एक कला है शिशु को नहलाना

Art, Baby Bathing

नन्हा शिशु बहुत कोमल होता है। जरा सी लापरवाही उसके लिए नुकसानदेह हो सकती है। इस कला में निपुण होने के लिए निम्न बातों पर ध्यान देना जरूरी है। बच्चे को नहलाते समय आपकी यही कोशिश होनी चाहिए कि वह पानी से डरने की बजाय स्नान में आनंद व प्रसन्नता का अनुभव करे। बच्चे को टब में बैठाकर नहलायें। पानी से किलोल करने में उन्हें आनंद आता है, जिसे वे अपनी किलकारियों से प्रकट करते हैं। उसके इस आनंद में आप भी शामिल हों और अपना व अपने बच्चे का आनंद बढ़ायें। शिशु को नहलाना शुरू करने के पहले सभी आवश्यक सामान अपने पास पहले ही रख लें ताकि आपको बीच में उठना न पड़े। बच्चे को नहलाने का समय तभी निश्चित करें, जब आपके पास पर्याप्त समय हो। हडबड़ी में नहलाने से बच्चा पानी से भय खा सकता है। नहलाने से पहले बच्चे के शरीर की तेल से मालिश करें। मालिश करते समय सावधानी बरतें कि हाथ कोमलता से चलें और बच्चों के नाजुक अंगों को कोई झटका न लगे।

मालिश के कुछ समय बाद ही नहलाना ठीक रहता हैं। सर्दी में बच्चों को धूप-स्नान देने के बाद ही नहलाना चाहिए। मालिश के बाद नहलाने से बच्चे की त्वचा स्वस्थ होती है। बच्चे की मांसपेशियों को व्यायाम व विश्राम मिलता है और बच्चा तनाव-थकान मुक्त होकर आराम की नींद सोता है। नहलाते समय आपके हाथ एकदम साफ हों। नाखून कटे हुए हों। यदि आपके हाथ में चुभने वाली चूड़ी, घड़ी या अंगूठी है तो उसे उतार दें। शिशु को न तो दूध पिलाने के एकदम बाद नहलायें और न ही जब वह बहुत भूखा हो या किसी कारणवश रो रहा हो। स्नान के बाद उसे भली भांति पोंछकर मौसम के अनुकूल वस्त्र पहनाकर दूध की खुराक दें ताकि पेट भर जाने के बाद ता़जगी व प्रफुल्लता से शांति व आराम से देर तक सोता रहे। इस प्रकार आपकी थोेड़ी सी सावधानी व सूझबूझ बच्चों को स्वस्थ व प्रसन्नचित रखने में सहायक होगी और आप भी अपने साफ सुथरे लाडले को आराम से सोता खेलता देखकर खुश रहेंगी।

-मीना जैन छाबड़ा