राहत की बात है कि मध्यप्रदेश राज्य के मंदसौर शहर में आठ वर्षीय बालिका से दरिंदगी करने वाले दोनों गुनाहगारों को पॉक्सो एक्ट की न्यायाधीश निशा गुप्ता ने मौत की सजा सुनाई है। यह फैसला इसलिए ज्यादा महत्वपूर्ण है की चालान पेश होने के 42 और वारदात के 57 दिन में सुनाया गया है। नि:संदेह इस फैसले का व्यापक असर होगा और दुष्कर्म की घटनाओं पर नियंत्रण लगेगा। साथ ही देश के अन्य अदालतों पर भी ऐसे मामलों में त्वरित न्याय का दबाव बनेगा। अच्छी बात यह भी है कि मध्यप्रदेश राज्य में पिछले आठ महीने में दुष्कर्म के 14 मामलों में जिला अदालतों द्वारा दोषियों को फांसी की सजा सुनायी गयी है। उचित होगा कि अन्य राज्यों की अदालतें भी ऐसे मामलों में शीघ्र सुनवाई कर दोषियों को अतिशीध्र सजा सुनाएं। यह इसलिए आवश्यक है कि सजा की दर कम होने के कारण दुष्कर्मियों के मन में खौफ पैदा नहीं होता और दुष्कर्म की घटनाएं बढ़ती ही जाती है। आज उसी का नतीजा है कि देश में प्रतिदिन 55 बच्चियों के साथ दुष्कर्म होता है। यह वह आंकड़ा है जो पुलिस द्वारा दर्ज किए जाते हैं। अधिकांश मामले में तो पुलिस द्वारा रिपोर्ट दर्ज ही नहीं किए जाते हैं। या यों कहें कि लोकलाज के कारण ऐसे मामलों को पीड़िता के परिजनों द्वारा दबा दिया जाता है। ध्यान देना होगा कि जब तक यौन उत्पीड़न के मामले में शत-प्रतिशत गुनाहगारों को सजा नहीं मिलेगी तब तक ऐसे दुष्कृत्य थमने वाले नहीं हैं। चिल्ड्रेन फाउंडेशन की ओर से बाल यौन उत्पीड़न पर जारी ताजा रिपोर्ट में राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के हवाले से बताया गया है कि 2013 से 2016 के दौरान तीन वर्षों में बच्चों के खिलाफ अपराध की घटनाओं में 84 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इनमें से 34 प्रतिशत यौन उत्पीड़न के मामले हैं। एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक 2012 में बच्चियों के साथ दुष्कर्म की 8541 वारदात हुई जो 2016 में बढ़कर 19765 हो गयी। इन आंकड़ों पर यकीन करें तो महिलाओं को सुरक्षा उपलब्ध कराने के बावजूद भी 2014 में प्रतिदिन 100 महिलाओं के साथ बलात्कार हुआ और 364 महिलाएं यौनशोषण का शिकार बनी। रिपोर्ट के मुताबिक 2014 में केंद्रशासित और राज्यों को मिलाकर कुल 36735 मामले दर्ज हुए। आंकड़ें बताते हैं कि वर्ष 2004 में बलात्कार के कुल 18233 मामले दर्ज हुए जबकि वर्ष 2009 में यह आंकड़ा बढ़कर 21397 हो गया। ध्यान दें तो 2014 का आंकड़ा वर्ष 2004 के मुकाबले दोगुना है। यह स्थिति चिंताजनक है। अगर बलात्कारियों को उनके किए की सजा शीघ्र मिले तो यौन उत्पीड़न की घटनाओं में कमी आएगी। इसके लिए आवश्यक है कि महिला पुलिस थानों और विशेष न्यायालयों का गठन हो। उदाहरण के लिए वर्ष 2016 में यौन अपराध से बच्चों के संरक्षण संबंधी कानून पोस्को के तहत 48060 मामले जांच के लिए दर्ज किए गए जिनमें से सिर्फ 30851 मामले सुनवाई के लिए अदालत भेजे गए। यानी गौर करें तो 36 प्रतिशत मामले जांच के लिए लंबित रह गए। वर्ष 2014-16 के दौरान पोस्को के तहत सिर्फ 30 प्रतिशत दोषसिद्ध हुए। हालांकि राहत की बात यह है कि 2015 के मुकाबले 6 प्रतिशत की वृद्धि हुई। एनसीआरबी के रिपोर्ट की मानें तो बाल यौन उत्पीड़न के लंबित मामलों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है और यदि इसकी सुनवाई मौजूदा गति से जारी रही तो 2016 तक के लंबित मामलों का निपटारा होने में दो दशक लग जाएंगे। राज्यवार आंकड़ों पर गौर करें तो पंजाब में लंबित मामलों को निपटाने में दो वर्ष जबकि गुजरात, पश्चिम बंगाल, केरल, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश में इनका निपटारा होने में 60 वर्ष से भी ज्यादा समय लग सकता है। वर्ष 2015 और 2016 में बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों के मात्र दस प्रतिशत मामलों की सुनवाई पूरी हो सकी है। एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक 2016 में बच्चियों और महिलाओं के साथ दुष्कर्म के कुल 36657 मामले दर्ज किए गए जिनमें से 34650 यानी 94 प्रतिशत आरोपी पीड़िताओं के परिचित थे। वे या तो परिवार के घनिष्ठ सदस्य या पड़ोसी या जानकार थे। एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि इस समय देश में एक लाख से अधिक बलात्कार के मुकदमें अदालतों में लंबित हैं। ध्यान देना होगा कि जब तक यौन उत्पीड़न मामले में सजा की दर में वृद्धि नहीं होगी उत्पीड़नकतार्ओं के मन में खौफ पैदा नहीं होगा। अच्छी बात यह है कि इसी को ध्यान में रखते हुए पिछले दिनों केंद्र सरकार ने क्रिमिनल लॉ (अमेंडमेंट) आॅर्डिनेंस, 2018 के तहत 12 साल से कम उम्र की बच्चियों के साथ दुष्कर्म करने वालों को फांसी की सजा मुकर्रर की। इस कानून में किए गए बदलाव के मुताबिक अब दो माह के अंदर ही दुष्कर्म की जांच पूरी करनी होगी और साथ ही दो माह में ट्रायल भी पूरा करना होगा।
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