पूजनीय बेपरवाह सार्इं मस्ताना जी महाराज के 126वें पावन अवतार दिवस पर विशेष
जिनका नाम लेते ही जुबां पवित्र हो जाती है…! जिनके पवित्र जीवन की एक झलक देखते ही दिल धन्य-धन्य होकर उनके गुणगान करने लगता है…! जिनके मानवता भलाई हेतू किए गए कार्यों, रूहानी व सामाजिक मार्गदर्शन को देख हर कोई नतमस्तक हो जाता है… ऐसी ही महान हस्ती ‘पूजनीय बेपरवाह साईं मस्ताना जी महाराज’। आप जी ने डेरा सच्चा सौदा की स्थापना कर लोगों को परमात्मा का आसान व वास्तविक मार्ग दिखाया और लोगों में प्रेम, प्यार व भाईचारे की भावना पैदा की। आप जी की पावन शिक्षाओं से डेरा सच्चा सौदा ने हिन्दुस्तान ही नहीं अपितु पूरी दुनिया में विलक्षण पहचान बनाई। परम पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने जीवों के उद्धार के लिए धरा पर अवतार लिया तथा धर्म, जात, मजहब के फेर में उलझे मानव समाज को रूहानियत, सूफीयत की वास्तविकता का परिचय करवाकर इंसानियत का पाठ पढ़ाया।
…जब लिया अवतार
पूजनीय परम संत बेपरवाह सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज ने विक्रमी संवत 1948 सन् 1891 कार्तिक माह की पूर्णिमा को पूज्य पिता पिल्लामल जी के घर माता तुलसां बाई जी की पवित्र कोख से गांव कोटड़ा, तहसील गंधेय, जिला कलायत, बिलोचिस्तान (जोकि अब पाकिस्तान में है) में अवतार धारण किया।
घर में सब कुछ था पर पुत्र की कमी थी। पुत्र प्राप्ति के लिए पूज्य माता-पिता जी अपने ईष्टदेव, परमपिता परमात्मा से सच्चे दिल से कामना किया करते थे। वो साधु-संतों की, जो भी कोई अन्न, या भोजन-पानी की इच्छा से घर पर आते, पवित्र हृदय से उनकी आवभगत सेवा करते। एक बार पूजनीय माता जी की भेंट परमपिता परमात्मा के एक सच्चे व मस्त-मौला फकीर से हुई।
पूज्य माता-पिता जी की ईश्वर के प्रति सच्ची सेवा-भावना से प्रसन्न होकर उस फकीर ने कहा कि माता जी, पुत्र की कामना, ईश्वर आप जी की जरूर पूरी करेंगे।’ वो महान पवित्र दिन, जिसका पूज्य माता-पिता जी को वर्षों से इंतजार था, परमपिता परमात्मा की कृपा से उनके घर उसी का नूर पूज्य बेपरवाह मस्ताना जी महाराज के स्वरूप में अवतरित हुआ।
रूहानी बाल लीलाओं ने मोहा मन
पूज्य बेपरवाह जी के नूरी बचपन, उनके निराले चोज, आए दिन जीवन की अद्भुतता को निहार कर लोग दांतों तले अंगुली दबा लेते थे। आप जी के जीवन दर्शन की पवित्रता हर देखने वाले को अपना दीवाना बना लेती और वह आप जी की तरफ अपने आप ही खिंचा चला आता।
…साधुओं को खिला दी मिठाई
अभी आप जी छोटी आयु में थे कि आप जी के पूज्य पिता जी का साया आप जी के सिर से उठ गया। इस पर पूज्य माता जी ने एक मां के साथ-साथ पिता का भी फर्ज अदा करते हुए आप जी को पवित्र संस्कारों से ओत-प्रोत बनाया। थोड़ा बड़ा होने पर आप जी भी अपनी पूज्य माता जी के प्रति अपनी जिम्मेवारियों के लिए हमेशा सजग रहते।
एक दिन पूज्य माता जी ने आप जी को खोवा (खोये की मिठाई) की बिक्री के लिए भेजा। सिर पर मिठाई का थाल रखकर आप जी अपने घर से बाहर गांव के लिए निकले, रास्ते में एक जगह आप जी को एक साधु मिले जो कि भूख से बेचैन थे। आप जी ने सारी मिठाई उस साधु को खिला दी। आप जी ने सोचा कि खाली हाथ जाकर माता जी को क्या जवाब देंगे।
इतने में वहां पर एक आदमी आ गया। वह किसी मजदूर की तलाश में था। आप जी उसके साथ चल पड़े और उसके खेतों में दिनभर सख्त मेहनत की। वह किसान देखकर हैरान रह गया कि यह एक छोटा सा बच्चा है, इसने एक हृष्ट-पुष्ट आदमी से भी ज्यादा काम किया है,अवश्य ही यह कोई खास है। वह आप जी के साथ आप जी के घर पर पूज्य माता जी से मिला।
मजदूरी के पैसे आप जी ने पूज्य माता जी को देते हुए सारी बात बता दी। पूज्य माता जी की भी आंखें छलक आई और उन्होंने आप जी को छाती से लगा लिया। यह सब देखकर वह किसान भाई भी आत्म-विभोर हो गया। कर्त्तव्य-निर्वहन का ऐसा उदाहरण अपने आप में बेमिसाल है।
खेमामल जी से बने ‘मस्ताना शाह बिलोचिस्तानी’
आप जी के अंदर ईश्वरीय लगन बचपन से ही थी। आप जी साधु-महात्माओं में घंटों तक बैठकर उनकी सोहबत करते। जो कुछ भी पास में होता, सेवा-भावना के उद्देश्य से उनमें बांट देते। आप जी ने अपने घर में एक छोटा सा मंदिर भी बना रखा था। सोने की मूर्ति के आगे आप जी घंटों भक्ति, अराधना में बैठे रहते।
आप जी के अंदर सतगुरु के मिलाप की इतनी प्रबल तड़प लगी कि आप जी सच्चे गुरू की तलाश में निकल पड़े। इस दौरान आप जी की भेंट कई बड़े-बड़े महात्माओं से हुई जो रिद्धि सिद्धियों में प्रवीण थे, परंतु सच्चा मोक्ष, ईश्वर के मिलाप की सामर्था उनमें नही ंथी। अंत में आप जी डेरा बाबा जैमल सिंह ब्यास (पंजाब) में पहुंचे। पूजनीय हजूर बाबा सावण शाह जी महाराज उन दिनों हरियाणा के जिला सरसा के गांव सिकंदरपुर में थे। वहां से आप सिकंदरपुर पहुंचे।
पूज्य बाबा जी के जैसे ही आप जी ने दर्शन किए, तन-मन धन सब कुछ उन पर न्यौछावर कर उन्हें अपना सतगुरु, मौला, खुद-खुदा मान लिया। सो उस दिन से सतगुरु प्रेम की गाथाएं आप जी को हर समय मतवाला बनाए रखती। आप जी अपने सतगुरु मौला के प्रेम में कमर पे, मोटे-मोटे घुंघरू बांधकर नाचते और मौला सतगुरु सार्इं सावण शाह जी नित्य नए नए वचनों की बौछार आप जी पर करते रहते। पूज्य सावण शाह सार्इं जी ने आप जी का नाम खेमामल जी से ‘मस्ताना शाह बिलोचिस्तानी’ रखा।
बांटा सच्चे नाम का प्रसाद
पूज्य सार्इं जी ने धीरे-धीरे आश्रम का विस्तार किया। साध संगत की सुविधा के लिए देशभर में अलग-अलग स्थानों पर आश्रमों का निर्माण कराया। आप जी ने रूहानी सत्संगों के दौरान दुनिया को बताया कि मालिक एक है। ईश्वर, अल्लाह, वाहेगुरू, खुदा, ओम, हरि, गॉड आदि नाम एक ही परमात्मा के हैं जिस तक केवल गुरूमंत्र द्वारा ही पहुंचा जा सकता है। आप जी ने अंधविश्वास, नशों व सामाजिक बुराईयों के फेर में उलझे समाज को परमात्मा के सच्चे नाम से जोड़ा।
चोला बदलना
28 फरवरी 1960 को आप जी ने श्री जलालआणा साहिब के पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर डेरा सच्चा सौदा की गुरगद्दी पर विराजमान कर उन्हें रूहानियत व डेरा सच्चा सौदा की बागडोर सौंप दी। आप जी ने डेरा सच्चा सौदा के उज्जवल भविष्य के बारे अपने अनेक इलाही वचन फरमा कर 18 अप्रैल 1960 को चोला बदल लिया।
बढ़ता राम-नाम का कारवां
वर्ष 1960 में पूज्य सार्इं बेपरवाह मस्ताना जी महाराज के चोला बदलने के पश्चात डेरा सच्चा सौदा की दूसरी पातशाही पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने आप जी के हुक्मानुसार हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान व दिल्ली समेत देश के अनेक राज्यों में जा-जाकर परमात्मा के नाम का प्रचार किया और वर्तमान में पूज्य गुरू संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां पूरी दुनिया में राम नाम का डंका बजा रहे हैं।
पूजनीय सावण सिंह जी महाराज ने बनाया बागड़ का बादशाह
पूजनीय सावण सिंह जी महाराज ने पूज्य बेपरवाह मस्ताना जी महाराज की परमात्मा के प्रति असीम भक्ति,अटूट आस्था, प्यार व आस्था को देखते हुए हुक्म फरमाया कि ‘हे मस्ताना! तू बागड़ में जा, वहां जाकर राम नाम का डंका बजा। लोगों को सच्चाई का आभास करवा और रूहों को इस भवसागर से पार लंघाने का परोपकार कर’।
इस पर पूज्य बेपरवाह जी ने अपने मुर्शिद के चरणों में अर्ज की,‘सार्इं जी! ये जो शरीर है इतना पढ़ा लिखा नहीं है। कैसे ग्रंथ पढ़ेंगे, कैसे लोगों को समझाएंगे। असीं केवल सिंधी बोली ही जानते हंैं। इधर के लोग कैसे हमारी बोली समझेंगे।’ इस पर दाता सावण सिंह जी महाराज ने फरमाया, ‘तुझे किसी ग्रंथ की जरूरत नहीं, तेरी आवाज मालिक की आवाज होगी।
जो लोग सत्संग में आएंगे, वे राम का नाम लेंगे तो उनका बेड़ा पार हो जाएगा। इस तरह दाता सावण सिंह जी महाराज ने पूज्य बेपरवाह मस्ताना जी महाराज को बागड़ का बादशाह बनाकर वर्ष 1946 में राम नाम जपाने के लिए सरसा भेज दिया।
पूज्य बेपरवाह जी सरसा पहुंच गए और जल्द ही वह पावन दिन भी आ गया जब पूज्य शहंशाह जी ने शहर से दो कि.मी. दूर स्थित सरसा-भादरा मार्ग पर फावड़े का टक लगाकर डेरा बनाने का कार्य आरंभ कर दिया। वीरान इलाका, उबड़-खाबड़ जमीन, कहीं कांटेदार झाड़ियां तो कहीं गहरे गड्ढे। कुछ ही समय में यहां भव्य और सुंदर डेरा बनकर तैयार हो गया। आश्रम में लगाए गए आकर्षक चित्रकारी से सुसज्जित दरवाजे आज भी यहां की सुंदरता को चार चांद लगा रहे हैं।
133 तक पहुंचा मानवता भलाई कार्यों का कारवां
दुनिया के नक्शे पर अगर नजर दौड़ाई जाए तो ऐसा कोई हिस्सा नहीं जहां डेरा सच्चा सौदा के सेवादार मौजूद न हों। सैकड़ों से शुरू हुआ यह कारवां आज करोड़ों में तबदील हो चुका है। डेरा सच्चा सौदा के छह करोड़ से भी अधिक श्रद्धालु हैं, जो पूज्य मस्ताना जी महाराज के दिखाए मार्ग पर चलते हुए नेकी, भलाई के कार्यों में लगे हैं। पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के पावन दिशा-निर्देशन में आज मानवता भलाई कार्यों का कारवां 133 तक जा पहुंचा है।