मलेशिया सरकार ने विवादित इस्लामी प्रचारक जाकिर नाईक को तुरंत भारत के हवाले न करने की घोषणा कर विश्व स्तर पर फैली साम्प्रदायिकता को रोकने में रूकावट खड़ी कर दी है। मलेशिया का तर्क है कि जब तक नाईक की मौजूदगी से मलेशिया के लिए खतरा नहीं तब तक वह भारत को नहीं सौंपा जाएगा। तथ्य यह हैं कि आतंकवाद व साम्प्रदायिकता पूरी मनुष्यता के लिए खतरा हंै। इस संबंधी भारत-अमेरिका सहित दुनिया के दर्जनों देशों द्वारा आतंकवाद पर जानकारी साझा करने सहित एक-दूसरे देशों के अपराधी सौंपने की संधियां भी हो चुकी हैं। इन संधियों के कारण आतंकवादियों को अपने आसान ठिकाने भी बदलने पड़े हैं।
प्रर्त्यपण संधि के चलते पुर्तगाल ने आतंकवादी अब्बू सलेम को भारत को सौंपा था। पाकिस्तान भले नौटंकी कर रहा है लेकिन जोर-शोर के साथ यह भी कह रहा है कि अगर जक्की-उर-रहमान लखवी जैसे आतंकवादियों के खिलाफ भारत ठोस सबूत दें तो लखवी को भारत के हवाले कर दिया जाएगा। नि:संदेह आतंकवाद के खिलाफ विभिन्न देशों में हुए समझौतों से आतंंकवाद पर दवाब पड़ा है। यह तर्क वजनदार है कि आतंकवाद मानवीय जीवन पर कहर है व विश्व का कोई भी धर्म, कानून, संविधान निर्दोषों की हत्या को बर्दाश्त नहीं करता। जहां तक निर्दाेषों को मौत के घाट उतारने का सवाल है, इस संबंधी पूरी दुनिया में अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई का एक ही मापदंड होना चाहिए।
किसी एक देश का हत्यारा दूसरे देश देश में निर्दोष नहीं माना जा सकता। संयुक्त राष्टÑ जैसे अंतरराष्टÑीय मंचों को आतंकवाद के खात्मे के लिए सदस्य देशों के अपने ही कानूनों की रूकावट खत्म करने की आवश्यकता है। जिस व्यक्ति ने जिस देश में अपराध किया है वहां की अदालत ही उसके खिलाफ निर्णय सुनाएगी या संबंधित देश की जनता का भी कानून व न्याय में विश्वास बढ़ेगा। किसी भी कानून की सार्थकता उसके मानव कल्याणकारी होने में है। अगर किसी भी देश का कानून अन्य देशों के अपराधियों को सुरक्षा देता है तो वह देश अपराधियों को छुपाने से अधिक अपराधों की नर्सरी बनता चला जाएगा। आतंकवाद के खात्मे के लिए खर्च किए जा रहे हजारों-करोड़ों रूपये व सुरक्षा जवानों की शहादतें सफल हों इसके लिए आतंकवाद के खिलाफ समय अनुसार कार्रवाई अत्यावश्यक है।
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