पंजाब के वित्त मंत्री मनप्रीत सिंह बादल ने केन्द्र सरकार से अन्य उत्तरी राज्यों के मुकाबले अपने बजट में एक नई पहल की है, नए टैक्स लाने की। पिछले दो दशकों से यह एक रीत ही बन कर रह गई है कि बिना किसी नए टैक्स लगाए या बिना किसी टैक्स बढ़ाये ही बजट पास किया जाए ताकि आमजन पर अच्छा प्रभाव पड़े।
इस रूझान के कारण ही केन्द्र व राज्य सरकारों के बजट से अर्थ शास्त्रीय बिन्दु गायब होते चले गए व वोट बैंक की राजनीति हावी होती गई। जहां तक पंजाब के आर्थिक हालात हैं फंड जुटाने के लिए सख्त फैसले आवश्यक हैं। मनप्रीत बादल अकाली भाजपा सरकार में भी वित्त मंत्री रहे हैं, तब भी उन्होंने सब्सिडियोें के खिलाफ व सख्त फैसलों को अपना समर्थन दिया था। कांग्रेस सरकार में अपने पहले बजट में वह सरकार की निर्धारित लाईन से दूर नहीं जा सके लेकिन अब उन्होंने अपने अर्थ शास्त्रीय नजरिए अनुसार फैसला लिया है।
लेकिन प्रोफैशनल टैक्स को छोड़कर बजट में ऐसे कोई प्रभावी लक्ष्य नजर नहीं आ रहे, जिनसे राज्य को कोई राहत मिल सके। चुनावी मेनिफैस्टो में किए गए वायदे सरकार की मजबूरी बन गए हैं, जिनको हर हाल में पूरा करने का प्रयास किया जा रहा है। कर्ज माफी के लिए 4 हजार करोड़ रूपये से अधिक राशि रखी गई है, लेकिन यह तय समय में खर्च ही नहीं की जा रही। पिछले वर्ष कर्जमाफी के लिए 1500 करोड़ रूपये जारी किए गए थे लेकिन वर्षभर में अभी तक इसमें से आधी राशि भी नहीं बांटी गई।
बजट सिर्फ आंकड़ों को घुमाने-फिराने का नाम बन कर रह जाता है। आर्थिक बदहाली से गुजर रहे पंजाब को पटरी पर लाने के लिए सरकार नये टैक्स तो ला रही है लेकिन युवाओं को स्मार्ट फोन बांटने का फैसला बिल्कुल ही बेतुका है। जिस राज्य के पास वेतन देने के लिए राशि नहीं है वह सरकार नि:शुल्क स्मार्ट फोन बांटे, यह समझ से परे है।
पंजाबियों के पास स्मार्ट फोनों की यूं भी कोई कमी नहीं है। रिक्शा चालक से लेकर मजदूर तक सभी के पास आज के समय में स्मार्ट फोन हैं। उल्टा स्मार्ट फोन के गैर जरूरी प्रयोग से बच्चों के अभिभावक परेशान हैं। पंजाबियों को स्मार्ट फोन की नहीं बल्कि रोजगार की जरूरत है। कुल मिलाकर यह बजट पारम्परिक बजट से कमतर नई सोच वाला लेकिन ऊंट के मुंह में जीरे के समान है। राजनीति व अर्थ शास्त्र का कोई मेल नहीं है। राजनीति हवाई किलों का निर्माण करती है, अर्थ शास्त्र को कम से कम खर्च की चिंता होती है।