देश अनूप हरियाणा-जहां दूध दही का खाणा

Desh Anup Haryana, Milk, Curd, Eaten

स्वतंत्रता प्राप्ति के प्रारंभिक दिनों में भारत में जितने राज्य थे, अब उससे बहुत अधिक हैं। कारण यह है कि अन्तराल में राज्यों का पुनर्गठन एवं नए राज्यों का निर्माण होता रहा है। इसी क्रम में एक नवम्बर 1966 को ‘हरियाणा’ नाम का नया राज्य अस्तित्व में आया। वर्तमान हरियाणा का अधिकांश तत्कालीन पंजाब का ही भाग था जो द्विभाषी था। पश्चिमी और उत्तरी पंजाब में पंजाबी भाषा बोली जाती थी तथा दक्षिणी और पूर्वी भाग में हिन्दी। भाषा के आधार पर ही इसके हिन्दी भाषी क्षेत्र को अलग कर इसमें समीपवर्ती देशी रियासतों को मिलाकर हरियाणा का गठन हुआ। देश का राजधानी क्षेत्र दिल्ली तीन ओर से हरियाणा से घिरा है। यही कारण है कि दिल्ली पर हरियाणवी संस्कृति की गहरी छाप है।

हरियाणा नाम से एक अलग राज्य का गठन यद्यपि 1966 में ही हुआ परन्तु हरियाणा नाम पुराना है। हरियाणा के गौरवशाली इतिहास का प्रारंभ वैदिक काल से माना जाता है। यहां की एक लम्बी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक परम्परा है। आर्यों का ब्रह्मर्षि देश यही क्षेत्र था। यह सुखधाम या स्वर्ग के नाम से भी जाना जाता था। हरियाणा नामकरण के पीछे तथ्य जो भी रहे हों पर लोग अपनी बुद्धि और विवेक से तथा लोक प्रचलित विचारों के आधारों पर इसका विवेचन अलग-अलग ढंग से करते हैं। कुछ का मानना है कि हरियाणा क्षेत्र में पहले घने जंगल थे और यह ‘हरि अरण्य’ कहलाता था। हिसार मण्डल के लोगों का मानना है कि उस वन का नाम ‘हरिया वन’ था। संभव है कि कालांतर में हरि अरण्य या हरिया वन हरियाणा के नाम से संबोधित किया जाने लगा हो।

कुछ भाषाविद हरियाणा को हरि और यान को युग्म मानते हैं और इसे हरि का यान यानी विष्णु के वाहन के अर्थ में लेते हैं। तथ्य जो भी हो पर यह सत्य है कि इस क्षेत्र से भगवान का संबंध रहा है। लोग मानते हैं कि इस क्षेत्र के वासी सुखी और सम्पन्न थे। चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी इस क्षेत्र की समृद्धि और संस्कृति की प्रशंसा की है। महाभारत का इतिहास प्रसिद्ध ‘कुरूक्षेत्र’ का मैदान हरियाणा में है। यहीं कौरवों और पाण्डवों का धर्मयुद्ध हुआ था। यहीं भगवान कृष्ण ने अर्जुन को गीतोपदेश भी दिया था। हरियाणा में ही हैं-पानीपत और तरावड़ी के मैदान। भारत के इतिहास को मोड़ देने वाले कई युद्धों का साक्षी पानीपत का मैदान रहा है। करोड़ों अग्रवालों के आदि पुरूष और अग्रवाल समाज के प्रवर्तक महाराज अग्रसेन की राजधानी रहा ‘अग्रोहा’ भी हरियाणा में है जो अग्रवालों का तीर्थ स्थल है। भारत के अंतिम हिन्दू सम्राट हर्षवर्धन ने ‘थानेसर’ को अपनी राजधानी बनाया था। हरियाणा वीरभूमि है। यहां के जवान मोर्चे से पीछे हटना नहीं जानते। इनके बारे में कहा जाता है हारया नर वो जाणिए

जो कहै हार की बात।।

यहां सैंकड़ों वर्षों तक योधेयों का राज्य रहा। उनकी वीरता की चर्चा से ही सिकन्दर की सेना में हताशा फैल गई थी और वह दिग्विजयी बनने का टूटा सपना साथ लिए वापिस लौट गया था। हरियाणा में जाटों का वर्चस्व रहा है और वही सत्ता के शीर्ष पर रहते आए हैं। हरियाणा ऐसा क्षेत्र है जहां सैनिक और किसान की परम्परा साथ-साथ चलती है। हरियाणा के लोगों ने जहां देश की सुरक्षा में अपना योगदान दिया है, वहीं कृषि के क्षेत्र में भी एक पहचान बनाई है। हरियाणवी लोगों के बारे में कहा जाता है कि ये एक साथ ही कर्मठ किसान और जीवंत जवान होते हैं। परिवार का एक बेटा खेत में तो दूसरा देश की सीमा की सुरक्षा में तैनात मिलेगा। ‘जय जवान, जय किसान’ के हमारे पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के नारे को हरियाणा ने आत्मसात कर लिया है।

हरियाणा में दूध दही की बहुतायत रही है और लोग पानी की जगह मठ्ठा पीते थे। लोगों का यह कहना है कि देश में दूध-दही की नदी बहती थी, शायद हरियाणा को देखकर ही कहा गया था। स्वस्थ शरीर के लिए स्वास्थ्यवर्धक पौष्टिक आहार अनिवार्य है। हरियाणावासी इस तथ्य को खूब अच्छी तरह से जानते थे। तभी तो कहा जाता था-देश अनूप एक हरियाणा, दूध दही, घृत का जहां खाणा।’ यह अलग बात है कि आज राजनेताओं की महत्त्वाकांक्षाओं के चलते यहां दूध की जगह शराब की नदियां बहने लगी हैं। राजपथों और जनपथों पर सर्वत्र ऐसी शराब की दुकानें अब आम बात है।

हरियाणा में उद्योग धंधों का भी तीव्र विकास हुआ है। अपनी रोजी-रोटी के लिए हरियाणा से बाहर गए और देश में सर्वत्र बसे हुए हरियाणावासी मारवाड़ी कहलाते हैं। उन्होंने उद्योग और व्यापार के क्षेत्र में नए आयाम स्थापित किए हैं। हरियाणा का नाम अब कृषि के साथ-साथ उद्योग के क्षेत्र में भी चर्चित है। हरियाणा की सांस्कृतिक परम्पराएं भी बहुत समृद्ध हैं। समय-समय पर पर्व त्यौहारों, मेलों, खेलों में इसके दर्शन हो सकते हैं। पर्यटन की दृष्टि से भी हरियाणा समृद्ध है। यहां 32 पर्यटक काम्पलेक्स और अनेकों पर्यटक केन्द्र हैं जिनमें प्रमुख हैं-हंस, सूरजकुण्ड, बड़खल लेक, डाबचिक, सोहना, पिंजौर, बारपेट, सुल्तानपुर आदि।

लेखक डॉ. मनोहरलाल गोयल