मोहरा लोकतंत्र पाकिस्तान को बर्बाद कर देगा

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पाकिस्तान में केन्द्रीय लोकतांत्रिक चुनाव का प्रचार अभियान चरम पर है। पाकिस्तान के केन्द्रीय चुनाव अभियान पर दुनिया की नजर भी टिकी हुई है, पर चुनाव प्रचार अभियान में पाकिस्तान की अदृश्य शक्तियां जिस प्रकार से खेल दिखा रही हैं, पूरे चुनाव प्रचार अभियान को प्रभावित कर रही है, डर-भय का चुनावी वातावरण बना रही है उससे स्वच्छ और निष्पक्ष चुनाव की उम्मीद बनती नहीं है। अगर स्वच्छ और निष्पक्ष चुनाव परिणाम नहीं आयेगा तो फिर लोकतंत्र का कैसा विषैला उदाहरण सामने आयेगा, उसकी परिकल्पना की जा सकती है।

पाकिस्तान में लोकतंत्र का इतिहास साजिश और हथकंडों से भरा है। दुनिया यह जानती है कि लोकतंत्र को सक्रिय रूप से विकसित होने से कौन रोकता है, लोकतंत्र को कौन मोहरा बना कर रखना चाहता है, इसके पीछे मंशा क्या होती है? लोकतंत्र के नाम पर हथकंडे खडेÞ किये जाते रहे हैं, जो राजनीतिज्ञ और जो राजनीतिक पार्टी स्वतंत्र होकर लोकतंत्र को गति देना चाहते हैं उनकी राजनीति को हथकंडे का शिकार बनाया जाता है, उनकी राजनीति पर हिंसा बरपायी जाती है, उनकी राजनीति पर देशद्रोह का कलंक लगा कर उनकी राजनीति को जमींदोज किया जाता है।

जुल्फीकार अली भूट्टों से लेकर नवाज शरीफ तक के प्रकरण को कैसे नजरअंदाज किया जा सकता है। जुल्फीकार अली भुट्टों ने सेना की अराजक और हिंसक शक्ति के सामने झुकने से इनकार कर दिया था और सेना को लोकतंत्र की शक्ति दिखायी थी।

हस्र क्या हुआ? हस्र भी सर्वविदित है। सेना ने तख्ता पलटी और जुल्फीकार अली भुट्टों को जेल में डाल दिया गया, इसके बाद जुल्फीकार अली भुट्टों कभी जेल से बाहर नहीं आये, जेल में ही उन्हें फांसी पर लटका दिया गया। सैनिक तानाशाह परवेज मुर्शरफ को जुल्फीकार भूठ्टों की बेटी बेनजीर भुट्टों ने जब आंख दिखायी तो फिर चुनाव प्रचार के दौरान ही बेनजीर भुट्टों को गोली मार कर हत्या कर दी गयी। आज तक बेनजीर भुट्टों की हत्या के राज सामने नहीं आये।

पाकिस्तान में पहले एक ही अदृश्य शक्ति थी, वह अदृश्य शक्ति थी सेना। पाकिस्तान की असली शक्ति के केन्द्र में सेना हमेशा सक्रिय रहती है, लोकतंत्र तो सेना का मोहरा होता है। अदृश्य तौर पर सेना ही पाकिस्तान की सत्ता संभालती है। सेना के विश्वास और इच्छा के बिना कोई भी लोकतांत्रित सत्ता का पत्ता तक नहीं हिल सकता है। अदृश्य शक्तियां तरह-तरह की खेल करती हैं, तरह-तरह के हथकंडे खड़ी करती हैं, तरह-तरह की हिंसा खड़ी करती हंै, कहीं प्रत्यक्ष तो कहीं अप्रत्यक्ष हिंसा होती है, तरह-तरह के कंलक थोपने की साजिश होती है।

पर सेना अपने आप को निष्पक्ष और तटस्थ घोषित करती रही है। ऐसा सेना क्यों करती है? ऐसा सेना इसलिए करती है कि ताकि उसकी असली शक्ति के केन्द्र को लोकतांत्रिक सत्ता प्रभावित नहीं कर सके। एक दशक पूर्व तक सेना स्वयं लोकतंत्र का हनन करती थी। जैसे नवाज शरीफ को बर्खास्त कर परवेज मुशर्रफ ने सत्ता हथिया ली थी और तानाशाही शासन कायम कर लिया था। पर अब दुनिया में तानाशाही सरकार के खिलाफ जनमत तेज हुआ है, तानाशाही सरकार की मदद करने वाली शक्तियां जनमत के निशाने पर होती हैं। इसलिए पाकिस्तान में सेना द्वारा तख्तापलट की उम्मीद अब नहीं है। पर सेना अब दूसरे ढंग से सत्ता पर बैठने के लिए मोहरे तैयार कर रही है।

पाकिस्तान में इधर शक्ति के दूसरे केन्द्र के तौर पर न्यायापालिका अपने आप को खडी की है। न्यायापालिका स्वयं खडी हुई है या फिर न्यायापालिका को सेना ने दूसरी शक्ति के तौर पर खडी की है? यह प्रश्न काफी जटिल और गंभीर है। दुनिया की कूटनीति अब इन दोनों प्रश्नों पर विचार करने लगी है। दुनिया की कूटनीति के लिए्र पाकिस्तान की न्यायापालिका की साख क्यों संदेह के घेरे में है?

वास्तव में सेना को लेकर पाकिस्तान के अंदर में भी न्यायापालिका की कथित सक्रियता को लेकर आवाज उठ रही है और कहा जा रहा है कि पाकिस्तान की न्यायापालिका और पाकिस्तान की सेना की कहीं न कहीं मिलीभगत जरूर है। पाकिस्तान की न्यायापालिका सिर्फ लोकतांत्रिक सत्ता को ही झकझोरने और लोकतांत्रिक सत्ता की साख को समाप्त करने में क्यों लगी हुई है। पाकिसतन की सेना बर्बरता और भ्रष्टचार के लिए जाने जाती है। सेना के जनरलों के रहन-सहन और उनके सरोकार अस्वीकार की श्रेणी में आते हैं।

एक तरफ तो पाकिस्तान की जनता जर्जर और नारकीय जीवन जीने के लिए मजबूर है, बाध्य है पर दूसरी ओर पाकिस्तान की सेना न केवल फिजुलखर्जी के लिए जाने जाती है बल्कि भ्रष्टचार के लिए जाने जाती है। सबसे बडी बात यह है कि पाकिस्तान की सेना कबायली इलाकों में मानवाधिकार का घोर उल्लंघन करती है, मानवाधिकार को कब्र बना कर रखी है, कबायली इलाको से हजारों युवक गायब है, गायब होने युवको के बारे में कहा जाता है कि सेना ने अपने अभियानों में गायब युवकों की हत्या की है।

यह सही है कि पाकिस्तान के अंदर में राष्ट्रीयताओं का संघर्ष जारी है, कई राष्ट्रीयताएं अपने लिए अलग देश मांगती है और पाकिसतन की संप्रभुत्ता को खारिज करती है। पाक की सेना राष्ट्रीयताओं की सक्रियता और राष्ट्रीयताओ की आवाज को कुचलने के लिए बर्बर हिंसा का सहारा लेती है। पर पाकिस्तान की न्यायापालिका कभी भी सेना को मानवाधिकार का पाठ नहीं पढाती है, पाकिसतन की न्यायापालिका कभी सेना को कानून और संविधान का पाठ नहीं पढाती है। सेना के खिलाफ भ्रष्टचार और बर्बर हिंसा के खिलाफ दायर होने वाली कानूनी याचिकाओ को या तो अनसुनी कर दी जाती है या फिर उसे लंबे काल के लिए ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है।

इसके विपरीत लोकतांत्रिक सत्ता के खिलाफ न्यायापालिका की सक्रियता सिर चढकर बोलती है। कथित भ्रष्टचार के मामले में नवाज शरीफ को प्रधानमंत्री पद से त्यागपत्र देना पडा है। नवाज शरीफ को दस साल की सजा हुई है। नवाज शरीफ ने अपनी सजा को दूसरे ढंग से प्रस्तुत किया है और कहा है कि उन्हें न्याय नहीं मिला है। जानना यह जरूरी है कि अभी जो राजनीतिक परिस्थितियां है उसमें नवाज शरीफ सर्वश्रेष्ठ राजनीतिज्ञ है।

पाकिस्तान के अंदर में नवाज शरीफ ही ऐसे राजनीतिज्ञ है जिनका आधार पूरे पाकिस्तान में हैं और इन्होंने पाकिस्तान की सेना के खिलाफ लंबी लडाई भी लडी है। मुशर्रफ ने इन्हें जेल में भी डाला था। नवाज शरीफ केन्द्रीय चुनाव से बाहर है, वे चुनाव नहीं लड सकते हैं। पर उनकी पार्टी चुनाव लड रही है। नवाज शरीफ अपने आप को भगौडा घोषित नहीं किया। नवाज शरीफ राजनीतिक दिलेरी दिखायी। लंदन से आकर जेल गये। यह दिखाता है कि नवाज शरीफ पाकिस्तान के लिए पूरी तरह से समर्पित हैं।

पाकिस्तान की सेना किसी भी स्थिति में नवाज शरीफ की पार्टी को सत्ता में नहीं आने देना चाहती है। इसलिए वह तरह-तरह के हथकंडे अपना रही है। नवाज शरीफ के उम्मीदवारों को धमकाया जा रहा है, उन पर तरह-तरह के मुकदमे लादे जा रहे हैं, चुनाव रैलियों में हिंसा करायी जा रही है। उल्लेखनीय है कि चुनाव रैलियों में हुई हिंसा में सैकडों लोग मारे गये हैं। नवाज शरीफ की पार्टी ने सेना पर सीधे हमला कर लोकतंत्र को मोहरा बनाने का आरोप भी लगायी है।

पाकिस्तान की सेना का झुकाव इमरान खान की पार्टी और मजहबी रूझान वाली पार्टियों को चुनाव जीताने का है। इमरान खान और उनकी पार्टी मजहबी हिंसकों का समर्थन करती है, आतंकवादियों की भी तरफदारी करती है। जबकि मजहबी पार्टियां पाकिस्तान को और कट्टरपंथी हिंसा में बदलना चाहती है, सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि पाकिसतन की कट्टरपंथी मजहबी पार्टियां इस्लाम आधारित शासन भी चाहती हैं। मजहबी और कट्टंरपथियों के कारण ही पाकिस्तान आतंकवाद का घर बना हुआ है और आतंकवाद की आग में पाकिस्तान खुद जल रहा है।n किसी भी स्थिति में मोहरा लोकतंत्र स्वीकार नहीं हो सकता है। पाकिस्तान में अगर मोहरा लोकतंत्र कायम हो गया तो फिर पाकिस्तान की संप्रभुत्ता एक बार फिर खतरे में होगी। स्वच्छ और निष्पक्ष लोकतंत्र ही पाकिस्तान को बचा सकता है।

विष्णुगुप्त

 

 

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