संयुक्त राष्ट ने जम्मू कश्मीर बारे अपनी रिपोर्ट में मानवीय अधिकारों के हनन का जिक्र किया है जिसको भारत सरकार तथा भारतीय सेना ने रद्द किया है। दरअसल संयुक्त राष्ट की रिपोर्ट में बुनियादी तथ्यों को ही नजरअंदाज कर दिया गया है। मानवीय अधिकारों के हनन के लिए सेना को जिम्मेदार बताया गया है पर यह तथ्य गायब है कि आखिर राज्य में सेना की तैनाती क्यों है?
कश्मीर में विदेशी आतंकवाद ने गड़बड़ फैलाई है। आतंकवादी कार्रवाई में सिर्फ पुलिस तथा फौज के जवान ही शहीद नहीं होते बल्कि आम नागरिक भी मारे जा रहे हैं। आतंकवाद के खिलाफ आवाज उठाने वाले पत्रकार शुजात बुखारी के कत्ल के पीछे भी पाकिस्तान आधारित आतंकवादी संगठन का हाथ बताया जा रहा है।
सरहदी गांवों पर पाक रेजरां की गोलीबारी ने घरों को छलनी कर दिया है। लाखों लोग घर से बेघर हो चुके हैं। ऐसे हालातों में आतंकवाद का जिक्र ही ना करना रिपोर्ट तैयार करने वाले विशेषज्ञ पर शक की सुई जाती है। फौजी कार्रवाइयों में मानवीय अधिकारों की रक्षा का मसला होता है तथा इस बात पर पहरा देने की जरूरत होती है। जम्मू कश्मीर में सुरक्षा कर्मियों की ज्यादतियों के कारण उन पर मुकदमें भी हुए और उन्हें सजाएं भी सुनाई गर्इं। कानून के आगे हर गुनहगार बराबर है।
ये मिसालें ही इस बात का सबूत हैं कि कश्मीर में मानवीय अधिकारों की रक्षा के लिए पूरा कानूनी ढांचा है। ऐसी व्यवस्था में सुरक्षा बल मानवीय अधिकारों के प्रति जिम्मेदार बने रहते हैं। संयुक्त राष्टÑ जैसी प्रतिष्ठित संस्था द्वारा तथा आंकड़ों की जांच किये बिना ही जम्मू कश्मीर में मानवीय अधिकारों के हनन का मुद्दा बनाना एकतरफा तथा किसी उद्देश्य की तरफ प्रेरित होता नजर आता है। जम्मू कश्मीर में चल रहे अरबों रुपये के उन विकास कार्यों को रिपोर्ट में जगह नहीं मिली जो आम कश्मीरियों की बेहतरी के लिए किये जा रहे हैं।
ऐसी रिपोर्टें आतंकवाद से निपटने में विश्व की समस्या है तथा कश्मीर में आतंकवाद को भी इससे अलग नहीं किया जा सकता। मानवीय अधिकारों के नाम पर आतंकवाद को बढ़ने देना जायज नहीं। आतंकवाद के खिलाफ अंतर्रराष्टय मंचों को स्थितियों की बारीकियों को देखने की जरूरत है।
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