गरीबी एक प्रमुख वैश्विक समस्या है जिससे अधिकतम देश जूझ रहे हैं। साधारण शब्दों में अगर कहें तो गरीबी का मतलब है गरीबी रेखा से नीचे जीवन जीना । किसी भी स्वतंत्र देश के लिए गरीबी एक बहुत ही शर्मनाक स्तिथि है। संयुक्त राष्ट्र संघ के मानव विकास सूचकांक 2011 के अनुसार ‘रिपब्लिक आॅफ कांगो’ विश्व का सबसे गरीब देश है। अगर हम भारत के परिपेक्ष्य में हम गरीबी को देखें तो पाएंगे की ब्रिटिश औपनिवेशिक काल से ही गरीबी हमारे देश की सबसे बड़ी समस्या है। 19वीं सदी के उत्तरार्ध और 20वीं सदी की शुरूआत में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान भारत में गरीबी तेज हो गई थी।
1920 में भारत में गरीबी अपने चरम पे थी इस दौरान लाखों लोगों की मौत अकाल से हुई।1947 में आजादी के बाद अपनी समुचित नीतियों के कारण भारत सरकार ने इन अकालों को खत्म किया। भारत सरकार की 2012 की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत की 22 प्रतिशत जनता गरीबी रेखा के नीचे है। संयुक्त राष्ट्र के मिलेनियम डेवेलपमेंट गोल (एमडीजी) कार्यक्रम के अनुसार 2011-12 के दौरान भारत की 22.1 प्रतिशत जनता गरीबी से त्रस्त है।
अगर हम सरकार द्वारा गरीबी उन्मूलन के विभिन्न प्रयासों को देखें तो पाएंगे की गरीबी खत्म करने के लिए सभी सरकारों ने अपने स्तर से कार्यक्रम चलाये हैं और उनसे गरीबी खत्म करने में मदद भी मिली है। गरीबी में रिकॉर्ड गिरावट के मुख्य कारणों में से एक है। 1991 से भारत की तेजी से आर्थिक विकास दर और उद्योगों का उदारीकरण जिससे लोगों को रोजगार मिला और गरीबी में गिरावट आई। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) और सरकारी स्कूलों में मिड डे मील योजना जैसे सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों के भी सफल कार्यान्वयन से गरीबी खत्म करने में मदद मिली है। 2012 के एक रिपोर्ट से पता चला है की मनरेगा से ग्रामीण गरीबी को कम करने में मदद मिली है लेकिन मनरेगा से समग्र गरीबी खत्म नहीं की जा सकती है।
अगर हम जातिगत आधार पे गरीबी के आकड़ों को देखें तो पाएंगे की अनुसूचित जाती में 65.8 % लोग , अनुसूचित जनजाति में 81.4 % लोग , पिछड़े वर्ग में 58.3 % लोग और सवर्णों में 33.3 % लोग गरीब हैं। अगर हम भारत में गरीबी के घटते आंकड़ों पे नजर डालें तो पाएंगे की ब्रिटिशों के प्रस्थान के समय भारत में गरीबी दर 70 प्रतिशत थी लेकिन एक नए रिपोर्ट के अनुसार अब भारत की गरीबी दर 22 प्रतिशत तक घटी है। एक ताजा सरकारी रिपोर्ट से ये पता चला है की भारत में प्रति मिनट 44 लोग गरीबी रेखा से बाहर आ रहे हैं यानी प्रति मिनट 44 लोग कम गरीब हो रहे हैं।
हालांकि अगर हम भारत के परिपेक्ष्य में गरीबी के मुख्य कारणों को देखें तो पाएंगे की भारत में गरीबी का सबसे बड़ा कारण जनसंख्या विस्फोट है, हालांकि बेरोजगारी भी गरीबी का एक मुख्य कारण है लेकिन बेरोजगारी और जनसंख्या का चोली दामन का साथ है। जब तक हम जनसंख्या की वृद्धि दर कम नहीं करेंगे तब तक ना हमें पूर्ण रूप से गरीबी से निजात मिलेगी ना ही बेरोजगारी से। देश में गरीबी खत्म करने के लिए गरीबों की ताकत को बढ़ाना होगा। यह ताकत सिर्फ दो रुपए किलो अनाज देने से नहीं आएगी, बल्कि उन्हें कानूनी संरक्षण देने और योजनाओं के क्रियान्वयन में उनकी वास्तविक भागीदारी कायम करने से ही बढ़ेगी।
गरीबी से निजात पाने में एक बहुत ही महत्वपूर्ण बाधा भ्रष्टाचार भी है । सच तो ये है की केंद्र सरकार या राज्य सरकार द्वारा गरीबी उन्मूलन हेतु चलायी गयी लोक कल्याणकारी योजनाओं को बिचौलिए धरातल पर नहीं उतरने देते हैं। वे गरीबों के हक का अधिकार छीन कर दूसरे लोगों को देते हैं जिनको ये जरुरत नहीं है। इन भ्रष्टाचारों में सरकारी अधिकारियों का भी हाथ रहता है। वे भी इन बिचौलियों के साथ मिले रहते हैं ।बालश्रम भी गरीबी का मुख्य कारण है. देश में एक दो नहीं, लाखों बच्चे ऐसे हैं जो उचित व्यवस्था के अभाव में मानसिक शारीरिक शोषण का शिकार हो रहे हैं।
ऐसा नहीं है कि देश में बाल अधिकारों के रक्षा से जुड़े कानून नहीं है लेकिन वे बाल अधिकारों को सुरक्षा नहीं दे पा रहे हैं। हमें सच्चाई को समझना होगा कि गरीबी के कारण बालश्रम नहीं बढ़ता, बल्कि बालश्रम के कारण गरीबी बढ़ती है। आज जरुरत इस बात की है कि बुनियादी ढांचे को इस प्रकार बनाया जाए किसी क्षेत्र में रहने वाले लोगों को इस तरह के व्यवसायों में काम करने के लिए प्रोत्साहित किया जाए जिसके लिए जरूरी संसाधन आस-पास के इलाके में ही उपलब्ध हों। सरकार को किसी भौगोलिक क्षेत्र के प्राकृतिक संसाधनों की पड़ताल करने के पश्चात प्राथमिक उद्योगों में निम्न आय वर्ग के लोगों को नियोजित करना शुरू कर देना चाहिए।
प्रणीत कुमार
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