जम्मू-कश्मीर में एक बार फिर बकरीद के मौके पर कई हिंसक वारदातें हुईं। सेना के वाहन और सैनिकों पर पत्थर बरसाए गए। दो पुलिसकर्मी मोहम्मद अशरफ डार एवं मोहम्मद याकूब के साथ भाजपा कार्यकर्ता शबीर अहमद भट्ट की हत्या कर दी गई। यही नहीं श्रीनगर की हजरतबल मस्जिद में नेशनल कांफ्रेंस के नेता और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला के खिलाफ नारेबाजी हुई और उन पर जूते फेंके गए। मालूम हो अब्दुल्ला ने दिल्ली में पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी की श्रद्धांजलि सभा में भारत माता की जय का नारा लगाया था।
इसी के विरोध में उनके साथ बद्सलूकी बरती गई। नतीजतन फारूक को मस्जिद से लौटना पड़ा। लौटने के बाद मीडिया से चर्चा करते हुए उन्होंने बेबाकी से कहा अगर सिरफिरे लोगों को लगता है कि फारूक डर जाएगा तो यह उनकी गलती है। मुझे भारत माता की जय बोलने से कोई नहीं रोक सकता है। यही नहीं नवाज के बाद अलगाववादियों ने श्रीनगर, कुलगाम एवं अनंतनाग समेत घाटी के कई शहरों में पाकिस्तान और आईएसएस के झंडे लहराए और पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे भी लगाए। इन देश विरोधी हरकतों से साफ हुआ है कि पाकिस्तान और आईएस अब जम्मू-कश्मीर में मिलकर अलगाव की मुहिम चला रहे हैं। हालांकि अब सत्यपाल मलिक के रूप में इस राज्य को 51 साल बाद ऐसा राज्यपाल मिला है, जो सैन्य अथवा प्रशासनिक सेवा की पृष्ठभूमि से नहीं हैं।
वे कई राजनैतिक धाराओं से पार पाते हुए भाजपा में रहते हुए राज्यपाल पद तक पहुंचे हैं। इसलिए उनसे उम्मीद की जा सकती है कि अब कश्मीर समस्या का निदान राजनीतिक समझ से खोजा जाएगा। यदि पाकिस्तान के नए वजीरे-आजम इमरान खान भी सेना के इशारे पर चलने की बजाय, स्वयं के राजनीतिक विवेक से कश्मीर समस्या को लेते हंै तो समस्या का हल मुमकिन हो सकता है।स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले की दीवार से भाषण देते हुए कहा था कि कश्मीर के संदर्भ में अटलबिहारी वाजपेई की नीति ह्यइंसानियत, जम्हूरियत और कश्मीरियत को अमल में लाएंगे। बीते चार साल में हुर्रियत के किसी भी नेता से औपचारिक बातचीत भी नहीं करने वाली मोदी सरकार अब यदि ऐसा संकेत दे रही है तो इसका मतलब यही है कि जम्मू-कश्मीर को लेकर वह अपनी रणनीति बदलना चाहती है।
इस परिप्रेक्ष्य में मलिक की नियुक्ति को बदलती नीति की शुरूआत माना जा सकता है। क्योंकि भाजपा में शामिल होने के बाद भी सत्यपाल मलिक की उदारवादी छवि में विपरीत रुझान देखने को नहीं मिला है। संयोगवश इसी समय क्रिकेट खिलाड़ी इमरान खान पाक के प्रधानमंत्री बने हैं। गोया, जम्मू-कश्मीर के मोर्चे पर सुलग रही आग को शांत किए बिना पाकिस्तान की सत्ता को रचनात्मक गति देना इन्हें भी मुश्किल होगा। क्योंकि नरेंद्र मोदी की विदेश नीति पर जबरदस्त पकड़ के चलते पाक को अमेरिका समेत अन्य देशों से आर्थिक मदद मिलने पर प्रतिबंध लग गया है। पाक के अपने इतने आर्थिक संसाधन मजबूत नहीं हैं, कि वह बिना किसी बाहरी मदद के विकास कर सके।
हालांकि कश्मीर के अलगाववादियों को पाक सेना और आईएस व अलकायदा जैसे आतंकी संगठनों में इतना बरगला दिया है कि उन्हें कश्मीर की तथाकथित आजादी सच लगने लगी है। जबकि यह किसी दिवास्वप्न की तरह महज एक भ्रम है। बावजूद हुर्रियत के अलगाववादी नेता जिहाद के नाम पर कश्मीरी युवाओं को आतंक के लिए प्रेरित करने की भूल कर रहे हैं। वे अभी भी मुगालते में है कि कश्मीर की आजादी का स्वप्न दिखाकर वे अपना उल्लू सीधा कर पाकिस्तान से इस बहाने करोड़ों की धनराशि लेते रहेंगे। जबकि यह रास्ता कश्मीर और उसकी अवाम को बर्बादी के रास्ते पर ले जा रहा है। गोया अब बेहतर तो यह होगा कि अपने युवाओं को खो रही कश्मीरी अवाम को अलगाववादियों से पूछना चाहिए कि क्या अशरफ डार, मोहम्मद याकूब एवं शबीर भट्ट कश्मीरी नहीं थे ? इसके पहले भी आतंकी उमर फैयाज और आयूब पंडित जैसे अनेक कश्मीरी पुलिसकर्मियों को मौत के घाट उतार चुके हैं।
अलगाव और आतंक की पैरवी करने वालों से यह भी पूछने की जरूरत है कि वे कश्मीर को बर्बाद करने वाले आईएसआईएस, अलकायदा, हिजबुल मुजाहिद्ीन और लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकी संगठनों से बर्बादी का सबक क्यों सीख रहे हैं ? हालांकि इन संगठनों और अलगाववादियों को पाकिस्तान से मिल रही करोड़ों रुपए की निधि के खुलासे ने कश्मीर की कथित आजादी के संघर्ष पर भी सवाल उठाए हैं। पिछले दिनों पाकिस्तान से धन लेकर कश्मीर में आग लगाने वाले सात अलगावदियों को एनआईए ने हिरासत में लिया है। केंद्र सरकार ने इन्हें गिरफ्तार करके उस संकल्प शक्ति का परिचय दिया था, जिसे दिखाने की बहुत पहले जरूरत थी। जम्मू-कश्मीर के अलगावादी जम्मू-कश्मीर को अस्थिर बनाए रखने के साथ पाकिस्तान के शह पर इसे देश से अलग करने की मुहिम भी चलाए हुए हैं। इस नाते गिरफ्तार किए गए अलगावादी देशद्रोह का काम कर रहे थे।
इसलिए इन पर देश की अखंडता व संप्रभुता को चुनौती देने के परिप्रेक्ष्य में राष्ट्रद्रोह का मामला बनता है। आतंक और देश की संपत्ति को नश्ट करने के लिए लिया गया विदेशी धन राश्ट्रद्रोह से जुड़ी गतिविधियां ही हैं। क्योंकि चंद लोगों के राष्ट्रविरोधी रुख के कारण देश का भविश्य दांव पर लगा है। पंजाब में भी इसी तरह का आतंकवाद उभरा था। लेकिन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव और पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की दृढ़ इच्छा शक्ति ने उसे नेस्तनाबूद कर दिया था। कश्मीर का भी दुश्चक्र तोड़ा जा सकता है, यदि वहां की गठबंधन पीडीपी और भाजपा गठबंधन सरकार मजबूत इरादे रही होती ? पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती दुधारी तलवार पर सवार रहीं थीं। एक तरफ तो उनकी सरकार भाजपा से गठबंधन के चलते केंद्र सरकार को साधती रही, तो दूसरी तरफ हुर्रियत की हरकतों को नजरअंदाज करती रहीं।
इसी कारण वह हुर्रियत नेताओं के पाकिस्तान से जुड़े सबूत मिल जाने के बावजूद कोई कठोर कार्यवाही नहीं करने में नाकाम रहीं थीं। नतीजतन राज्य के हालात नियंत्रण से बाहर हुए। अब राज्यपाल के रूप में सत्यपाल मलिक की तैनाती के बाद लगता है कि बातचीत से हल निकालने की दृश्टि से भले ही वे उदार दिखें, लेकिन राष्ट्रविरोधी गतिविधियों को कतई बरदास्त नहीं करेंगे। दरअसल, अब जो नए तथ्य सामने आ रहे है, उनसे पता चलता है कि हुर्रियत कांफ्रेंस के लिए भी वजूद का संकट पैदा होने जा रहा है। क्योंकि आईएस और अलकायदा से जुड़े कट्टर आतंकी हुर्रियत के विरुद्ध चल रहे हैं। यही वजह है कि अलकायदा और आईएस के आतंकियों की घाटी में मौजूदगी को अलगाववादी हुर्रियत भारतीय खुफिया तंत्र और जांच एजेंसियों की साजिश बता रहे हैं। दरअसल हुर्रियत नेता अभी तक कश्मीरी युवाओं को बड़ी संख्या में बरगलाने में लगातार कामयाब हो रहे थे।
इन नेताओं की दलील थी कि उनकी लड़ाई कश्मीर की आजादी के लिए है और पाकिस्तान इसे प्राप्त करने में महज मदद कर रहा है। किंतु इसके उलट खुफिया एजेंसियों ने इनका कच्चा चिट्ठा खोलकर रख दिया है। इन जांचों से तय हुआ है कि किस तरह पाकिस्तान से मिल रही धनराशि से हुर्रियत नेताओं ने करोड़ों की संपत्ति और अय्याशी के साधन जुटाए हुए हैं। उनके बच्चे भी देश-विदेश के नामी शिक्षण संस्थाओं में पढ़कर सरकारी और निजि क्षेत्रों में अच्छी नौकरियां हासिल कर रहे हैं। इन तथ्यों के आधार पर साबित हुआ है कि अलगाववादी महज पाक की खुफिया एजेंसी आईएसआई के प्यादे भर हैं। इसी धन से ये कश्मीरी युवाओं को पैसा देते हैं और सेना व सुरक्षा बलों पर पत्थर बरसवाते हैं। बहरहाल अलगाववाद के विरुद्ध फारुक नेतृत्व संभालते हैं तो कश्मीरी जनता एकजुट होकर अलगाववादियों के खिलाफ खड़ी हो सकती है।
प्रमोद भार्गव
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