तेलंगाना के मुख्यमंत्री कृष्ण चंद्र राव ने विधानसभा को भंग करवाकर समय से पहले चुनाव का रास्ता साफ कर लिया है। सरासर यह कृष्ण चंद्र का सत्ता लोभ है, जिससे राज्य में ना चाहते हुए वक्त से पहले चुनाव करवाने होंगे। अभी राज्य सरकार का छह माह से अधिक का कार्यकाल पड़ा था, जिससे राज्य के बहुत से अधूरे कार्य पूरे हो सकते थे। उक्त घटनाक्रम राजनेताओं के सत्ता लोभ के साथ-साथ उनके कुटिल होने का प्रमाण है, जिन्हें जनता व सरकारी खजाने से कोई मतलब नहीं। कृष्ण चंद्र राव व उनके सलाहकारों ने हर हाल में सत्ता में कायम रहने के लिए समय से पहले चुनाव करवाने का यह खेल उस वक्त खेला है जब देश भर में लोक सभा व विधान सभा चुनाव इकट्ठे करवाने की चर्चा चल रही है।
भले ही इस पर सहमति नहीं बन सकी, फिर भी जिन राज्यों के चुनाव लोक सभा के बिल्कुल नजदीक थे वह एक ही समय करवाए जा सकते हैं लेकिन कृष्ण राव ने सत्ता मोह दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी बल्कि यह साबित कर दिया है कि उनके लिए सत्ता से बढ़कर कुछ नहीं। राज्य में न तो सरकार अस्थिर थी और न ही कोई ऐसा मौका था, जिससे निपटने में सरकार असफल थी। दरअसल कृष्ण राव के सलाहकारों ने उन्हें यह बात भी सुझाई होगी कि लोक सभा चुनावों में राष्ट्रीय मुद्दे स्थानीय मुद्दों पर भारी पड़ सकते हैं, इसीलिए वह अपनी, सरकार की उपलब्धियों को लोकसभा के शोर में दब जाने से बचाना चाहते हैं तो चुनाव अभी करवा लें। भले ही कृष्ण चंद्र नई इलैक्शन इंजीनियरिंग के अंतर्गत काम कर रहे हैं, लेकिन सत्ता लोभ में संविधान की व्यवस्था को तोड़-मरोड़ना राज्य की जनता से अन्याय है। एक व्यक्ति की इच्छा देश की राजनीतिक संवैधानिक व्यवस्था को खराब कर रही है।
यदि सभी राज्यों में ऐसा होता है तब यह संवैधानिक संकट बन जाएगा। ऐसा अक्सर होता आया है जब सत्ता-पक्ष को अपनी पार्टी की लोकप्रियता ग्राफ गिरता नजर आता है तब वह जनआक्रोश से बचने के लिए समय से पहले चुनाव करवाने का पैंतरा खेलती है। तेलंगाना मामले में सत्तापक्ष विधानसभा भंग करने के पीछे कोई भी तर्क दे, लेकिन यह अगले पांच वर्ष तक सत्ता में बने रहने का प्रयास है। तेलंगाना में भाजपा अभी मजबूत नहीं है, कांग्रेस को सत्ता से बेदखल हुए काफी वक्त हो गया है, मैदान खाली है। यूं भी कृष्ण चन्द्र राव ने राज्य पुर्नगठन का यहां न केवल श्रेय लिया है बल्कि उनकी सरकार पहली सरकार है, अत: अपने कार्यकाल में उन्होंने जो भी किया है इससे लोग गद्गद् हैं। हालांकि केसी राव अगर नियत समय पर चुनाव करवाते वह तब भी जीतते परंतु वह अभी मध्यप्रदेश, राजस्थान चुनावों के साथ भाजपा की सत्ता विरोधी लहर पर सवार होना चाह रहे हैं। जिसमें किस्मत उनका साथ भी दे रही है। परन्तु अच्छा हो यदि अपने स्वार्थों की खातिर संवैधानिक मर्यादाएं न तोड़ें।
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