जब से अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप राष्टÑपति बने हैं तब से अमेरिकी नीतियां अमेरिकी संरक्षणवाद की तरफ तेजी से बढ़ रही हैं। पहले-पहले यह संरक्षणवाद राजनीतिक व कूटनीतिक मोर्चों तक सीमित था। जैसे सात मुस्लिम देशों के नागरिकों का अमेरिका में प्रवेश बंद करना, फिर मेक्सिकों की तरफ दीवार बनाना, अमेरिका में घुसने वाले लोगों से सख्ती से निपटना उसके अगले चरण में अमेरिका ने विदेशों को जा रही उसकी फौजी सहायता में कटौती की, उससे भी आगे जाकर अमेरिका दुनिया भर में की गई पर्यावरण, सामाजिक संबंध, वित्तीय संबंधों की संधियों से मुकरने लगा। इसके आगे उसने विदेशियों के अमेरिका में काम करने को लेकर बेहद ज्यादा सख्ती शुरू कर दी।
नतीजा भारत सहित एशियाई देशों के तकनीकी, वित्तीय, कंपनी पेशेवारों को झटका लगा। अमेरिका ने अपनी आयात कर दरों में भी भारी परिवर्तन कर दिए ताकि उसके यहां विदेशों से आ रहे माल की कीमतें बढ़ जाएं व उनकी मांग कम हो। यह सब इतनी तेजी से हो रहा है कि इससे दुनिया में तेजी से विकास कर रही विकासशील देशों की अर्थव्यवस्थाओं मेंं भारी हलचल होने लगी है। चूंकि उनके नागरिक रोजगार से वंचित हो रहे हैं। स्थानीय आतंकी समस्याओं से उन्हें निपटने में अब ज्यादा खर्च सहना पड़ रहा है और उनके यहां से जो माल अमेरिका को जा रहा था उसकी मांग गिर रही है।
किसी वक्त में पूरी दुनिया को एक बाजार बनाने की राह पर चला अमेरिका अब सिर्फ अपनी फिक्र में है। यह सब इसीलिए नहीं हो रहा कि अमेरिका को कोई बहुत ज्यादा नुक्सान हो रहा है या उसकी अर्थव्यवस्था लड़खड़ा गई है। यह सब अंध राष्टÑवाद के चलते ही रही है। अमेरिकी अंधराष्टÑवाद इतना डरपोक हो गया है कि वह किसी देश का विकास होते देख सहज नहीं रह पा रहा। चीन, भारत, ब्राजील, रूस ये अर्थव्यवस्थाएं तेजी से बढ़ रही हैं।
इससे दुनिया की पुरानी मजबूत अर्थव्यवस्थाएं छोटी पड़ने लगी हंै जिसमें अमेरिका के साथ ब्रिटेन, कनाडा, आस्ट्रेलिया, फ्रांस इत्यादि देश हैं। किसी वक्त गरीब कही जाने वाली अर्थव्यवस्थाओं का राह रोकने के लिए अमेरिका ने संरक्षणवाद का नया युग शुरू कर लिया है जिसमें अपना देश, अपने कामगार, अपना बाजार, अपना धन ही सर्वोपरि है। भारत को इससे सीख लेनी चाहिए। भारत को चाहिए कि वह अपने देश लौट रहे अपने कामगारों व पेशेवरों को तेजी से नियोजित करे उन्हें काम का पूरा वातावरण दे ताकि देश की बढ़ रही अर्थव्यवस्था को और ज्यादा गति मिल सके ताकि भारत अमेरिका के नव संरक्षणवाद के प्रभावों से अछूटता रहे।
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