सरसा। पूज्य गुरू संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि मालिक का नाम और उसका प्यार वो अनमोल दात है, जिसे सिर्फ और सिर्फ इन्सान ही ले सकता है। चौरासी लाख जूनियों में बाकी की सब की सब गुलाम हैं। मनुष्य को अधिकार मिले हैं कि वो मालिक का नाम जपे और मालिक के प्यार को पाकर परमानंद को पाते हुए दोनों जहान की खुशियों से मालामाल हो जाए। आप जी फरमाते हैं कि यह सम्भव है, अगर इन्सान अपने पीर, मुर्शिद-ए-कामिल, गुरु-सतगुरु की बात को सुने। इन्सान पर जब मन हावी हो जाता है, तो एक कहावत है ‘बिगड़ेया मन गुरु का न पीर का’। मन जब अपनी आई पर आ जाता है, कोई गुरु के परोपकार, उसकी कृपा दृष्टि, उसका रहमों कर्म सब भुला देता है। बस एक ही धुन लगा देता है, किसी को काम वासना की, किसी को क्रोध, किसी को लोभ, किसी को मोह, किसी को अंहकार तो किसी को माया की। या फिर मन खुद इतना छा जाता है की इन्सान का बुद्धि-विवेक जवाब दे देता है। कोई भी अच्छी, नेक बात सुनने को वो इन्सान कभी तैयार होता ही नहीं। मालिक के प्यार की बात करो, परोपकार की बात करो, उसको यूं लगता है, ये तो सब बकबका सामान है। दुनियादारी, दुनियावी साजो सामान यूं लगता है, जैसे इससे मीठे पकवान दुनिया में कहीं नहीं हैं।
पूज्य गुरु जी ने फरमाते हैं कि ये संसार बड़े ही अजीबो-गरीब लोगों से भरा हुआ है। कोई मालूम नहीं, यहां कौन अल्लाह, वाहेगुरु, मालिक से कितना प्यार करता है, कौन पापों में गर्त है, कौन अच्छाई भलाई में आगे बढ़ता जा रहा है। किसके घर में परमानंद समाया है और कौन दु:ख, गम, चिंता, परेशानियों में घिरा हुआ है। आप जी ने फरमाया कि परमार्थ करो, तन-मन-धन से और शिक्षा दो, लेकिन जो परमार्थ करने वालों को रोकते हैं, सेवा करने से रोकते हैं, उनका सब कुछ रुक जाया करता है। इसलिए आप सेवा कर नहीं सकते तो किसी को रोको न, अगर वो एक कदम बढ़ रहा है तो उसे कहो दो बढ़ा, तभी मालिक की खुशियों के हकदार बनोगे। इस संसार में भांत-भांत के लोग हैं। आज इन्सान के अंदर मन इतना हावी हो चुका है, किसी संतों की बात उसे सच्ची नहीं लगती। तो उनका मन इतना हावी है, कि सारी जिंदगी की करी-कराई भक्ति, चंद निंदक या बुरे लोगों के कहने से डोल जाता है।
बड़ा अजीबो-गरीब है, ये संसार, ऐसे संसार में, ऐसे युग में, अगर आप खुशियां हासिल करना चाहें तो संसार की न सुनो, बल्कि सुमिरन करो, सेवा करो व अपना काम-धंधा मेहनत के साथ करते रहो, तो मालिक खुशियां अवश्य बख्शेगा। किसी के कहने से किसी को दु:ख नहीं आता, आदमी जब बुरे कर्म किसी के कहने से करता है या मन के पीछे चलता है तो दु:ख भोगता है। सारी दातें, सारी खुशियां भुला देता है, वो जिंदगी के क्षण भूल जाता है, कि सतगुरु, मालिक अगर रहमत न करता तो क्या होता। जिंदगी तिनकों की तरह बिखर जाती, पता नहीं कितना दुख उठाना पड़ता। आप जी फरमाते हैं कि जो सतगुरु के वचन नहीं सुनता अमल कैसे करेगा। ऐसे लोगों से सावधान रहें। अपने सतगुरु मौला के परोपकारों को भुलाओ ना। मुर्शिद-ए-कामिल का ऋण चुकाया नहीं जा सकता, रोम-रोम हर जन्म में अपने मालिक का परोपकार गाये तो भी गिनाया नहीं जा सकता।
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