योगेश कुमार गोयल
नशा चाहे किसी भी चीज का हो, जानलेवा होता है लेकिन मादक पदार्थों का नशा तो लोगों को बुरी तरह पंगु बना देता है। नशीले पदार्थों के दुरूपयोग की समस्या विश्वव्यापी समस्या बन चुकी है। मादक पदार्थों का सेवन अब मानवता के प्रति सबसे बड़े अपराध का रूप धारण कर चुका है। भारत में भी मादक पदार्थों के सेवन की प्रवृत्ति बढ़ रही है, जो चिन्ता का विषय है। यह प्रवृत्ति अब केवल शहरी क्षेत्रों तक ही सीमित नहीं रही है बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी इसका असर देखा जा रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में अफीम, चरस, गांजा, हेरोइन आदि के अलावा इंजैक्शन के जरिये लिए जाने वाले मादक पदार्थों का इस्तेमाल भी होने लगा है।
भारत में नशीले पदार्थों का सेवन करने वालों में लगभग 40 प्रतिशत कालेज छात्र हैं, जिनमें लड़कियों की संख्या भी काफी है और देश के विभिन्न कालेजों में स्थिति यह है कि कालेजों के अंदर ही बड़ी आसानी से नशीले पदार्थ उपलब्ध हो जाते हैं। स्कूल-कालेजों के छात्र अक्सर अपने साथियों के कहने या दबाव डालने पर या फिर मॉडर्न दिखने की चाहत में इनका सेवन आरंभ करते हैं। कुछ युवक मादक पदार्थों से होने वाली अनुभूति को अनुभव करने के लिए, कुछ रोमांचक अनुभवों के लिए तो कुछ मानसिक तौर पर परेशानी अथवा हताशा की स्थिति में इनका सेवन शुरू करते हैं। मानव जीवन की रक्षा के लिए बनाई जाने वाली कुछ दवाओं का उपयोग भी लोग अब नशा करने के लिए करने लगे हैं।
कोई व्यक्ति इन मादक पदार्थों की गिरफ्त में एक बार फंस जाए तो उसका इससे बाहर निकल पाना बेहद कठिन हो जाता है। मादक पदार्थ मानव शरीर की सुन्दरता को नष्ट कर मानव शरीर को खोखला बनाते हैं। इनका उपयोग युवा पीढ़ी की क्षमताओं को नष्ट कर उनकी सृजनशीलता को मिटा रहा है तथा देश के सामाजिक और आर्थिक ढ़ांचे को पंगु बना रहा है। एक बार मादक पदार्थों की लत लग जाए तो व्यक्ति इनके बिना रह नहीं पाता। यही नहीं, उसे पहले जैसा नशे का प्रभाव पैदा करने के लिए और अधिक मात्रा में मादक पदार्थ लेने पड़ते हैं। इस तरह व्यक्ति इनका गुलाम बनकर रह जाता है।
अधिकांश लोगों में गलत धारणाएं विद्यमान हैं कि मादक पदार्थों के सेवन से व्यक्ति की सृजनशीलता बढ़ती है और इससे व्यक्ति में सोच-विचार की क्षमता, एकाग्रता तथा यौन सुख बढ़ता है लेकिन वास्तविकता यही है कि नशे के शिकार लोगों की सोच-विचार की क्षमता और इसकी स्पष्टता खत्म हो जाती है तथा उनके कार्यों में भी कोई तालमेल नहीं रहता। इनके सेवन से कुछ समय के लिए संकोच की भावना जरूर मिट जाती है लेकिन अंतत: इससे शरीर की सामान्य कार्यक्षमता में गिरावट आती है।
नशीली दवाओं का बढ़ता दुरूपयोग
नशीली दवाएं ऐसे रासायनिक पदार्थ हैं, जो हमारे शरीर की कार्यप्रणाली को बदल देते हैं। कोई भी रसायन, जो किसी व्यक्ति की शारीरिक या मानसिक कार्यप्रणाली में बदलाव लाए, मादक पदार्थ कहलाता है और जब इन मादक पदार्थों का उपयोग किसी बीमारी के इलाज या बेहतर स्वास्थ्य के लिए दवा के तौर पर किया जाए तो यह मादक पदार्थों का सही उपयोग कहलाता है लेकिन जब इनका उपयोग दवा के रूप में न होकर इस प्रकार किया जाए कि इनसे व्यक्ति की शारीरिक या मानसिक कार्यप्रणाली को नुकसान पहुंचे तो इसे ‘नशीली दवाओं का दुरूपयोग’ कहा जाता है।
इसे पांच भागों में बांटा गया है:- 1. उत्तेजक:- ये वे मादक पदार्थ हैं, जो मस्तिष्क के केन्द्रीय तंत्रिका तंत्रों की सक्रियता बढ़ा देते हैं। जैसे, बैंजोड्रिन, डैक्सेड्रिन, मैथेड्रिन, कोकीन, निकोटीन आदि।
2. उपशामक (डिप्रेसेंट):- ये मादक पदार्थ मस्तिष्क की सक्रियता कम कर देते हैं। ये पदार्थ हैं, अल्कोहल, सिकोनाल, नेमब्यूटाल, गाडेर्नाल, वैलियम, लिबियम, मैन्ड्रेक्स, डोरिडेन आदि।
3. निश्चेतक और दर्दनाशक:- अफीम, मॉर्फीन, कोकीन, हेरोइन, ब्राउन शूगर, मेथाजेन, पेथीडीन, मेप्राडीन आदि।
4. भांग से बने पदार्थ – गांजा, हशीश, चरस आदि।
5. मतिभ्रम पैदा करने वाले पदार्थ: – ये पदार्थ हमारे देखने, सुनने और महसूस करने की क्षमता पर बुरा प्रभाव डालते हैं।
मादक पदार्थों के सेवन के लक्षण
मादक पदार्थों के सेवन का आदी हो जाने पर व्यक्ति में प्राय: निम्नलिखित लक्षण प्रकट होते हैं:-
खेलकूद और रोजमर्रा के कार्यों में दिलचस्पी न रहना, भूख कम लगना, वजन कम हो जाना, शरीर में कंपकंपी छूटना, आंखें लाल, सूजी हुई रहना, दिखाई कम देना, चक्कर आना, उल्टी आना, अत्यधिक पसीना आना, शरीर में दर्द, नींद न आना, चिड़चिड़ापन, सुस्ती, आलस्य, निराशा, गहरी चिन्ता आदि। सुई के जरिये मादक पदार्थ लेने वालों को एड्स का खतरा भी रहता है।
मादक पदार्थों की तस्करी: मादक पदार्थों की तस्करी नशे के सौदागरों के लिए सोने का अंडे देने वाली मुर्गी साबित हो रही है। यह अवैध व्यापार निरन्तर फल-फूल रहा है, जिसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि विश्व की कुल अर्थव्यवस्था का 15 फीसदी हिस्सा यही व्यापार रखता है। भारत से मादक पदार्थों की तस्करी अफगानिस्तान, पाकिस्तान, चीन, बर्मा, ईरान आदि देशों के जरिये होती है और मौका मिलते ही ये मादक पदार्थ तस्करी के जरिये पश्चिमी देशों में पहुंचा दिए जाते हैं। हालांकि भारत इस अवैध व्यापार में तस्करों के लिए केवल एक पड़ाव का काम करता है लेकिन इसके दुष्प्रभावों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता क्योंकि इस अवैध व्यापार का तस्करी, आतंकवाद, शहरी क्षेत्र के संगठित अपराध तथा आर्थिक एवं व्यावसायिक अपराधों से काफी करीबी रिश्ता है। इंटरनेशनल नारकोटिक्स कंट्रोल बोर्ड की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भौगोलिक स्थिति के कारण भारत नशीली दवाओं की तस्करी के लिए सबसे अच्छा रास्ता बन गया है।
मादक पदार्थों के अवैध व्यापार से संबंधित कानूनआरंभ में भारत में नशीली दवाओं से संबंधित कानून बहुत पुराने थे, जिनमें अवैध व्यापार के लिए बहुत कम सजा का प्रावधान था, इसलिए स्वापक औषधि और मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985 बनाया गया, जो 14 नवम्बर 1985 से लागू हुआ। 1961 में भारत ने नशीली दवाओं के बारे में अंतर्राष्ट्रीय करार पर और 1988 में नशीली दवाओं तथा मदहोशी पैदा करने वाले पदार्थों के अवैध व्यापार पर रोक संबंधी संयुक्त राष्ट्र के करार पर हस्ताक्षर किए, इसलिए 1988 में भारत में एक और अधिनियम बनाया गया जिसे ‘स्वापक औषधि और मन:प्रभावी पदार्थ के अवैध व्यापार की रोकथाम अधिनियमझ् नाम दिया गया। इसमें जेल की कड़ी सजा और जुमार्ने के साथ नशीली दवाओं का अवैध धंधा करने वालों को मौत की सजा देने तथा उनकी सम्पत्ति जब्त करने का प्रावधान भी किया गया। 1989 में अंतर्राष्ट्रीय समझौतों के तहत कुछ जिम्मेदारियां पूरी करने के लिए इसमें कुछ और संशोधन किए गए।
हालांकि हमारे यहां के कानून अन्य देशों के मुकाबले बहुत कड़े हैं, फिर भी अपराधी अक्सर कानून की कुछ खामियों की वजह से बच निकलते हैं और यही कारण है कि मादक पदार्थों का अवैध व्यापार भारत में निरन्तर फल-फूल रहा है। आज हमारी युवा पीढ़ी जिस कदर मादक पदार्थों की शिकंजे में फंस रही है, उसके मद्देनजर समाज का यह कत्र्तव्य है कि वह युवा पीढ़ी का मार्गदर्शन करते हुए उसे उचित मार्ग दिखलाए और यदि उसके कदम भटक रहे हों तो उसे गलत मार्ग पर चलने से रोके। इसे अपना उत्तरदायित्व समझकर समाज को इस दिशा में कार्रवाई करनी चाहिए। यह कार्य सिर्फ सरकार के ही भरोसे छोड़ देना उचित नहीं है।
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