बाढ़ग्रस्त केरल में राहत और बचाव कार्य के लिए संयुक्त अरब अमीरात से वित्तीय सहायता लेने के लिए भारत सरकार द्वारा इंकार करने से एक राजनीतिक विवाद पैदा हो गया है। यह मुद्दा एक कानूनी और संवैधानिक मुद्दा भी बन गया है क्योंकि केरल के एक पूर्व मुख्यमंत्री उच्चतम न्यायालय में पहुंच गए हैं। संकट के समय भी विदेशी सहायता केवल मानवीय सहायता नहीं रह जाती है अपितु यह दानदाता और ग्राहक के बीच एक जटिल संबंध है। केरल के मुख्यमंत्री ने कहा है कि संयुक्त अरब अमीरात ने केरल में पुनर्वास कार्यों के लिए 700 करोड़ रूपए की वित्तीय सहायता देने की पेशकश की है। यह राशि भारत सरकार द्वारा दी गयी 100 करोड़ की आरंभिक राशि से कहीं अधिक है।
भारत सरकार ने किसी तरह की विदेशी सहायता लेने से इंकार किया है हालांकि राज्य में भारी नुकसान हुआ है और सरकार ने कहा है कि वह राहत और पुनर्निर्माण कार्यों के लिए घरेलू स्रोतों पर निर्भर रहेगी जैसा कि 2004 में निर्णय लिया गया था किंतु इस संबंध में कोई स्पष्ट नीति नहीं है। कतर, मालदीव, सऊदी अरब यहां तक पाकिस्तान ने भी केरल के लिए मानवीय सहायता देने की पेशकश की है। राज्य सरकार ने केन्द्र से कहा है कि वह राहत और पुनर्वास कार्यों के लिए 2600 करोड़ रूपए का विशेष पैकेज दे। राज्य के 14 जिलों में से 11 जिले बाढ़ प्रभावित हैं और राज्य में सड़कों, पुलों, भवनों आदि को भारी नुकसान पहुंचा है। अंतराषर््ट्रीय एजेंसियां किसी भी देश की सरकार की सहमति के बिना सहायता नहीं दे सकती हैं।
इसलिए संयुक्त अरब अमीरात की सहायता को केरल तब तक स्वीकार नहीं कर सकता जब तक भारत सरकर इसकी स्वीकृति न दे। केरलवासियों का मध्य-पूर्व के देशों के साथ विशेष सबंध हैं जहां पर वे विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत हैं। संयुक्त अरब अमीरात में कार्यरत 20 लाख भारतीय प्रवासियों में से अधिकतर केरलवासी हैं और वे अबू धाबी, दुबई, शारजाह जैसे मुख्य शहरों में नियोजित हैं। अनिवासी भारतीय अपने श्रम और विशेषज्ञता के माध्यम से संयुक्त अरब अमीरात में संपत्ति निर्माण में योगदान कर रहे हैं और इसीलिए संयुक्त अरब अमीरात ने केरल को सहायता की पेशकश की है। भारत विदेशों से लगभग 69 बिलियन डालर की विदेशी राशि प्राप्त करता है और इसमें से सर्वाधिक 15.69 बिलियन डालर संयुक्त अरब अमीरात से प्राप्त होती है। इसके अलावा कुवैत, ओमान, कतर से भी भारी राशि प्राप्त होती है।
विश्व के अनेक देश प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए विदेशी सहायता से इंकार करने का नीतिगत निर्णय ले चुके हैं। हाल ही में वेनेजुएला ने उच्च मुद्रा स्फीति के बावजूद बाढ़ और चिकित्सा सामग्री की कमी के चलते हुए भी विदेशी सहायता नहीं ली। थाईलैंड, म्यांमार और चिली ने भी आपदा प्रबंधन के लिए विदेशी सहायता नहीं ली। नेपाल ने भी बाढ़ राहत के लिए भारत से सहायता नहीं ली हालांकि दोनों देश घनिष्ठ पड़ोसी हैं। इसके पीछे कारण यह है कि बार-बार आ रही प्राकृतिक आपदाओं के लिए विदेशी सहायता लेने से उस पर निर्भरता बढ़ जाएगी।
जब आपदा या संकट आंशिक रूप से मानव निर्मित हो तो ऐसी विदेशी सहायता लेने से स्थायी समाधान नहीं मिल पाता है। यह अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों से मिली सहायता से भिन्न होती है। अंतर्राष्ट्रीय संबंध बदलते रहते हैं तथा ऐसी सहायता प्राप्त करने वाले देश को बदले में उसकी अपेक्षाओं के प्रति आगाह रहना चाहिए। सरकार के इस रूख को आत्मसम्मान या पक्षपात से जोडना गलत है और इस मुद्दे की राजनीति में विदेशों से सहायता प्राप्त करने की जटिलताओं को नहीं समझा जा रहा है।
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