Flight And Possibilities Of Biofuels
भारतीय विमानन इतिहास में पहली जैव र्इंधन के इस्तेमाल से देहरादून के जॉलीग्राण्ट एयरपोर्ट से दिल्ली तक विमान उड़ाने में भारत ने जो शानदार कामयाबी हासिल की है वह स्वच्छ ऊर्जा के विकास की दिशा में बेहद सार्थक और प्रशंसनीय कदम है। पेट्रोलियम मंत्रालय, भारतीय पेट्रोलियम संस्थान (देहरादून), तेल कम्पनियाँ, भारतीय प्रद्योगिकी संस्थान (कानपुर), विज्ञान एवं प्रद्योगिकी विभाग और वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद जैसे कई संस्थानों के सहयोग और समन्वय ने जैव ईंधन के क्षेत्र में मिशाल कायम की है।
मनुष्य तकनीक के मामले में सभ्यता की शुरूआत से ही विकासशील रहा है और नित नये-नये आश्चर्यजनक खोज एवं अनुसंधान होते रहे है। सर्वविदित है कि विकास में सबसे बड़ा सहायक ऊर्जा होता है और ऊर्जा के सीमित विकल्प ने मनुष्य को नए विकल्प के तरफ नजर दौड़ाना लाजिमी है। जैव ईंधन का प्रयोग स्वच्छ ऊर्जा के मामले में भारत की बहुत बड़ी उपलब्धि है। ऐसे में एक आम नागरिक को यह समझना जरूरी हो जाता है कि यह जैव ईंधन वास्तव में है क्या? धरती के गर्भ में दबे जीवाश्मों से जो ईंधन प्राप्त होता है,मसलन,पेट्रोल, डीजल इत्यादि को जीवाश्म ईंधन कहते है। इस ईंधन को प्राकृतिक रूप से बनने में सदियाँ लग जाती है।
यदि इसी प्रक्रिया को वैज्ञानिक तरीके से कुछ दिनों या घंटो में संपन्न कर लिया जाता है तो इस तरह से प्राप्त ईंधन को जैव ईंधन कहते है। वास्तव में जैव ईंधन हाल के पौधों या पदार्थों से बने होते है, जो बायो एथेनॉल, बायोडीजल,बायो सीएनजी के रूप में उपयोग में लाये जाते है। जीवाश्मों को जैव ईंधन में उष्मीय विधि, रासायनिक विधि और जैव रासायनिक विधि को अपनाकर बदला जाता है। यह पर्यावरण के अनुकूल है और कई मामलों में यह ऊर्जा का काफी अच्छा स्रोत माना जा रहा है। जैव ईंधन के स्रोतों में एथेनॉल का उत्पादन गन्ना,मक्का,गेहूँ, चावल, आलू, सब्जी। बायोडीजल का उत्पादन जेट्रोफा, सोयाबीन, कैमेलिना का फूल, सब्जी तेल इत्यादि असंख्य स्रोत है।
Flight And Possibilities Of Biofuels
जैव ईंधन की अवधारणा उतनी ही पुरानी है जितनी कार की, अर्थात 20वीं शताब्दी की शुरूआत में जब हेनरी फोर्ड ने कार का अविष्कार किया था तो उसे एथेनॉल से चलाने की भी योजना थी। लेकिन सुलभ और सस्ता पेट्रोलियम ईंधन के सामने जैव ईंधन लोकप्रिय नही बन पायी। वर्तमान समय में कई शोध आये हैं, जिसमें कुछ ही दशकों में पेट्रोलियम पदार्थ के समाप्त होने की आशंका जताई गई है। साथ ही पर्यावरणीय दुष्प्रभाव,महँगी होती कीमत ने भी पेट्रोलियम पदार्थों के विकल्प तलाशने को मजबूर कर दिया है। पूरी दुनिया में खोज और अनुसंधान जारी है। वैज्ञानिक दिन-रात कार्यरत है। संयुक्त राष्ट्र संगठन, अंतरास्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी और खाद्य एवं कृषि संगठन ने भी जैव ईंधन को बढ़ावा देने का प्रयास किया है।
भारत सरकार द्वारा 2003 में ‘एथनॉल मिश्रित पेट्रोल कार्यक्रम’ शुरू किया गया था,जिसका उद्देश्य पेट्रोल के साथ एथनॉल को मिश्रित करना है,ताकि इसे जैव ईंधन की श्रेणी में लाया जा सके और ईंधन आयात में कटौती करके लाखों डॉलर विदेशी मुद्रा बचाया जा सके। साथ ही कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देने में महवपूर्ण भूमिका निभा सकता है। वर्तमान में इस कार्यक्रम के तहत पेट्रोल में 10 प्रतिशत एथनॉल मिलाने की इजाजत है जिसे बढाकर 20 प्रतिशत किये जाने की योजना है। यदि हम ब्राजील जैसे देश की बात करे तो वहाँ यह अनुपात 80 प्रतिशत एथनॉल और 20 प्रतिशत पेट्रोल का है।
Flight And Possibilities Of Biofuels
पेट्रोलियम ईंधन की तुलना में जैव ईंधन कम प्रदुषण फैलाता है। वर्तमान में तेल विपणन कंपनियां करीब 10,000 करोड़ रुपये के निवेश से बारह दूसरी पीढ़ी की जैव ईंधन रिफाइनरियां स्थापित करने की प्रक्रिया में है। साथ ही देश में 2जी जैव रिफाइनरियों से ग्रामीण क्षेत्रों में आधारभूत संरचना में निवेश के लिए प्रोत्साहित किया जा सकेगा। इससे रोजगार के नए अवसर विकसित होंगे।
जैव ईंधन, भारत के सन्दर्भ में सामरिक महत्व भी रखता है। इसे बढ़ावा देने से मेक इन इंडिया, कौशल विकास, स्वच्छ भारत अभियान जैसे कार्यक्रम को बढ़ावा मिलेगा। भुगतान संतुलन से निपटने के लिए या भविष्य में यदि कच्चे तेल संपन्न देश भारत को निर्यात बंद कर दे तो उस स्थिति से निपटने के लिए जैव ईंधन किसी वरदान से कम नही है। हमारी धरती पर जैव ईंधन के असंख्य स्रोत मौजूद हैं जिनपर लगातार काम चल रहा है। जरूरी है कि हमारे पास देशी संसाधन उपलब्ध हो एवं ऊर्जा के क्षेत्र में हम आत्मनिर्भर हो। यदि निकट भविष्य में पेट्रोल और डीजल पर निर्भर देश की कुल ऊर्जा जरूरत में से पचास प्रतिशत हिस्सा जैव र्इंधन का उपयोग होने लगे तो यह ऊर्जा क्षेत्र में बड़ी क्रांति होगी। लेकिन यह भी ध्यान रखने की जरुरत है कि यह सतही तौर पर जितनी आसान लग रही है। रजनीश भगत
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