आदिवासी जननायक बिरसा मुंडा की धरती रांची से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आयुष्मान भारत के नाम से जिस आरोग्य योजना को शुरू किया है, वह निश्चय ही दुनिया की सबसे बड़ी योजना है। 50 करोड़ लोगों को पांच लाख तक का स्वास्थ्य बीमा देने वाली यह दुनिया की अपनी तरह की सबसे बड़ी योजना है। यह एक महत्वाकांक्षी एवं अनूठी योजना है, अनूठी इसलिये है कि दुनिया का कोई देश ऐसा नहीं है, जहां करोड़ों लोगों को पांच लाख रु. तक का इलाज हर साल मुफ्त में कराने की सुविधा मिले। आर्थिक सहायता देने के साथ-साथ इस योजना के अन्तर्गत आपके घर के पास ही उत्तम इलाज की सुविधा देने का प्रयास किया जा रहा है, इसके लिये देशभर में डेढ़ लाख वैलनेस सैंटर तैयार करने का सरकार का लक्ष्य है। इस योजना का फायदा लेने के लिए आधार कार्ड अनिवार्य नहीं है। आधार कार्ड एक विकल्प के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है, सरकार ने इसे अनिवार्य नहीं किया है। लेकिन असली सवाल यह है कि यह लोक-कल्याणकारी योजना कई अन्य अभियानों की तरह सिर्फ नारेबाजी बनकर न रह जाए। प्रश्न यह भी है कि क्या भारत में 50 करोड़ लोगों के इलाज के लिए पर्याप्त डॉक्टर और अस्पताल हैं? क्या बीमा राशि पांच लाख में कैंसर जैसी खर्चीली बीमारियों का भी ईलाज संभव है? प्रश्न यह भी है कि यह योजना कोरी राजनीति लाभ का जरिया बनती है या धरातल पर भी वास्तविक रूप में साकार होती है? हम स्वर्ग को जमीन पर नहीं उतार सकते, पर बुराइयों से तो लड़ अवश्य सकते हैं, यह लोकभावना जागे, तभी भारत आयुष्मान बनेगा।
आयुष्मान भारत के लिये 2011 के सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना में गरीब के तौर पर चिह्नित किए गए सभी लोगों को पात्र माना गया है। मतलब अगर कोई शख्स 2011 के बाद गरीब हुआ है, तो वह कवर से वंचित हो जाएगा। बीमा कवर के लिए उम्र, परिवार के आकार को लेकर कोई बंदिश नहीं है। एनएचए ने 14,000 आरोग्य मित्रों को अस्पतालों में तैनात किया है। इनके पास मरीजों की पहचान सत्यापित करने और उन्हें इलाज में मदद करने का काम है। पूछताछ और समाधान के लिए भी मरीज इन लोगों से संपर्क कर सकेंगे।
29 राज्यों-केंद्र शासित प्रदेशों के 445 जिले के लोगों को योजना का लाभ मिलेगा। हैरानी की बात तो यह है कि दिल्ली, केरल, ओडिशा, पंजाब और तेलंगाना इस योजना को अपने यहां लागू नहीं कर रहे हैं। पश्चिम बंगाल ने भी अभी तक इस योजना पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं। इन राज्यों ने कहा है कि इससे मिलती-जुलती योजना उनके राज्य में पहले से ही चल रही है। कुछ का कहना है कि यह योजना एक सफेद हाथी है। कुछ का मानना है कि वे इससे बेहतर योजना खुद के भरोसे चला सकते हैं। समझ में नहीं आता कि भारत के गैर-भाजपाई राज्यों ने इसे स्वीकार क्यों नहीं किया। यदि यह अभियान सफल हो जाए याने देश में शिक्षा और स्वास्थ्य ठीक हो जाए तो भारत को महाशक्ति बनने से कौन रोक सकता है? साफ दिख रहा है कि इस योजना को लेकर जिस तरह की स्थितियां देखने को मिल रही हैं, उसका कारण राजनीतिक है। लेकिन एक अच्छी एवं जनोपयोगी योजना को इसलिये नहीं स्वीकारना कि वह भाजपा सरकार की योजना है, संभवत: जनता के हितों को नकारने के बराबर है। जनता की भलाई को राजनीतिक नजरिये से देखना दुर्भाग्यपूर्ण एवं विडम्बनापूर्ण है।
सचाई यह है कि अगर यह योजना वास्तविक रूप में आकार लेती है तो इससे देश के स्वास्थ्य के सम्मुख खड़ी चुनौतियां कम होगीं, देश का स्वास्थ्य सुधरेगा। ऐसी योजनाएं केन्द्र सरकार लागू करती है तो वे किसी पार्टी की योजना न होकर देश के कल्याण की योजना होती है। मोदी सरकार ने निश्चित ही गरीबी के कारण इलाज नहीं करा पाने वाली या बीमारी के कारण गरीब बनने वाले लोगों के जख्मों पर मरहम लगाने का काम किया है। उनकी इस आयुष्मान भारत योजना का लक्ष्य खासकर निम्न और निम्न मध्यम वर्ग के परिवारों को महंगे मेडिकल बिल से निजात दिलाना है। इस योजना के दायरे में गरीब, वंचित ग्रामीण परिवार और शहरी श्रमिकों की पेशेवर श्रेणियों को रखा गया है। नवीनतम सामाजिक आर्थिक जातीय जनगणना (एसईसीसी) के हिसाब से गांवों के ऐसे 8.03 करोड़ और शहरों के 2.33 परिवारों को शामिल किया गया है। अनुमान के मुताबकि इस योजना के तहत अब देश के करीब 10 हजार अस्पतालों में ढाई लाख से ज्यादा बेड गरीबों के लिए रिजर्व हो जाएंगे।
योजना जितनी लुभावनी है उतनी ही उसके सम्मुख चुनौतियां भी हैं। अब जबकि देश में स्वास्थ्य सेवाओं का बूरा हाल है, बिना रिश्वत के मरीजों की देखभाल नहीं होती, हमारे अस्पताल गांवों से इतने दूर हैं कि ग्रामीण मरीजों के पास उन अस्पतालों और डॉक्टरों तक पहुंचने के लिए ही पैसे नहीं होते। पंचसितारा नुमा अस्पतालों में इलाज गरीबों के लिये संभव नहीं है। ऐसी विषम एवं त्रासद स्थितियों के बीच सरकार ने गरीबों, वंचितों एवं अभावग्रस्तों को लाभ पहुंचाने वाली कोई योजना शुरू की है तो उसके विरोध का औचित्य समझ से बाहर है। योजना को लेकर कोई दुविधा या गतिरोध है तो बातचीत से उसे सुलझाना चाहिए। सरकार को इस योजना से जुड़ी बाधाओं को सबसे पहले दूर करना चाहिए। सबसे पहले देश के हर जिले में बड़े-बड़े अस्पताल खोलने चाहिए और हर डॉक्टरी पास करनेवाले छात्र को अनिवार्य रूप से गांवों के अस्पतालों में सेवा के लिए भेजना चाहिए। कहीं ऐसा न हो कि दुनिया की यह सबसे बड़ी लोक-कल्याणकारी योजना भारत में सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार का जरिया बन जाए। डॉक्टरी के धंधे में जितनी ठगी होती है, किसी और धंधे में नहीं होती। अत: सरकार को गैर-सरकारी डॉक्टरों और अस्पतालों को कड़े नियंत्रण में रखना होगा।
भारत में मध्यम वर्ग एवं गरीबी रेखा वाली पृष्ठभूमि के मरीजों की स्थितियां गंभीर एवं असाध्य बनी हुई है, जिनके सम्मुख कैंसर, डायलिसिस, समयपूर्व शिशु देखभाल जैसे दीर्घकालिक उपचारों के लिए आर्थिक संसाधनों का अभाव है। स्वास्थ्य बीमा की यह राशि मुद्रास्फीति को देखते हुए स्वास्थ्य की देखभाल पर आनेवाली लागत से काफी अधिक होगी। यह घोषित बीमा राशि इसलिए भी चुनौतीपूर्ण है कि इस राशि में कई निजी अस्पताल अपनी परिचालन लागत भी नहीं निकाल पायेंगे। अत: वे अपनी सेवाएं सफलतापूर्वक प्रदत्त करने में असमर्थ होंगे। भले ही आपके पास राष्ट्रीय बीमा योजना होगी फिर भी लोग वास्तव में महत्वपूर्ण बीमारियों के मामलों में बीमाकृत होने के बावजूद उसकी अपर्याप्त बीमाकृत राशि के कारण इलाज नहीं करा पायेंगे। भारत का निजी हेल्थकेयर खर्च सालाना 90 अरब डॉलर है। इनमें से केवल एक तिहाई बीमा द्वारा कवर किया गया है, और 60 अरब डॉलर शेष राशि मित्रों और परिवार के भरोसे पर ही निर्भर है। जिसके लिए 10 प्रतिशत यानी 6 अरब डॉलर का योगदान मेडिकल क्राउडफंडिंग मार्केट के द्वारा उपलब्ध हो सकता है। देश के स्वास्थ्य एवं आयुष्मान भारत के लिये इम्पैक्ट गुरु डॉट कॉम की सेवाओं को लेने में भी क्या हर्ज है? सरकार की एक अच्छी योजना को लागू करने में आने वाली बाधाओं को दूर करने के लिये सभी को सहयोगी बनना चाहिए, न कि विरोधी। बहुत सारे लोग जितनी मेहनत से नर्क में जीते हैं, उससे आधे में वे स्वर्ग में जी सकते हैं। यही आयुष्मान भारत योजना का लक्ष्य है, यही है मोदी का प्रयास और यही है भाजपा सरकार का प्रयोजन।
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