स्विटजरलैंड के बैंकों में काले धन में 50 फीसदी वृद्धि हो जाना हमारे देश के सरकारी तंत्र की नाकामी के साथ सत्ताधारी पार्टी के वादों और दावों पर सवालिया निशान लगाता है। पहले आम नागरिक की यह आशा थी कि मोदी सरकार काला धन भले ही वापस नहीं ला सकती परंतु इसके अलावा धन बाहर भी नहीं जाने देगी।
ताजा रिपोर्ट ने इस आशा पर भी पानी फेर दिया तथा काला धन छलांग लगाता हुआ स्विटजरलैंड पहुंच रहा है। 2014 के लोक सभा चुनावों से पहले आम भारतीयो को लग रहा था कि ‘कालाधन’ वापस आया कि आया, ‘अच्छे दिन आए कि आए।’ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चुनाव प्रचार के हर मंच पर जनता को आकर्षित करने के लिए यह नारा बड़े जोरदार तरीके से लगाया था कि ‘अच्छे दिन आएंगे’ पर सरकार बनने के बाद सरकार या पार्टी के किसी प्रोग्राम में यह नारा नहीं दोहराया गया।
जिन तेल कीमतों में वृद्धि व मँहगाई को मुद्दा बनाकर भाजपा सत्ता में आई वह मँहगाई व तेल कीमतों ने सारे रिकार्ड तोड़ दिए। काला धन ना तो देश में पैदा होना बंद हुआ तथा ना ही बाहर जाने से रुका। काले धन के खिलाफ सात वर्षों की सजा का कानून बनाने के बावजूद जिनकी पहुंच है उन व्यापारियों का काला धंधा अभी भी चालू है। आम आदमी के दिल में यह धारणा बन चुकी है कि सरकार बदली लेकिन व्यवस्था नहीं बदली।
और तो और कुछ ठग हमारे देश के बैंकों को ही दिन दिहाड़े लूटकर ले गए, सरकार चुपचाप इस तमाशे को देखती रही। होना तो यह चाहिए था कि विजय माल्या लूटकर भागा उसके बाद ना कोई भागता लेकिन नीरव मोदी भाग गया। कानून पटरी पर नहीं आया जबकि इनसे दूर दोनों के भागने के बीच में काफी समय अंतराल है। ठग्गों को इस बात का पता है कि भारतीय शासन तंत्र में भागना बड़ा आसान है।
वर्षों से चल रही जांचों में कुछ भी हाथ नहीं आया। शासन प्रबंध में ऐसा चल रहा है लेकिन आम जन दुखी है राजनेताओं के भाषणों व सच्चाई में अंतर बहुत चौड़ा है। वैसे आम आदमी को यह समझना चाहिए कि चुनावी वायदे किसी नीति का हिस्सा नहीं, यह सब चुनावों की रणनीति है। राजनीति में ईमानदारी की चर्चा लोगों को भरमाने का काम करती है। आम आदमी को मिलने वाली सब्सिडी में कटौती करने वाली सरकार के लिए टैक्स चोरी रोकने के लिए जागने का वक्त है।
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