केरल में इस बार बाढ़ ने भयानक तबाही मचाई है। बरसात की इतनी अधिक मार का किसी का भी अंदाजा नहीं था। अब तक 300 से अधिक जिंदगीयां मौत के मुंह समा चुकी हैं। माली नुक्सान बड़े स्तर पर हुआ है। नुक्सान का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि केन्द्र सरकार ने पहले राज्य के लिए 100 करोड़ रूपये की राहत की घोषणा की फिर इसमें 500 करोड़ रूपये की बढ़ोत्तरी की गई। पंजाब सहित अन्य राज्य भी बाढ़ प्रभावित केरल की मदद के लिए आगे आएं हैं। यह तबाही इस बात को फिर से साबित करती है कि प्रकृति का रौद्र रूप बहुत ही भयानक है। केरल में पिछले 100 वर्षांे में यह सबसे भयानक बाढ़ है। दरअसल बरसात के पानी के प्राकृतिक प्रवाह में मानवीय दखल ने अनेक रूकावटें पैदा कर दी हैं, जिससे बाढ़ की समस्या में बढ़ी है। जहां तक बाढ़ की रोकथाम का संबंध है, नदियों के प्राकृतिक प्रवाह को बहाल करना होगा। दरअसल बाढ़ दौरान बचाव कार्य ही समस्या का मुकम्मल हल नहीं बल्कि प्रकृति के सभी रूपों जंगलों, पहाड़ों, नदियों व झीलों की महत्तता को भी समझना होगा। जंगल कम होने से बाढ़ की समस्या बढ़ी है। इसलिए पहाड़ी प्रदेशों में वृक्ष लगाने पर जोर देना होगा। नदियों में हो रही अंधाधुंध अवैध खनन रोकनी होगी। पिछले सालों में बाढ़ की समस्या के नए-नए रूप सामने आ रहे हैं। तीन वर्ष पहले पहाड़ी क्षेत्र श्रीनगर समुन्द्र का नजारा बन गया था। मौसम के बदल रहे रंगों के मद्देनजर सरकार बचाओ व राहत प्रबंधों सहित ढ़ांचे का नए सिरे से निर्माण करना होगा। महानगरों में योजनाबंदी पर विशेष ध्यान देना होगा। पिछले वर्षाें में भारी बरसात के कारण महानगर चैन्नई कई दिनों तक पानी से घिरा रहा। इसी वर्ष में मुम्बई भी भारी बरसात का सामना नहीं कर सकी। देश की राजधानी नई दिल्ली भी भारी बरसात के सामने बेबस हो जाती है। दरअसल शहरों में निर्माण कार्य में अनियमितताएं बरती जा रही हैं, जिस कारण पानी की निकासी की कोई दीर्घकालीन योजना नहीं बनाई जा सकी। हमारे देश में हालात यह हैं कि नदियों के बारे में सिर्फ मानसून के नजदीक आकर विचार किया जाता है, लम्बे समय के योजना बनानी तो दूर की बात। विकसित देशों ने प्राकृतिक आपदाओं संबंधी बड़ी योजनाबंदी की है। हमारी सरकारों को इस संबंधी गंभीरता के साथ सोचना होगा।
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