दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के दो अन्य नेताओं की तरफ से उप राज्यपाल के विरूद्ध धरना देने से केन्द्र, राज्य सरकार और संवैधानिक संस्थाओं का तमाशा बन गया है। आप सरकार से नाराज आईएएस अफसर हड़ताल पर हैं और दिल्ली का सारा कामकाज ठप्प पड़ा है। इस सारे मामले में कोई भी पक्ष सद्भावना से काम करने के बजाय नहले पे देहला मारने की कोशिश कर रहा है। अरविंद केजरीवाल के उपराज्यपाल के खिलाफ धरने को पार्टी नेता सर्जीकल स्ट्राइक करार दे रहे हैं।
दरअसल केजरीवाल शुरु से ही धरने के पैंतरे को अपनाते आ रहे हैं जिसके द्वारा वह अपनी जिम्मेदारी से भी बचते हैं और लोगों की लोकप्रियता भी हासिल करते हैं। मुख्यमंत्री का काम धरने देने नहीं बल्कि इस संबंधी बातचीत का माध्यम अपनाना चाहिए। केजरीवाल आईएएस अफसरों को मनाने के लिए तैयार हैं। फिर भी मुख्यमंत्री केन्द्र तक समय पर नहीं पहुंचे, धरने के चौथे दिन केजरीवाल को प्रधानमंत्री याद आए हैं। सरकार के ऊं चे पद पर बैठे मुख्यमंत्री को केन्द्र से बातचीत समेत सौ तरीके अपनाकर भी टकराव वाली स्थिति से बचना चाहिए था। आम आदमी पार्टी ने अपने आप हास्यस्पद स्थिति बना ली है।
यदि प्रधानमंत्री ने ही उनकी सहायता करनी थी तब केन्द्र को चिट्ठी लिखने का फैसला पहले क्यों नहीं लिया गया? देश के इतिहास में यह अनोखा उदाहरण है जब किसी मुख्यमंत्री ने राज्यपाल के खिलाफ धरना दिया हो। आप की तरफ से राज्यपाल पर यह आरोप लगाना भी काफी हैरानीजनक है कि आईएएस उप राज्यपाल के इशारे पर हड़ताल कर रहे हैं। आईएएस अफसरों की तरफ से हड़ताल पर जाना भी अनोखी घटना है। ऐसे टकराव को लम्बा खींचने से जहां प्रशासनिक ढांचा चरमराता है वहीं संविधानिक संस्थाओं की गरिमा को ठेस पहुंचती है। केंद्र को मामले में दखल देकर कोई ना कोई हल निकालना चाहिए। विरोध और लोकप्रियता हासिल करने के लिए संवैधानिक संस्थाओं की आड़ लेना चिंताजनक है। ये चीजें राजनीतिक लाभ के लिए ओछी राजनीति की निशानी हैं।