गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पारीकर अमेरिका में ईलाज करवाने के बाद देश वापिस आए हैं। अब वो तंदरुस्त हैं। उनके जैसे ही देश के अन्य बहुत सारे नेता और अमीर लोग विदेशों में ईलाज करवाते रहे हैं। इसका सीधा सा अर्थ यही है कि देश में ईलाज की पूरी व प्रभावी सुविधाएं नहीं हैं। सुविधाओं की कमी के चलते अमीर व सरकारी लोग अमेरिका में ईलाज करवा लेते हैं लेकिन आम लोगों की हालत काफी दयनीय है। सरकारी अस्पतालों में जरूरत की सुविधाएं मुहैया नहीं होती या भ्रष्टाचार के कारण आमजन परेशान होते देखे जाते हैं।
दिल्ली, मुंबई जैसे मंहगे निजी अस्पतालों में आम आदमी नहीं जा सकते। सेहत संबंधी नीति के सरकारी दावे तब धरे-धराये रह जाते हैं, जब नेताओं व लोगों को मिल रही सेहत सुविधाओं में बड़ा अंतर देखा जा सकता है। दरअसल अभी हमारे देश का ढांचा अमीर और गरीब के लिए अलग-अलग चल रहा है, ऊपर से कैंसर जैसी लाईलाज बीमारी लगातार बढ़ रही है, जिसका ईलाज गरीब व्यक्ति करवा ही नहीं सकता। केन्द्र सरकार ने 10 करोड़ परिवारों के लिए सेहत बीमा योजना शुरू की है,
जिसके तहत 5 लाख का बीमा होगा, लेकिन इन योजनाओं को प्रभावी ढंग से लागू करने की जरूरत है। राज्य सरकारों की तरफ से कैंसर पीड़ितों के लिए डेढ़ लाख रूपये की सहायता राशि दी जाती है, वहीं ऐसे कई मामले हैं जब मरीज सहायता राशि मिलने से पहले ही इस दुनिया से चला गया। सेहत संबंधी योजनाओं को प्रभावशाली ढंग से इस तरह लागू किया जाए कि इसकी प्रक्रिया सरल और तीव्र हो। सरकारी सहायता राशि भ्रष्ट निजी अस्पतालों की कमाई का बड़ा साधन बन रही है।
सरकारी योजनाओं को निजी अस्पतालों से जोड़ने की बजाय सरकारी अस्पतालों में सुधार किये जायें। भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे निजी अस्पतालों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। सेहत योजनाओं में भ्रष्टाचार खत्म होना चाहिए। एक देश एक नागरिक के सिद्धांत को लागू करने की जरूरत है।
यदि देश में सेहत सुविधाएं सही होंगी तब राजनेताओं को भी विदेशों में जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। यह बिल्कुल उसी तरह है, जैसे यह मांग उठती है कि सरकारी स्कूलों की स्थिति सुधारने के लिए अधिकारी व राजनेताओं के बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ने जरूरी किए जाएं। यदि राजनेता सरकारी अस्पताल में ईलाज करवाएंगे तो वाकई सरकारी अस्पताल की स्थिति सुधरेगी।
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