहे हो न! देखिए, आज की फिल्मों में आधुनिकता का तड़गा लग चुका है। जो लेखन हम पहले करते थे उसी को मिक्स किया जा रहा है। लगान, तेजाब, 1942 लव स्टोरी और बॉर्डर जैसी सुपरहिट फिल्मों के लिए लिखे गीतों को लोग आज भी गुनगुनाते हैं। इन गीत लेखनों के चलते मुझे कई फिल्मफेयर पुरस्कार, राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और पद्म भूषण भी मिला। इसके अलावा पुराने जमाने की सीता और गीता, जंजीर, दीवार और शोले की कहानी, पटकथा और संवाद में मेरी और सलीम की जोड़ी को लोग आज भी पसंद करते हैं। देखिए, हर चीज का एक दौर और समय होता है। जैसे प्रकृति का नियम बदलाव है तो उसी के साथ हम सबों को भी ढलते रहना चाहिए।
बेटी जोया और बेटा फरहान भी आपसे टिप्स लेते होंगे?
बच्चों के लिए पिता बरगद के पेड़ की तरह होते हैं। बिना उनकी छाया के भला वह कैसे महरूम रहेंगे। भाग मिल्खा भाग में फरहान ने महीनों जिस कठिनाई से परिश्रम किया था उसके पीछे मैं भी खड़ा था। फरहान बिना पापा के कोई बड़ा फैसला आज भी नहीं करता। उसके हर निर्णय में मेरी परस्पर भूमिका रहती है। एक पिता अपने औलाद को आगे बढ़ाने के लिए जो किरदार निभाता है मैं भी वही करता हूं। बाकि आज उसने जो नाम कमाया है उसे देखकर और सुनकर अच्छा लगता है। फरहान मुख्यता: फिल्म निमार्ता, निर्देशक्, अभिनेता और गायक हैं। जोया भी निर्देशक के रूप में अच्छा कर रही हैं। हालांकि बच्चे अब मुझे ज्यादा काम करने की इजाजत नहीं देते।
लेखक: रमेश ठाकुर
Hindi News से जुडे अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter पर फॉलो।