एक साल पहले पंचकूला में आज ही के दिन लिखा गया था डेरा सच्चा सौदा के इतिहास का वो लहूलुहान पन्ना, आज भी सुनाई देती हैं निर्दोष श्रद्धालुओं की चीखें
- पुलिस बरसा रही थी लाठियां, रहम की भीख मांग रहे थे श्रद्धालु
- सड़कों पर लगे थे लाशों के ढ़ेर, कराह रहे थे लहूलुहान श्रद्धालु
दिन 25 अगस्त 2017, स्थान पंचकूला। दोपहर के ढ़ाई बजे तक सब सामान्य था। अपने मुर्शिद-ए-कामिल के दर्शन को हजारों किमी से चलकर आए श्रद्धालु पंचकूला की सड़कों पर भजन-सुमिरन कर रहे थे। अचानक असामाजिक तत्वों का टोला आया व श्रद्धालुओं की भीड़ में खड़ी मीडिया कर्मियों की ओबी वैनों को पलटकर आग के हवाले कर दिया। गुंडा तत्वों की इस भीड़ में से कोई निजी वाहनों में तोड़फोड़ कर रहा था तो कोई सरकारी वाहनों को जलाने में जुटा था।
शांति से भजन सुमिरन में बैठे डेरा श्रद्धालु इतने में कुछ जान पाते कि पंचकूला की सड़कों पर हिंसा का तांडव विकराल हो गया। बस फिर क्या था, निहत्थे डेरा श्रद्धालुओं पर शुरु हो गया पुलिसिया जुल्मो सित्म का सिलसिला। कहीं गोलियों की धांय-धांय तो कहीं लाठियों का प्रहार, बस चहुं ओर चीत्कार ही चीत्कार। चंद ही पलों में पंचकूला की सड़कों पर लाशों के ढ़ेर लग गए।
किसी ने मां-बाप खो दिए तो किसी मां ने गंवा दिया अपना लाल। किसी बहन का भाई लौटकर नहीं आया तो किसी की उजड़ गई मांग। शायद ही कोई ऐसा हो जिस पर पुलिस की लाठी न चली हो। क्या युवा, क्या महिलाएं, क्या बच्चे, क्या वृद्ध, पुलिस की लाठी व गोली के सामने जो भी आया बच न गया। एक साल बाद आज भी पंचकूला में डेरा श्रद्धालुओं की चीखों की गूंज साफ सुनाई दे रही है। 25 अगस्त को जो भी हुआ, क्या यह पूरा षडयंत्र था? यदि यह साजिश थी तो आने वाली पीढ़ियां उन सभी सवालों का जवाब अवश्य मांगेंगी?
सवाल नंबर 1
23 अगस्त 2017 से ही डेरा श्रद्धालु पंचकूला में जुटने शुरू हो गए थे। सभी डेरा प्रेमियों को कई चरणों की गहन पुलिस तलाशी के बाद ही शहर में प्रवेश करने दिया गया था। यदि सरकार व पुलिस चाहती तो डेरा श्रद्धालुओं के शहर में प्रवेश पर रोक लगा सकती थी। इस दौरान राज्य सरकार के शिक्षा मंत्री राममबिलास शर्मा व कई अन्य मंत्रियों के ब्यान भी आए थे कि डेरा श्रद्धालु अपने गुरु के दर्शन के लिए यहां आए हैं और उन्हें रोका नहीं जा सकता। हरियाणा सरकार तो डेरा श्रद्धालुओं के लिए भोजन व पानी का प्रबंध तक करने के लिए भी तैयार है। उन्हें किसी तरह की दिक्कत नहीं आने दी जाएगी। यदि सरकार व पुलिस को डेरा श्रद्धालुओं पर इतना विश्वास था और इसी विश्वास पर ही उन्हें शहर में पूरी जांच के बाद प्रवेश की अनुमति दी गई तो फिर श्रद्धालुओं की भीड़ के बीच आकर आगजनी व हिंसा करने वाले असामाजिक व गुंडा तत्व कहां से आ गए? कौन थे मीडियाकर्मियों की गाड़ियां जलाने वाले? कौन गुंडा तत्व थे पंचकूला में उत्पात मचाने वाले जबकि एक-एक डेरा प्रेमी को तो पुलिस व सेना ने गहन जांच के बाद ही शहर में प्रवेश की अनुमति दी थी?
सवाल नं 2
25 अगस्त 2017 को अंतिम क्षण तक मुख्यमंत्री मनोहर लाल व पुलिस प्रमुख डीजीपी बीएस संधू बार-बार यही कहते रहे कि हमने एक-एक डेरा श्रद्धालु को जांच के बाद भी पंचकूला में प्रवेश की अनुमति दी है। उनके पास खाना, पानी की बोतलों, बरसात से बचाव के छातों व पेड़ों से तोड़ी हुई टहनियों के अलावा कुछ नहीं है तो बाद में पुलिस ने डेरा प्रेमियों पर किस तरह लगा दी देशद्रोह जैसी संगीन धाराएं?
सवाल नंबर 3
क्या यह भी किसी की साजिश का ही हिस्सा तो नहीं था कि डेरा प्रमियों को पंचकूला में इक्ट्ठा होने दिया जाए व बाद में श्रद्धालुओं की भीड़ में गुंडा व बदमाश तत्वों को शामिल कर हिंसा व आगजनी करवाकर डेरा श्रद्धालुओं को मौत के घाट उतार दिया जाए ताकि निर्दोष श्रद्धालु भी मारे जाएं और प्रेम, भाईचारे व अनुशासन के लिए विख्यात संस्था डेरा सच्चा सौदा को भी बदनाम कर दिया जाए?
सवाल नंबर 4
25 अगस्त को हिंसा भड़कने के बाद सबसे पहले मीडिया चैनलों की ओबी वैन में आग लगी थी। ये ओबी वैन डीजीपी बीएस संधू व मुख्यमंत्री मनोहर लाल द्वारा रोकने के आह्वाान के बावजूद जानबूझकर वहां खड़ी की गई थी जहां डेरा श्रद्धालु बैठे थे। बाद में मुख्यमंत्री मनोहर लाल व डीजीपी ने स्वंय कहा था कि हमने मीडियाकर्मियों की ओबी वैन के लिए अलग जगह निर्धारित की थी और उन्हें बार-बार रोका था कि वे भीड़ के बीच ओबी वैन खड़ी न करें लेकिन वे नहीं माने और जानबूझकर भीड़ के बीच ओबी वैन खड़ी कर डाली। और 25 अगस्त की शाम को हिंसा की शुरूआत ही सबसे पहले ओबी वैन को जलाने के साथ हुई। वीडियो में दिखाई दे रहा है कि किस तरह से असामाजिक तत्व ओबी वैनों को पलटकर आग लगा रहे हैं। कहीं इसमें भी साजिश की बू तो नहीं। सवाल उठता है कि क्यों मुख्यमंत्री व डीजीपी द्वारा निधार्रित की गई जगह पर मीडियाकर्मियों ने ओबी वैन खड़ी न कर जानबूझकर भीड़ के बीच खड़ी क्यों की? क्या ओबी वैनों को जलाने वाले गुंडे स्वंय मीडियाकर्मियों के ही तो नहीं थे?
सवाल नंबर 5
25 अगस्त को हिंसा में हजारों डेरा प्रेमी तो लहूलुहान हुए क्या एक भी पुलिसकर्मी व सेना का जवान घायल हुआ। यदि नहीं तो पुलिस व मीडिया ने यह झूठा प्रचार कैसे कर दिया कि डेरा प्रेमी हिंसा व आगजनी कर रहे थे? यहां तक कि उन्हें गुण्डा कहा गया।
सवाल नंबर 6
25 अगस्त के बाद माननीय हाईकोर्ट द्वारा डेरा सच्चा सौदा में सर्च आॅप्रेशन चलाए जाने के आदेश दिए। इस दौरान भी मीडिया ने जमकर दुष्प्रचार किया गया। मीडिया ने तो डेरा में हथियारों का जखीरा व डेरा के खेतों में सैकड़ों नरकंकाल दबे होने का दावा किया था लेकिन तीन दिन तक चले सर्च आॅप्रेशन के बाद सर्च टीम को डेरा सच्चा सौदा से ऐसी कोई भी संदिग्ध वस्तु नहीं मिली। यहां भी मीडिया को मुंह की खानी पड़ी। तो क्या आज मीडिया काम कुछ भी अनाप-शनाप बक देना रह गया है। क्यों किसी को बदनाम करने के लिए मीडिया संस्थान एड़ी चोटी का जोर लगा देते हैं, क्या यह अपराध नहीं है?
सवाल नंबर 7
25 अगस्त के प्रकरण के बाद आज तक मात्र 1-2 नेताओं को छोड़कर किसी भी नेता व समाजसेवी ने पुलिस व सेना की गोली से मृतक डेरा प्रेमियों के परिवारों के प्रति सहानुभूति नहीं दिखाई। सरकार द्वारा दर्जनों मृतक डेरा प्रेमियों के परिवारों को आर्थिक सहायता व नौकरी देना तो दूर की बात, अफसोस में एक शब्द तक नहीं बोला गया जबकि जाट आंदोलन हिंसा के समय मृतक दंगाइयों के परिवारों को हरियाणा सरकार द्वारा आर्थिक सहायता व नौकरियां तक दी गई। क्या डेरा के श्रद्धालु इस देश व प्रदेश के नागरिक नहीं? कहां है देश में स्वत: संज्ञान का विवेक व मानवाधिकार रक्षक संस्थाएं?
फैसले तो अदालतें करेंगी लेकिन उन जख्मों का क्या?
- भयानक शाम का वो क्रूर मंजर याद कर सिहर उठती हैं कैथल की यह महिला श्रद्धालु
- निहत्थों पर लाठियां भांजकर रक्षक दिखा रहे थे बहादुरी
वो काली रात और वो भयानक मंजर आज भी याद कर सिहर उठती हूँ। वह खौफनाक मंजर हम कभी भूल नहीं सकते। नाम न छापने की शर्त पर महिला ने रोंगटे खड़े कर देने वाली सच्चाई बयां की। पंचकूला में उस दिन लाखों की संख्या में लोग पहुंचे हुए थे और हजारों की संख्या में पुलिस बल और सेना कर्मी तैनात किए गए थे। जब वहां पर सभी पहुंच रहे थे इतने दिनों से तो हमें किसी ने नहीं रोका और ना ही किसी ने बताया कि यहां पर धारा 144 या कर्फ्यू लगाया गया है। इसके बावजूद हम वहां पर शांति से बैठे, न्यायालय के फैसले का इंतजार कर रहे थे और फैसला आने तक वहां पर पूरी तरह शांति बनी हुई थी लेकिन जैसे ही फैसला आया। लोग वहां से निकलना शुरू हुए लेकिन अब वह मंजर पूरी तरह बदल चुका था।
कुछ शरारती तत्वों ने आगजनी शुरू कर दी और उसी के साथ वहां भगदड़ का माहौल पैदा हो गया। जिन पुलिसकर्मियों को हमने कभी फरिश्तों के रूप में और रक्षक के रूप में देखा था। उस दिन वो हमें भक्षक नजर आ रहे थे। क्या बुजुर्ग, क्या महिलाएं, क्या बच्चे और क्या जवान पुलिसकर्मी सब पर इस तरह टूट पड़े। मानो वह सब को जान से ही मार देंगे। वे लाठीचार्ज के साथ-साथ सब पर फब्तियां भी कस रहे थे जिसके हाथ खाली थे बिल्कुल उन्हें लाठियों से पीटा जा रहा था। हम जैसे-तैसे वहां से भागे।
हमें और हमारे साथ बहुत सी महिलाओं को भी लाठियों से पीटा गया और हमारा सामान इधर उधर बिखरा पड़ा था। हम बचते-बचाते जीरकपुर तक पहुंचे और वहां पर हम पैदल चलकर कई घंटों में अंबाला पहुंचे लेकिन तब तक हालत और हालात ऐसे हो चुके थे, मानो किसी ने किसी तानाशाह की तरह सब कुछ तबाह कर दिया हो। शरीर पर लाठियां लगने से दर्द था लेकिन दवाइयां कहीं दिखाई नहीं दे रही थी।
2 दिन से भूखे थे लेकिन रोटी का एक निवाला तक नहीं था और हालात ऐसे हो चुके थे कि शरीर अब लड़खड़ाने लगा था। ऐसे में गिरते-पड़ते घर पहुंचे और उसके बाद यहां पर पता चला कि पुलिसकर्मी डेरा अनुयायियों को एक-एक कर पकड़ रहे हैं। ऐसे में हम न तो किसी हिंसा में शामिल थे और ना ही हमने कभी सोचा। जो फैसला न्यायालय ने किया, हमने उसे स्वीकार किया। निर्दोष और दोषी का फैसला अब उच्च अदालतें करेंगी लेकिन उन जख्मों का क्या, जो हमें रक्षकों के रूप में भक्षकों ने दिए थे।
डेरा प्रेमियों के स्मृति पटल पर सरकारी जुल्म के
निशां आज भी ज्यों के त्यों
विगत वर्ष 25 अगस्त 2017 को हरियाणा के पंचकुला में डेरा सच्चा सौदा के अनुयायियों पर हुए सरकारी जुल्म भी स्वतंत्र भारत की सबसे भयावह त्रासदियों में से एक है। हिंसा रोकने की आड़ में डेरा अनुयायियों पर हुई क्रूर ज्यादती को एक वर्ष का समय बीत चुका है, परन्तु डेरा प्रेमियों के स्मृति पटल पर सरकारी जुल्म के निशां आज भी ज्यों के त्यों बने हुए हैं।
वहीं तमाम जुल्म-ओ-सितम के बावजूद मानवता को अपने धर्म के रूप में स्वीकार कर चुके करोड़ों डेरा अनुयायियों का अपने सतगुरु के प्रति कायम स्नेह, सम्मान व अगाध श्रद्धा इतिहास के पन्नों पर अमिट स्याही से सदा-सदा के लिए अंकित हो चुकी है।
पंचकूला की वीभत्स घटना के चश्मदीद क्षेत्र के कुछ डेरा अनुयायियों के हृदय की व्यथा और उनके बुलन्द हौंसले की गाथा उन्हीं के शब्दों के जरिये आपके समक्ष प्रस्तुत है:-
गाँव कंडेला निवासी राजेन्द्र इन्सां उस हृदय विदारक मंजर पर नम आँखों और रूंधे गले से बताते हैं कि चाहे हमारे ऊपर कितना भी निर्दयता हुई लेकिन सतगुरु के प्रति हमारा विश्वास जस का तस कायम है और मानवता की राह पर अडिग होकर आगे बढ़ते रहेंगे। न्यायपालिका पर मुझे विश्वास है और एक दिन सच की जीत होगी और पूज्य गुरु जी जल्द हमारे बीच होंगे। कहते है कि जब अँधेरा अपने चरम पर होता है तो समझ लेना चाहिए कि रोशनी होनी वाली है।
भारतीय सेना से सेवानिवृत्त गाँव कंडेला निवासी देवी सिंह इन्सां सवाल उठाते हैं कि मानवता के जो मसीहा अपने रक्त से लाखों जिन्दगी बचा चुके हैं, उनका रक्त सड़कों पर बहाने वालों के खिलाफ अभी तक कार्यवाही क्यों नहीं हुई? क्या यही लोकतंत्र है? क्या इसी लोकतंत्र की रक्षा की खातिर हमने सीमा पर रहकर असहनीय कष्ट झेले हैं? कटाक्ष करते हुए कहते हैं कि वर्तमान समय का भारतीय लोकतंत्र लाठी तंत्र में परिवर्तित होता जा रहा है। पूज्य गुरूजी के प्रति हृदय में कायम श्रद्धा को दुनिया की कोई ताकत नहीं डिगा सकती।
श्रद्धा के आगे घुटने टेक गई जुल्म की इंतहा
- मीडिया ने किया खूब बदनाम, फिर भी मानवता की राह पर बढ़ रहे कदम
बीते साल आज के ही दिन (25 अगस्त) को डेरा सच्चा सौदा के श्रद्धालुओं पर जो अत्याचार हुआ, उसने हर उस व्यक्ति के ह्दय को छलनी कर दिया, जिसने उस अत्याचार को अपनी आंखों से देखा और सुना। हर तरफ खौफ ही खौफ का मंजर था और जुल्म की सारी हदें पार हो गई। मीडिया ने डेरा सच्चा सौदा को बदनाम करने के लिए खूब झूठा प्रचार किया। डेरा श्रद्धालुओं को तोड़ने के खूब प्रयास किए, फिर भी इन सबकी परवाह किए बिना साध-संगत का सतगुरु के प्रति अड़ोल विश्वास दिन-दोगुनी रात चौगुनी बढ़ता जा रहा है।
जिसकी स्पष्ट मिसाल अभी हाल ही में 15 अगस्त को देखने को मिली, जब पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां का अवतार दिवस मनाया गया, जिसमें लाखों की संख्या में डेरा श्रद्धालु पहुंचे। यही नहीं पूज्य गुरु जी के पावन स्वरूप भी सोशल मीडिया पर खूब शेयर किए जा रहे हैं। हर साल की तरह इस साल भी डेरा श्रद्धालुओं ने 14 व 15 अगस्त को पौधारोपण किया, जिसमें पहले की ही तरह डेरा श्रद्धालुओं ने भाग लेकर बढ़-चढ़कर पौधे लगाए।
इस महान कार्य को सोशल मीडिया पर खूब पसंद किया, जो दो-तीन दिन तक फेसबुक के ट्रेडिंग में भी रहा। साध-संगत के दृढ़ विश्वास का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 15 अगस्त को पावन अवतार दिवस पर डेरा सच्चा सौदा की साध-संगत ने रोहतक की सुनारिया जेल में पूज्य गुरु जी को इतनी बढ़ी संख्या में बधाई संदेश भेजे कि वहां का पोस्टमैन को आॅटो पर डॉक भेजने पड़ रही हैं।
डेरा सच्चा सौदा की साध-संगत मानवता भलाई के कार्यों में भी ज्यों की त्यों जुटी हुई है, जो सतगुरु के प्रति अटूट विश्वास की सच्ची मिलाल है। शाह सतनाम जी धाम सरसा में आयोजित होने वाली रोजाना की नामचर्चा में भी भारी संख्या में साध-संगत शिरकत करती है। इसी तरह प्रत्येक रविवार को होने वाली नामचर्चा में साध-संगत का इक्ट्ठ सतगुरु के प्रति श्रद्धा व दृढ़ विश्वास का नमूना बनता है।
अफवाहों को नकारा
डेरा सच्चा सौदा के खिलाफ फैलाई जा रही अफवाहों को भी साध-संगत व समाज ने सिरे से नकार दिया। अपनी सूझ-बूझ से काम लेते हुए साध-संगत ने किसी अफवाह पर ध्यान न देते हुए एकजुटता का परिचय दिया।
झूठा प्रचार बेअसर
25 अगस्त की घटना के बाद मीडिया ने जो भी डेरा सच्चा सौदा व पूज्य गुरु जी के खिलाफ जो झूठा प्रचार किया, उसका साध-संगत पर रत्ती भर भी असर नहीं हुआ, बल्कि साध-संगत का विश्वास ओर भी बढ़ता गया।
शिक्षण संस्थान व अस्पताल में काम जारी
शाह सतनाम जी शिक्षण संस्थानों भी इस घटनाक्रम के बाद ज्यों का त्यों शिक्षा जारी हैं। सभी संस्थानों में पहले की ही तरह ही बच्चे अनुशासन में पढ़ने के लिए पहुंचते हैं। इसके अलावा शाह सतनाम जी स्पैशलिटी अस्पताल में भी दिन प्रतिदिन मरीजों की संख्या बढ़ रही है। मरीज पहले की ही तरह इलाज करवाने के लिए अस्पताल में पहुंच रहे हैं। अस्पताल में लगाए जाने वाले निशुल्क शिविर का भी मरीज लाभ उठा रहे है।
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