2008 में नायक जगदीश की ड्यूटी बाबा अमरनाथ पर सुरक्षा हेतु लगाई गई
कुरुक्षेत्र, सच कहूँ-देवीलाल बारना। उस बच्चे पर क्या गुजरेगी, जो अभी मात्र दो महीने की नन्ही जान है और उसके सिर से पिता का साया चला जाए लेकिन वही पिता जब देश के लिए कुर्बान हुआ हो तो बच्चे की जिंदगी में पिता की कमी तो जरूर खलेगी परंतु उसे पूरी जिंदगी गर्व महसूस होगा कि वह देश के लिए कुर्बानी देने वाले पिता का बेटा है। कुरुक्षेत्र जिले के गांव हबाना निवासी नायक जगदीश सिंह भी देश की रक्षा करते हुए अपने दो माह के बच्चे को छोड़ कर कुर्बान हो गए।
जुलाई, 2008 में नायक जगदीश की ड्यूटी बाबा अमरनाथ पर सुरक्षा हेतु सैनिकों को तैनात करने की लगाई गई। अपनी ड्यूटी को बाखूबी करते हुए नायक जगदीश सैनिकों के साथ बाबा अमरनाथ की ओर बस में चल दिए। 19 जुलाई, 2008 को जब नायक जगदीश बाबा अमरनाथ पर सैनिकों को लेकर जा रहे थे तो जिस बस में नायक जगदीश बैठे थे उसके नीचे सड़क में जोरदार धमाका हुआ जिससे पूरी बस के परखचे उड़ गए। इस बम धमाके में 8 जवान मौके पर ही शहीद हो गए। जिसमें नायक जगदीश भी वीरगति को प्राप्त हो गए। फौज में ड्यूटी निर्वहन के लिए उन्हें सैन्य सेवा मैडल व स्पेशल सर्विस मैडल से सम्मानित किया गया।
बहनों की शादी कर ही करूंगा खुद शादी…
जगदीश की माता जीतो देवी जब उनके लिए बहू देखने की बात कहती तो जगदीश उन्हें रोक देते और कहते कि पहले वह अपनी बहनों की शादी करेगा, उसके बाद ही खुद शादी करूंगा। जगदीश एक बहन से छोटे थे, जबकि दो बहनों से बडेÞ थे। इसके बावजूद उन्होने पहले अपनी बहनों की शादी की व उसके बाद 12 अप्रैल, 1997 को उन्होने उषा रानी से खुद शादी की। उषा रानी ने बताया कि शादी के समय वे दो माह के लिए छुट्टी पर घर आए थे।
तीन बहनों के इकलौते भाई थे जगदीश
शाहबाद खंड़ के गांव हबाना में पिता कीडू राम व माता जीतो देवी के घर जन्मे नायक जगदीश का जन्म 19 अक्तूबर 1972 को हुआ। पिता कीडूराम ने अपने बेटे जगदीश व तीन बेटियों माया देवी, लक्ष्मी व मीना को दिहाडी मजूदरी का कार्य कर पालपोष कर बड़ा किया। जगदीश ने नजदीकी गांव खानपूर से प्राईमरी व गांव खानपुर के सरकारी स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा पास की।
शहीद जगदीश सिंह अमर रहे के नारों से गूंज गया था हबाना
19 जुलाई, 2008 को नायक जगदीश सिंह शहीद हुए। शहीद होने के बाद 20 जुलाई को सुबह 7 बजे गांव में उनके शहीद होने का समाचार प्राप्त हुआ। 22 जुलाई को जैसे ही तिरंगे में लिपट कर शहीद का पार्थिव शरीर गांव में पहुंचा तो पूरे गांव में शौक की लहर दौड़ गई। हजारों लोगों ने शहीद की शव यात्रा में भाग लिया। पूरा गांव शहीद जगदीश अमर रहे व भारत माता की जय के नारों से गूंज उठा। शहीद जगदीश के पिता कीडू राम ने नम आंखों से बताया कि उनके शहीद होने का पता चलने के दो दिन बाद गांव में उनका पार्थिव शरीर पहुंचा। इन दो दिनों के अंतराल में पूरे गांव में इतना गमगीन माहौल बन गया था कि किसी के घर चूल्हा तक नहीं जला।
मां के ना चाहने के बावजूद हुए फौज में भर्ती
जगदीश सिंह की मां जीतो देवी नहीं चाहती थी कि उसका बेटा फौज में भर्ती हो। वे चाहती थी की उसका एक ही बेटा है इसलिए वह उनके पास रहे। लेकिन जगदीश के मन में तो बचपन से फौज का जज्बा सवार था। इसके चलते ही जगदीश 28 अप्रैल, 1992 को अंबाला छावनी में चल रही फौज की भर्ती में जाकर फौज में भर्ती हो गए। जगदीश अपनी मां से बिना बताए ही फौज में भर्ती होने गए थे।
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