देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी दुनिया को अलविदा कह गए। अपने अच्छे गुणों, साहित्यक व राजनीतिक उपलब्धियों के कारण उनकी स्नेहता का घेरा पार्टी सीमाओं से बहुत ऊपर था। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू भी उनके प्रशंसकों में शामिल हैं। वह अपने राजनीतिक तजुर्बे में इतने परिपक्व सिद्ध हुए कि उनकी आयु के आखिरी महीनों तक कश्मीर के नेता वाजपेयी के कार्यकाल व उनकी नीतियों की प्रशंसा करते रहे। हालांकि वाजेपयी ने कश्मीर संबंधी पाकिस्तान को बड़ा कठोर संदेश दिया था,‘अधिकृत कश्मीर खाली करो’। पड़ोसी देश पाकिस्तान के साथ नजदीकियां बढ़ाने के लिए ‘लाहौर घोषणा-पत्र’ उनकी बड़ी उपलब्धि थी। उस समय शुरु हुई सदा-ए-सरहद बस सेवा दोनों देशों में शांति की दिशा में एक बड़ा कदम था। आरएसएस की विचारधारा के साथ जुड़ी हुई पार्टी में रहकर वाजपेयी ने खुले विचारों के साथ अपनी बात रखी, जिसकी बदौलत पार्टी में साम्प्रदायिकता की पकड़ ढ़ीली हुई व केन्द्र में पहली बार भाजपा की सरकार बनी। अटल बिहारी वाजपेयी ने धार्मिक सद्भावना को राष्टÑ के नवनिर्माण के लिए आधार मानते हुए साम्प्रदायिकता के खिलाफ आवाज उठाई। पार्टी के इतिहास में भाजपा को पहली बार केन्द्र में सत्ता में लाने का श्रेय अटल बिहारी वाजपेयी को ही जाता है। वाजपेयी पार्टी के अंदर व बाहर एक निडर नेता थे। वह जहां विपक्ष पार्टी के नेताओं को किसी गलती के लिए फटकार लगा देते थे वहीं अपनी पार्टी के किसी नेता की गलत हरकत या लोक विरोधी कार्रवाई के लिए सार्वजनिक कार्यक्रमों में भी ऐसे नेता का लताड़ने से परहेज नहीं करते थे। राजनेता के साथ-साथ वह एक संवेदनशील व प्रगतिशील कवि भी थे। वह अमन-चैन, खुशहाली व मानवता की सांझ के लिए अपने सपनों को कविताओं में उतारते थे व राजनीति द्वारा उनको पूरा करने के लिए सक्रिय थे। वह उच्च कोटि राजनीति की मिसाल कायम करने में कामयाब हुए। अंतरराष्टÑीय स्तर पर उन्होंने हर मुद्दे पर भारत का पक्ष बड़ी मजबूती के साथ रखा। देश को परमाणु ताकत बनाने के लिए उनको हमेशा याद रखा जाएगा। अपने सदभावनापूर्ण विचारों की बदौलत उन्होंने अंतरराष्टÑीय स्तर पर प्रसिद्धि हासिल की। उनका राजनीति व साहित्यक जीवन आज के राजनेताओं व आम लोगों के लिए प्रेरणा स्त्रोत बना रहेगा।
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