लाल बहादुर शास्त्री देश के गृहमंत्री रहे हैं लेकिन गृहमंत्री होते हुए भी उनके पास अपना घर नहीं था। वह समय था सादगी व आम आदमी का। अमीर न होने के बावजूद वह राजनीति में कामयाब हुए व प्रधानमंत्री के पद तक पहुंचे। आज के जमाने में देश में करोड़ों लोगों के पास अपने घर नहीं है। गरीब के अलावा मध्यम वर्गीय भी अपने घर के लिए बड़ी मेहनत कर रहा है। ऐसे हालातों में अगर किसी राज्य का कोई पूर्व मुख्यमंत्री अपना कार्यकाल पूरा होने के बाद भी सरकारी बंगला न छोड़े तो हैरानी होती है।
सरकारी बंगले खाली करवाने के लिए सुप्रीम कोर्ट को दखल देना पड़ रहा है। उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने सुप्रीम कोर्र्ट की दखल के बाद सरकारी बंगला खाली किया है। इसी तरह मायावती, नारायण दत्त तिवाड़ी, राजनाथ सिंह उन नेताओं में शामिल हैं, जिनको सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी बंगला खाली करने के निर्देश दिए थे। पूर्व मुख्य मंत्री अखिलेश यादव ने सरकारी बंगले में रिहायश बरकरार रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच की है। इधर पंजाब की पूर्व मुख्यमंत्री बीबी राजिन्द्र कौर भट्ठल के पास भी सरकारी रिहायश है।
सरकारी रिहायश खाली न करने की समस्या सिर्फ पंजाब या उत्तर प्रदेश की ही नहीं बल्कि लगभग संसद सदस्यों से लेकर देश भर में है। इस घटना चक्कर ने राजनीति के नकारात्मक पहलू को भी उजागर किया है। राजनेता सत्ता को सेवा की बजाए इसे अपना अधिकार समझने लगे हैं। सरकारी बंगले जनता की खून-पसीने की कमाई से ही बनते हैं। जनता के पैसे का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए। राजनीति में कभी त्याग भावना नहीं होती थी। नेता कुछ अपनी जेब से देकर भी जनता की सेवा करते थे लेकिन अब चलन हो गया है कि, जितना मिलता है ले लो।
वैसे पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने अच्छी पहल पेश की है। उन्होंने मुख्यमंत्री अमरेन्द्र सिंह द्वारा सरकारी रिहायश की पेशकश को यह कहकर स्वीकार नहीं किया था कि इस संबंधी कोई नियम नहीं है। वैसे भी आज के बहुत से राजनेता बहुत अमीर हैं, जिनके पास जमीन-जायदादें होने के साथ-साथ फैक्ट्रियां भी हैं। राजनीति में गरीब तो कोई-कोेई नेता ही रहा है, व न ही गरीब राजनीति में कामयाब होने का सपना देख सकता है। फिर भी अगर कोई राजनीति में अपनी जिम्मेवारी निभाता है तो तय समय के बाद उसे सरकारी रिहायश खाली कर नियमों का सम्मान करना चाहिए।