पंजाब में नशों से बढ़ रही युवाओं की मौत से आमजन बहुत अधिक गुस्सा है। यूं तो पंजाबी नशों के चलते पिछले करीब 10-12 वर्षाें से ही त्रस्त हैं लेकिन जब से कैप्टन अमरिन्द्र ने अपने हाथ में गुरबाणी का पावन गुटका साहिब लेकर कसम खाई व पंजाबियों को भरोसा दिलाया कि वह एक माह में ही पंजाब से नशा खत्म कर देंगे तब से पंजाब वासियों का सब्र टूट पड़ा है। क्योंकि कैप्टन भी अब अपनी कसम को पूरा कर पाने में पंजाब वासियों को निराश कर रहे हैं। हालात इतने बदतर हैं कि शीर्ष पुलिस अधिकारियों व विधायकों पर आरोप लग रहे हैं कि पंजाब में ये लोग नशा तस्कारों को सरंक्षण दे रहे हैं।
जिसका एक नमूना सोमवार को पंजाब केबिनेट की बैठक में भी देखने को मिला। जब कुछ मंत्रियो ने मुख्यमंत्री से मांग की कि वह पूर्व अकाली मंत्री विक्रम सिंह मजीठिया के विरुद्ध चल रही जांच को पंजाब पुलिस के ऐसे काबिल अफसरों को सौंपे जो बिना किसी दवाब के इस जांच को पूरा कर सकें परंतु कैप्टन ने इस पर कोई जवाब न देकर मामला ईडी व सीबीआई के पास होना कहकर मांग को टाल दिया। परिस्थितियां इतनी गंभीर हो चुकी हैं कि पंजाब सरकार भी नशा तस्करों को मौत की सजा का प्रावधान चाहती है और केन्द्र से इस बारे में मांग कर सकती है। लेकिन यहां प्रश्न सजा का नहीं है यहां प्रश्न है तस्करों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं हो रही?
मौत की सजा तब संभव है जब जांच निष्पक्ष व तेजी से हो। उधर पंजाब में नशा तस्करों की सेहत पर जरा सा भी असर दिखाई नही पड़ रहा, जिसका नमूना पंजाब में हाल के दिनों नशा करने वाले युवाओं की मौत से साफ जाहिर है। हालात इतने बदत्तर हैं कि नशा तस्करों का विरोध करने वालों के हाथ-पांव तोड़ दिए जाते हैं। जल्द ही अगर कैप्टर अमरिन्द्र सिंह ने अपनी कसम को पूरा नहीं किया तब शायद ही उन्हें जनता व ईश्वर माफ करें।
पंजाब के रंगमंच व फिल्म उद्योग से जुड़े लोग भी नशा तस्करी के विरुद्ध अब सोशल मीडिया में अभियान चला रहे हैं जिसमें पंजाब व अफगानिस्तान की एक जोर अजमाईश के माध्यम से पंजाबियों के आत्म सम्मान को जगाने का प्रयास किया जा रहा है। अब सरकार या कला पंजाब को कौन बचा पाता है यह भी देखना होगा और यह भी नहीं भूलना चाहिए कि दोनों के अतीत ने ही पंजाब को नशों की दलदल में डुबोया है। नशों के कारण पंजाब की खुशमिजाज व समृद्ध नस्ल बर्बाद हो रही है। इसमें कोई दोराय नहीं।
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