राष्ट्र तब और अब

Nation, India, History, Politics, Attack

इतिहास व राजनीति शास्त्र के छात्रों को पढ़ाया जाता है कि इतिहास अपने आपको दुहराता है और यह सही भी है, अन्यथा इतिहास व राजनीति शास्त्र के विद्वानों की खोज एक आरंभिक स्तर पर आकर समाप्त हो जाती और इस सच्चाई को पुष्ट करने के लिए आइए हम कुछ बिंदुओं पर भारत के परिप्रेक्ष्य में चर्चा करते हैं। भारत पर विदेशी आक्रमण के संदर्भ में विचार करें तब भी आक्रमणकारी सुदूरवर्ती क्षेत्रों से आए थे और आज भी ये दूरवर्ती क्षेत्रों से आ रहे हैं। ईराक, सीरिया ऐसे देशों से ही तब भी आक्रमणकारी भारत आए थे तो आज भी भारत को खतरे में डालने वाले आक्रमणकारी आतंकवाद का चोला पहनकर इन्हीं क्षेत्रों से आकर हमारे लिए खतरे की घण्टी बन रहे हैं।

तब के आक्रमणकारियों की दृष्टि भी भारत की धन-संपत्ति पर टिकी थी और आज के आतंकी भी काला धंधा चला रहे हैं। तब के आक्रमणकारी भारत से काफी सोना-चांदी वगैरह लूटकर अपने साथ ले गए थे और जिन्होंने यहां की गद्दी पर सवार होने में कामयाबी पाई थी, उन्होंने सोने-चांदी की अशर्फियों से खिलवाड़ किया, हीरा-मोती, मणि-माणिक्यों से दरबार सजाया और अय्याशी की। तब के आक्रमणकारियों ने भारत में लाखों लोगों का सरेआम कत्ल कर दिया था। फांसी पर चढ़ा दिया था और आज के आतंकवादियों ने भी सिर कलम करने में महारत हासिल की। दोनों की रक्त पिपासा भयंकर रही है। तब और अब- दोनों कालों के आततातियों व आतंकियों का मूल उद्देश्य साम्राज्यवाद ही है।

तब के आक्रमणकारियों का मुख्य उद्देश्य क्रमश: इस्लामी व ईसाई साम्राज्य की स्थापना करना था। अपना आधिपत्य स्थापित करना था। भारत की मूल सभ्यता व संस्कृति को नेस्तनाबूद कर देना था और आज के अन्तर्राष्ट्रीय इस्लामी आतंकवादी चाहते हैं कि भारत को एक इस्लामी राष्ट्र बना दिया जाए और शरिया कानून लागू कर दिया जाए और आज भी ईसाई मिशनरियां चाहती हैं कि भारत एक ईसाई राष्ट्र में तब्दील हो जाए। इस्लामी आतंकवादी हथियार का सहारा लेते हैं तो ईसाई मिशनरियां छद्म प्रेम-भाव का सहारा लेती हैं।

तब भी भारत की आजादी के लिए निरन्तर लड़ने वाले और अपने प्राणों की आहुति देकर भी देश के लिए मर-मिटने का संकल्प लेने वाले क्रान्तिकारी व देशभक्त थे तो आज की तारीख में भी भारत में देश प्रेमियों व देश के लिए मर-मिटने वाले कम नहीं हैं। देशभक्तों की फेहरिस्त काफी लंबी है और इसी वजह से आतंकवादियों को नाकों चने चबाने पड़ रहे हैं। जब सिकंदर का भारत-आक्रमण हुआ था, तब कमजोर क्षेत्रीय शासकों ने उस विदेशी का स्वागत किया था। देशप्रेमी महाराणा प्रताप को अकेले छोड़कर अकबर का लोहा मानने वाले देशद्रोही के सिवाय कुछ और नहीं हो सकते और आज भी ऐसे देशद्रोही हैं। आतंकवादी संगठनों से पैसा लेकर देश के अन्दर त्रासदी खड़ी करने जैसा कार्य करने वाले देशद्रोही आए दिन सामने आते हैं।

तब भी रसूखदार थे और आज भी रसूखदार हैं। तब के जमींदार गरीब, पीड़ित, असहाय व मजबूर महिलाओं का शारीरिक व मानसिक शोषण करते थे तो आज के रसूखदार माफिया के रूप में गरीब, पीड़ित, असहाय व मजबूर महिलाओं का शारीरिक व मानसिक शोषण करते हैं। तब भी भ्रष्टाचार था, आज भी भ्रष्टाचार है। तब भारतीयों के एक छोटे से हिस्से में भी भ्रष्टाचार व्याप्त था। पैसा लेकर, पुलिस व सेना में रहकर भ्रष्ट भारतीय अधिकारी व कर्मचारी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के रास्ते में ही गड्ढे खोदते थे और आज भी भ्रष्ट लोग अपने ही देश की गरिमा व मर्यादा को ताक पर रखकर लाखों-करोड़ों की संपत्ति बनाते हैं। तब भी अमीर-गरीब थे, आज भी अमीर-गरीब हैं। हाईटैक सभ्यता में इस शैतानिक काम पर विराम नहीं लग पाया और इतिहास के इस दोहराव की स्थिति में अब भारतीय जनमानस में यह बात गहराई में बैठ गई है कि चाहे कुछ भी हो जाए, अब देश की स्वतंत्रता व संप्रभुता को खोने नहीं दिया जाएगा।

-आर. सूर्य कुमारी