दिल्ली में सांसद व अधिकारियों के आवास निर्माण के लिए पेड़ काटने की तैयारी पर दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक लोकहित बाद में करीब 16500 पेड़ों को काटने पर रोक लगा दी है। विगत दो तीन साल से केन्द्र व राज्य सरकारें, स्थानीय सरकारें निर्माण कार्याें के विस्तार में करोड़ों पेड़ काट चुकी हैं। हाईवे निर्माण, शहरी आवासीय सैक्टरों के निर्माण, नये संस्थान व उद्योगों के निर्माण के लिए पेड़ों का कटना दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। सरकार द्वारा निर्माण के लिए पेड़ों का कटान वह है जो समाचार बनता है, जन विरोध के चलते हर किसी के जेहन में रहता है कि पेड़ कट रहे हैं। लेकिन जो पेड़ आम पब्लिक अपने स्तर पर काट रही है उनका कोई स्पष्ट व ज्ञात आंकड़ा ही नहीं है। वह भी करीब-2 उतनी ही संख्या में होगा जितने पेड़ सरकार कटवा रही है। जबकि भारतीय वन अधिनियम 1927 के अनुसार एक पेड़ काटने पर 10,000 रूपये जुर्माना या तीन माह की सजा का प्रावधान है। हालांकि यह सजा बिना मंजूरी पेड़ काटने पर है, अनुमति से पेड़ काटने पर नए पेड़ लगाना अनिवार्य है।
यहां प्रशन अनुमति या जुर्माने का नहीं हैं यहां प्रश्न यह है कि पेड़ काटकर क्यों मानव अपने व दूसरों के प्राकृतिक आवास को बिगाड़ रहा है। सरकार, प्रशासन ये महज एक व्यवस्था है इन्हें गर्मी, सर्दी, भूख प्यास किसी का अहसास नहीं है। मनुष्य भले ही वो सांसद है, प्रशासक है, आमजन है, जिसे सड़क या फ्लैट चाहिए वह भी जो बिना सड़क या फ्लैट के है उसे भी पेड़ों की जरूरत बराबर है। एक पेड़ तैयार होने में वर्षाें लगते हैं लेकिन वह एक घंटे से भी कम समय में काट लिया जाता है। पेड़ों का कटान व कं क्रीट का निर्माण पूरी दुनिया की समस्या है, जिसके कारण आज पृथ्वी दिन-ब-दिन एक गर्म ग्रह बन रही है।
पृथ्वी अरबों जीवों का निवास स्थान है, जिनके लिए इसका अपना प्राकृतिक जीवन है। लेकिन कोई भी देश या सरकार इस दिशा में कागजों से बाहर कहीं गंभीर नजर नहीं आ रही। अब दिल्ली में सांसदों व प्रशासकों के आवासों की यदि बात करें तब दिल्ली के पास के महानगरों नोयडा, गाजियाबाद, गुरुग्राम, फरीदाबाद में लाखों फ्लैट हैं, जो कि बिक नहीं रहे, उनमें से किसी प्रॉजैक्ट को खरीदना केन्द्र व राज्य सरकारों के लिए कौनसी बड़ी बात है? इससे उन लोगों का भी फायदा होगा जो मन्दी या किसी अन्य कारण से अपना प्रॉजैक्ट नहीं पूरा कर पा रहे या खरीददार जो किसी कारण वश अपने बुक करवाए फ्लैट नहीं खरीद पा रहे। ऐसे लोगों को उनका रूका हुआ पैसा भी वापिस मिल सकेगा व पर्यावरण भी बचेगा।
अफसोस कोई सरकार ज्यादा दूर का नहीं सोच पाती और तुर्रत-फुर्रत किसी समस्या से निजात पाने के लिए आधे अधूरे रास्ते खोजती रहती है। देश में अभी भी अरबों पेड़ों की आवश्यकता है। भारत के महानगरों में करोड़ों आवास बेनामी सम्पति के रूप में पड़े हैं, उन्हें ढूंढकर भरा जाना चाहिए। सड़कों पर यातायात का व्यवसायिक भार बढ़े, गैर व्यावासायिक वाहनों का बोझ कम किया जाए ताकि निर्माण कार्याें की अंतहीन श्रृंखला को थामा जा सके। बढ़ती आबादी को भी रोका जाए। जो संस्थाएं देश में पौधारोपण करें, पेड़ों का संरक्षण करें, उन्हे प्रोत्साहित किया जाए। देश को हरा-भरा बनाया जाए न कि बेजान कं क्रीट का शहर।
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