बिहार के मुजफ्फरपुर में बालिका गृह में किशोरियों के साथ लंबे समय तक बलात्कार और गर्भपात कराने की खबर से पूरा देश सन्न रह गया। मुजफ्फरपुर बालिका गृह की घटना के बाद अब नया मामला उत्तर प्रदेश के देवरिया जनपद में बालिका गृह में अनैतिक कार्यों के तौर पर प्रकाश में आया है। इस मामले को लेकर पूर्वांचल के देवरिया से राजधानी लखनऊ तक हडकंप मचा हुआ है।
जो खबरें देवरिया बालिका गृह से छनकर बाहर आ रही हैं वो रोंगटे खड़े कर देती हैं। यूपी सरकार ने प्रदेश के समस्त जिलाधिकारियों से बालिका संरक्षण गृहों की रपट तलब की है। वास्तव में मुजफ्फरपुर और देवरिया में बालिका गृह में छोटी बच्चियों से दुष्कर्म की घटनाएं समाज की संवेदनहीनता और चारित्रिक पतन की हद है। उस पर राजनीति करना तो संवेदनहीनता और नैतिक पतन की पराकाष्ठा ही हैं।
बालिका गृह में बच्चियां अपने उज्ज्वल भविष्य के लिए लायी जाती हैं, पर जहां उनका वर्तमान ही सुरक्षित नहीं हो, वहां भविष्य कैसा होगा? ऊपर से सूचना क्रांति के इस युग में इस मामले के सामने नहीं आने से इसमें बड़े-बड़े लोगों की संलिप्तता का संदेह तो पैदा होता ही है। बिहार के मुजफ्फरपुर का मामला अब सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान में है और सीबीआइ इस मामले की जांच कर रही है।
इसी बीच बिहार के गोपालगंज के एक बालिका गृह से दो बच्चियों के पिछले कुछ महीनों से गायब होने की खबर भी प्रकाश में आयी थी। उस बालिका गृह के प्रशासक ने रपट दर्ज करवाने के अलावा कुछ भी खास नहीं किया। फिर मुजफ्फरपुर बालिका गृह के पीछे स्थित स्वाधार केंद्र से 11 महिलाओं के गायब होने की खबर आयी। जांच में कई आपत्तिजनक सामान भी मिले हैं।
किशोरियों से बलात्कार के अपराध में दोषियों को मृत्युदंड देने संबंधी केन्द्रीय कानून अभी लोकसभा से पारित हुआ है। कठुआ में आठ साल की बच्ची और इसी दौरान उ.प्र. के उन्नाव में एक महिला से बलात्कार की घटना के बाद एक अध्यादेश जारी किया गया था। अब सरकार ने लोकसभा में अपराध कानून (संशोधन) विधेयक पारित किया है जो इस अध्यादेश का स्थान लेगा।
इस कानून में 12 साल की आयु तक की बच्चियों से बलात्कार के अपराध में कम से कम 20 साल की कैद और इस आयु वर्ग की बच्चियों से सामूहिक बलात्कार के अपराध में जीवन पर्यंत कैद या मृत्युदंड का प्रावधान किया गया है। इसी तरह से 16 साल से कम आयु की किशोरी से बलात्कार के जुर्म में कम से कम दस साल की सजा का प्रावधान है, जिसकी अवधि 20 साल अथवा उसे बढ़ाकर जीवनपर्यंत कैद की जा सकती है। इसी बीच बिहार के मुजफ्फरपुर में बालिका गृह में किशोरियों के साथ लंबे समय तक बलात्कार और उनका गर्भपात कराने का मामला चर्चा में आ गया है।
सरकार के तमाम प्रयासों और जागरूकता कार्यक्रमों के बावजूद बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का नारा धीरे-धीरे शर्मिंदगी का कारण बनता जा रहा है। आंकड़ों के मुताबिक 2014 से बच्चियों से बलात्कार और यौन हिंसा के अपराध निरंतर बढ़ते जा रहे हैं।
राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो ने हालांकि अभी तक 2017 के आंकड़े जारी नहीं किये हैं लेकिन 2018 में ऐसे अपराधों में तेजी से हो रही वृद्धि बेहद चिंताजनक तस्वीर पेश कर रही है। वर्ष 2018 के पहले छह महीनों में कठुआ, जींद, पानीपत, सूरत तथा राजस्थान के झालावाड़ जिलों में बच्चियों के साथ बेहद घृणित और बर्बर तरीके से हुए अपराध किसी भी सभ्य समाज को शर्मिंदा करने के लिये पर्याप्त हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार बच्चियों से अपराध की घटनाओं में 2016 में जबरदस्त वृद्धि हुई।
इस दौरान यौन अपराध से बच्चों का संरक्षण कानून (पोक्सो) के तहत 19765 मामले दर्ज किये गये जबकि 2015 में इस अवधि में भारतीय दंड संहिता की धारा 376 और पोक्सो कानून के अंतर्गत 10,854 बलात्कार के मामले दर्ज हुए थे। बच्चियों से बलात्कार और यौन हिंसा के मामले में मध्य प्रदेश सबसे आगे है जबकि इसके बाद उत्तर प्रदेश, ओडिशा और तमिलनाडु का स्थान रहा है। आंकड़ों के अनुसार देश में प्रति आठ मिनट पर एक बच्ची गुम होती और हर घंटे दो बच्चे दुष्कर्म के शिकार होते हैं। इसी तरह हर घंटे करीब आठ बच्चे अपनी मां के आंचल से बिछुड़ जाते हैं। ये बच्चे मानव तस्करी के शिकार होते हैं। इन घटनाओं को रोकने के लिए कानून के साथ-साथ सामाजिक जागरूकता भी जरूरी है। सरकार को इस दिशा में कदम उठाना चाहिए।
-राजेश माहेश्वरी
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