बाल मुकुन्द ओझा
बढ़ती जनसंख्या के खतरों से जन साधारण को आगाह करते हुए लोगों में जागरूकता लाने के उद्देश्य से हर साल 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस मनाया जाता है। आज विश्व की जनसंख्या सात अरब 63 करोड़ से ज्यादा है। अकेले भारत की जनसंख्या लगभग 1 अरब 35 करोड़ के आसपास है। भारत विश्व का दूसरा सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है। आजादी के समय भारत की जनसंख्या 33 करोड़ थी जो आज चार गुना तक बढ़ गयी है। परिवार नियोजन के कमजोर तरीकों, अशिक्षा, स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता के अभाव, अंधविश्वास और विकासात्मक असंतुलन के चलते आबादी तेजी से बढ़ी है।
वर्तमान में जिस तेज दर से विश्व की आबादी बढ़ रही है उसके हिसाब से विश्व की आबादी में प्रत्येक साल आठ करोड़ लोगों की वृद्धि हो रही है और इसका दबाव प्राकृतिक संसाधनों पर स्पष्ट रूप से पड़ रहा है, इतना ही नहीं, विश्व समुदाय के समक्ष माइग्रेशन भी एक समस्या के रूप में उभर रहा है, क्योंकि बढ़ती आबादी के चलते लोग बुनियादी सुख-सुविधा के लिए दूसरे देशों में पनाह लेने को मजबूर हैं।भारत की पिछले दशक की जनसंख्या वृद्धि दर 17.64 प्रतिशत है। विश्व की कुल आबादी का आधा या कहें इससे भी अधिक हिस्सा एशियाई देशों में है।
चीन, भारत और अन्य एशियाई देशों में शिक्षा और जागरुकता की कमी की वजह से जनसंख्या विस्फोट के गंभीर खतरे साफ दिखाई देने लगे हैं। स्थिति यह है कि अगर भारत ने अपनी जनसंख्या वृद्धि दर पर रोक नहीं लगाई तो वह 2030 तक दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाला देश बन जाएगा। सम्पूर्ण विश्व में चीन को अपनी 1.42 अरब जनसंख्या के चलते विश्व में प्रथम स्थान हासिल है। वहीं दूसरी ओर भारत भी अपनी 1.35 अरब जनसंख्या के साथ विश्व में दूसरे नंबर पर है। विशेषज्ञों ने चिंता जताई है कि अगर भारत की जनसंख्या इसी दर से बढ़ती रही तो 2030 तक उसे विश्व में प्रथम स्थान हासिल हो जायेगा।
विभिन्न अध्ययनों से यह पता चला है कि सन 2025 तक भारत चीन को भी पछाड़ देगा और विश्व का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन जाएगा। इस तथ्य के बावजूद कि यहां जनसंख्या नीतियां, परिवार नियोजन और कल्याण कार्यक्रम सरकार ने शुरू किए हैं और प्रजनन दर में लगातार कमी आई है पर आबादी का वास्तविक स्थिरीकरण केवल 2050 तक ही हो पाएगा। उच्च जन्मदर और बेहतर सफाई व स्वास्थ्य व्यवस्था के चलते घट रही मृत्यु दर उच्च जनसंख्या वृद्धि दर की मुख्य वजहें हैं।
हमारी आबादी में अभी भी हर दिन पचास हजार की वृद्धि हो रही है । इतनी बड़ी जनसंख्या को भोजन मुहैया कराने के लिए यह आवश्यक है कि हमारा खाद्यान्न उत्पादन प्रतिवर्ष 54 लाख टन से बढ़े जबकि वह औसतन केवल 40 लाख टन प्रतिवर्ष की दर से ही बढ़ पाता है। जनसंख्या वृद्धि के दो मूल कारण अशिक्षा एवं गरीबी है। लगातार बढ़ती आबादी के चलते बड़े पैमाने पर बेरोजगारी तो पैदा हो ही रही है, कई तरह की अन्य आर्थिक और सामाजिक समस्याएं भी पैदा हो रही हैं । भारत के सामने अनेक समस्याएँ चुनौती बनकर खड़ी हैं। जनसंख्या-विस्फोट उनमें से सर्वाधिक है।
एक अरब भारतीयों के पास धरती, खनिज, साधन आज भी वही हैं जो 50 साल पहले थे परिणामस्वरूप लोगों के पास जमीन कम, आय कम और समस्याएँ अधिक बढ़ती जा रही हैं भारत के पास विश्व की समस्त भूमि का केवल 2.4 प्रतिशत भाग ही है जबकि विश्व की 16.7 प्रतिशत जनसंख्या भारत में निवास करती है। जनसंख्या में वृद्धि होने के साथ-साथ प्राकृतिक संसाधनों पर और भार बढ़ जाएगा। जनसंख्या दबाव के कारण कृषि के लिए व्यक्ति को भूमि कम उपलब्ध होगी जिससे खाद्यान्न, पेय जल की उपलब्धता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, इसके अलावा लाखों लोग स्वास्थ्य और शिक्षा के लाभों एवं समाज के उत्पादक सदस्य होने के अवसर से वंचित हो जाएंगे।
आधे बिलियन से अधिक भारतीय 25 वर्ष से कम आयु के हैं। जनसंख्या वृद्धि एक नयी चुनौती बनकर हमारे सामने आई है और आज भी इस पर काबू पाने में सरकार को कठिनाई हो रही है। जनसंख्या वृद्धि के दुष्परिणाम देश को भोगने पड़ रहे हैं। बढ़ती जनसंख्या की दुश्वारियां सिर चढ़कर बोलने लगी हैं। भूखों की संख्या निरंतर बढ़ रही हैं। विकास कार्य सिकुड़ रहे हैं। रोटी, कपडा और मकान की बुनियादी सुविधाओं की बात करना बेमानी हो गया है। विकास का स्थान विनाश ने ले लिया है। अधिक जनसंख्या के कारण बेरोजगारी की विकराल समस्या उत्पन्न हो गयी है। लोगों के आवास के लिए कृषि योग्य भूमि और जंगलों को उजाड़ा जा रहा है । इससे बचने का एक मात्र उपाय यही है की हम येन केन प्रकारेण बढ़ती आबादी को रोकें। अन्यथा विकास का स्थान विनाश को लेते अधिक देर नहीं लगेगी।
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