रुपये की महिमा बड़ी न्यारी है। कहावतें भी बड़ी बनी है रुपये पर तो, बाप बड़ा ना भैया यहां सबसे बड़ा रुपिया और भी न जाने क्या-क्या। लेकिन जब रुपैय्या ही गिरना शुरू हो जाए तो भगवान ही रखवाला है। ऐसे में रुपैया डॉलर के मुकाबले आज तक के सबसे निचले स्तर पर 70.7 पर पहुंच गया। सरकारें कोई भी रहीं हो इस सारे खेल में तेल जरूर निकला है, किसी और का नहीं बल्कि आम आदमी का, विपक्ष में होने की रस्म अदायगी करती अलग-अलग पार्टियाँ लेकिन सरकार में आते ही हाव भाव ही बदल जाते हैं बिल्कुल रंग बदलने वाले किसी गिरगिट की तरह। पिछले 4 साल से पहले के वक्त में लौटकर देखता हूँ तब पैट्रोल-डीजल की कीमतों पर हाय तौबा मची हुई थी।
उस समय के पीएम मनमोहन सिंह को तब की विपक्ष और अब की सत्ताधारी पार्टी ने जाने क्या-क्या कहा था लेकिन लोगों ने सरकार बदल दी और ऐसी बदली की राजीव गाँधी की सरकार के बाद से अब तक सबसे ज्यादा सीटें भाजपा को जीतवा भी दी लेकिन समय बदलने के बाद आज कच्चे तेल की कीमतें तब के मुकाबले बेहद कम हैं लेकिन पेट्रोल डीजल के बढ़े दाम आम आदमी की जेब पर डाका डालने का काम कर रहे हैं। अब बात करते हैं गैरों पर करम की। एक आरटीआई में खुलासा हुआ है कि भारत 15 देशों को 34 रुपए लीटर पैट्रोल व 29 देशों को 37 रुपए लीटर डीजल बेच रहा है। जबकि देश मे पैट्रोल कई जगह 86 रुपये के आसपास पहुंच चुका है।
बस शतक से जरा सा ही दूर तो है। पिछले समय को याद करके कुछ बयान याद आते हैं। ये राजनेता भी गिरगिट की तरह रंग बदलते हैं। तब के बयान वर्तमान में विदेश मंत्री व तब विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज बड़ी मुखर हो आवाज उठाती थी। तब सुषमा स्वराज ने कहा था कि जैसे-जैसे रूपया गिरता है। अब तब के भाजपा के पीएम पद के उम्मीदवार और वर्तमान पीएम ने पेट्रोल डीजल की बढ़ी कीमतों पर दिए थे। पैट्रोल के बड़े दाम दिल्ली में बैठी सरकार की नाकामयाबी का प्रतीक है। दिल्ली में बैठी सरकार और रुपये में होड़ लगी है कौन कितना गिरेगा। अब ना पीएम साहब को सरकार की नाकामयाबी की ही चिंता है और न ही उन्हें अब आम आदमी नजर आता है।
साल 2012 में मई और सितम्बर के महीने में बीजेपी ने पेट्रोल और डीजल के दामों को लेकर भारत बंद किया था। 23 मई 2012 में उस समय के गुजरात के मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी ने ट्वीट किया था कि पेट्रोल की कीमत में भारी वृद्धि कांग्रेस नेतृत्व वाली सरकार की विफलता का एक प्रमुख उदाहरण है। इससे गुजरात पर कई सौ करोड़ का बोझ पड़ जाएगा। नाकामयाबी तो है लेकिन क्या सरकारें बदलने के साथ नेताओं के विचार भी बदल जाते हैं या हमारी यादाश्त ही इतनी कमजोर है कि नेता आसानी से कुछ भी चिपका जाते हैं। अब तेल कंपनियां अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड आॅइल के बढ़ते दामों का हवाला देकर पेट्रोल के दाम बढ़ाए हैं, लेकिन पिछले महीने जब क्रूड आॅइल के दाम निचले स्तर पर थे तब इन कंपनियों ने जमकर चांदी काटी।
उस समय इन कंपनियों को पेट्रोल के दाम कम करने का ख्याल क्यों नहीं आया? नेताओं को समाजसेवी होने पर भी मोटा वेतन, सुख-सुविधाएँ, कई तरह के भत्ते और भी न जाने क्या-क्या मिलता है लेकिन इन नेताओं को शिखर तक पहुंचाने वाली जनता हर बार की तरह पिसती नजर आती है। खैर यह उस वक़्त भाजपा नेताओं के बयान है। जब भाजपा विपक्ष में थी। खैर अब तो अच्छे दिन हैं। इस लिए गिरता रुपया राष्ट्रभक्ति की श्रेणी में माना जायेगा। सोशल मीडिया पर लोगों का इससे अच्छा खासा टाइम पास हो जाता है। पैट्रोल-डीजल के बढ़े दामों तले दबता आम आदमी कुछ करने की स्थिति में नजर नहीं आता।
पेट्रोल-डीजल लम्बे समय से राजनैतिक पार्टियों के लिए खींच-तान और राजनैतिक प्रोपगेंडा बना है लेकिन इन दामों को भुगता आम जनता ने ही है। सरकार चाहे कोई भी रही हो। सबने अपने हिसाब से पैट्रोल-डीजल के दामों में बढ़ोतरी की। अब आम आदमी के पास इतना समय तो है नहीं की वो पेट्रोल-डीजल की बढ़ी कीमतों के खिलाफ विरोध दर्ज कराए। आम आदमी को पता है कि अगर वो ऐसा करेगा तो उसका जीवन नहीं चल पाएगा इसलिए राजनैतिक पार्टियों के भरोसे ही आमजन ने शांति और विरोध छोड़ रखा है। शाम होते ही जिसे ही आम आदमी अपने सुकून के लिए टीवी यानि बुद्धू बक्से को आॅन करता है तो सुकून मिलना तो दूर न्यूज उसे बिल्कुल अशांत कर देती है।
तेल में लगी आग, महंगाई का बम ऊपर से टीवी स्टूडियो में बैठे एक्सपर्ट मानो एक-दूसरे को खा ही जाएंगे। बेचारा सुकून का मारा आम आदमी, टीवी बन्द करके सोना चाहता है तो घर की समस्याएं उसे खाने को आती हैं। समस्याएं तो खाएंगी ही भला आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपया हो तो किसे चलेगा। किसी से पूछ लो और क्या चल रहा है। सामने वाला मुंह पर साढ़े 6 बजाकर बोलता है बस कट रहे हैं दिन। ऐसी स्थिति हो चली है हर ओर तनाव का माहौल, न वो हंसी न मुस्कुराहट। भाई हंसना सीख लो। ये सब देश से कभी नहीं खत्म होने वाला। जिंदगी तो चलानी ही है चाहे हँसकर या रोकर।
प्रदीप दलाल