पंजाब में ब्लाक समिति व जिला परिषद चुनावों में कांग्रेस ने अकाली-भाजपा के 10 सालों के रिकॉर्ड को तोड़ दिया है। पंचायती चुनावों में मौजूदा सरकार का दबदबा व वोटर की बदलाव पसंद मानिसकता की अहम भूमिका होती है। जिस प्रकार की धक्केशाही अकाली-भाजपा सरकार के कार्याकाल में हुई उससे भी अधिक कांग्रेस सरकार में हुई। राज्य में कोई भी सत्तापक्ष पार्टी उपचुनाव, लोक सभा चुनाव या पंचायती चुनावों में जीत को अपना अधिकार समझने लगी है। धक्केशाही का अंत नहीं दिखता।
यदि कल को राज्य में किसी अन्य पार्टी की सरकार सत्ता में आती है तब धक्केशाही और भी बढ़ सकती है। यह बिल्कुल उसी तरह है जैसे एक राजनेता को उसके वर्करों ने जानकारी दी कि विरोधी पार्टी ने सुबह 11 बजे बूथ पर कब्जा कर लिया तो नेता कहने लगा ‘घबराओ ना, अपनी सरकार आने पर सुबह 9 बजे ही कब्जा कर लूँगा’। अब अकाली दल यह वायदा नहीं कर रहा कि वह अपनी सरकार आने पर धक्केशाही वाला माहौल नहीं पैदा होने देगा, बल्कि समय आने पर सबक सिखाने व र्इंट का जवाब पत्थर से देने वाली सोच काम कर रही है। एक उम्मीदवार के विजेता घोषित किए जाने पर दोबारा गिनती करवाने का सीधा सा मतलब उसकी जीत की जिद्द को दर्शाता है। इस बार की धक्केशाही बहुत घातक रही।
जहां तक चुनाव में कांग्रेस व अकाली दल में मुकाबले का सवाल है, अकाली दल ने अपनी खिसक रही जमीन को संभाला है और असल अर्थों में विपक्ष व अन्य दूसरी बड़ी पार्टी की भूमिका निभाई है। पंंजाब का वोटर लहर को छोड़कर पारंपरिक पार्टी के साथ जुड़ा हुआ है। विधानसभा में दूसरी बड़ी पार्टी आम आदमी पार्टी हंसी का पात्र बन गई है। चार लोक सभा सदस्यों व 20 विधायकों वाली इस पार्टी ने कांग्रेस को टक्कर नहीं दी। चुनाव में विभिन्न पार्टियों की सरगर्मियां इस बात का पुख्ता संकेत हैं कि लोक सभा चुनाव में मुकाबला अकाली-भाजपा व कांग्रेस के बीच होने के आसार हैं। सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि पंचायती चुनाव कांग्रेस व अकाली दल के राजनीतिक मुकाबले का मैदान साबित हुआ। विभिन्न मोर्चों पर बुरी तरह से संकट में घिरे लाचार, बीमार पंजाब के लिए दर्द, इन चुनावों में कहीं भी महसूस नहीं किया जा सका।
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