यह सुखद है कि यूरोपीय संघ से भारत का बहुआयामी संबंध और सामरिक भागीदारी लगातार प्रगाढ़ हो रहा है। नई दिल्ली में संपन्न शिखर बैठक में भारत और यूरोपीय संघ के बीच आतंकवाद समेत मुंबई हमलों के मास्टरमाइंड हाफिज सईद, लखवी और दाऊद इब्राहिम जैसे वैश्विक आतंकियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई पर सहमति एक बड़ी उपलब्धि है।
शिखर बैठक में भारत और यूरोपीय संघ के बीच सौर गठबंधन निवेश, बेंगलुरु मेट्रो निवेश और विज्ञान अनुसंधान विनिमय समेत कई अन्य अहम समझौतों पर मुहर लगी है। यूरोपीय यूनियन ने भारत की समुद्री सीमा की रक्षा की वचनबद्घता के साथ भविष्य में सैन्य सहयोग बढ़ाने की भी हामी भरी है। गौरतलब है कि यूरोपीय संघ भारत का सबसे बड़ा व्यापार साझीदार है।
वह भारत को अन्य विश्व शक्तियों की तरह एक क्षेत्रीय और वैश्विक महाशक्ति के रुप में महत्व देता है जिसकी वजह से दोनों के बीच व्यापारिक संबंध परवान चढ़ रहा है। उल्लेखनीय है कि साल 2016 में यूरोपीयन यूनियन के साथ करीब 88 अरब डॉलर का व्यापार हुआ। इसके अलावा यूरोपीय यूनियन भारत के निर्यात का भी सबसे बड़ा केंद्र है।
अभी गत वर्ष ही बेल्जियम की राजधानी ब्रसेल्स में संपन्न 13 वां भारत-यूरोपीय शिखर बैठक में भारत और यूरोपीय संघ के बीच रणनीतिक साझेदारी को नया आयाम मिला और व्यापार, उर्जा, सुरक्षा और वाणिज्य के मसले पर दोनों के बीच उल्लेखनीय प्रगति हुई। इस बैठक में आतंकवाद के मसले पर भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सुझाव को गंभीरता से लिया गया और आतंकवाद के खिलाफ मिलकर लड़ने की प्रतिबद्घता जाहिर की गयी।
लेकिन समझ से परे है कि एफटीए पर बार-बार वार्ता का संकेत दिए जाने के बावजूद भी इस दिशा में ठोस पहल क्यों नहीं हो रही है। जबकि बदलते वैश्विक आर्थिक परिदृश्य में इसे मूर्त रुप दिया जाना बहुत आवश्यक है। गौर करें तो एफटीए पर सहमति न बनना दोनों पक्षों के लिए नुकसानदायक है। उल्लेखनीय है कि कई तरह की बाधाओं ने इन वार्ताओं को दस वर्षों से रोक रखा है।
अगर इस दिशा में रचनात्मक पहल होती तो एफटीए लागू होता और वस्तुओं पर शुल्क काफी हद तक कम होता। भारत और यूरोपीय संघ के इतिहास में जाएं तो 1963 में भारत ने यूरोपीय आर्थिक समुदाय के साथ कुटनीतिक संबंध स्थापित किए और 1973 में यूरोपीय आर्थिक समुदाय द्वारा वाणिज्य सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किया।
वर्ष 2000 से भारत और यूरोपीय संघ एकदूसरे के काफी निकट आ गए। भारत और यूरोपीय संघ के बीच निकटता अनायास नहीं है। भारत और यूरोपीय संघ दोनों लोकतंत्र में विश्वास करते हैं। दोनों क्षेत्र आतंकवाद से ग्रसित हैं। दोनों बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था के समर्थक और एकध्रवीय व्यवस्था के विरुद्घ हैं।
इसके अलावा भारत एक बड़ा बाजार है और यहां पूंजी निवेश और तकनीकी की आवश्यकता है। एक ओर भारत को विज्ञान, संचार, महासागरीय शोध, अंतरिक्ष व परमाणु क्षेत्र इत्यादि में यूरोपीय संघ के मदद की दरकार है वहीं वैश्विक स्तर पर जन्म ले रही समस्याओं जैसे पर्यावरण समस्या, लिंग असमानता, मानवाधिकार हनन व सतत विकास इत्यादि के समाधान के लिए यूरोपीय संघ को भारत की भी जरुरत है। मौजुदा समय में यूरोपिय संघ के सदस्य देशों की संख्या 28 है।
यूरोपीय समुदाय को कई नामों से पुकारा जाता है जैसे-यूरोपिय आर्थिक समुदाय, साझा बाजार, यूरोपिय साझा बाजार, और यूरोपिय आर्थिक सहयोग संगठन इत्यादि। यूरोपिय संघ सदस्य राष्ट्रों को एकल बाजार के रुप में मान्यता देता है एवं इसके कानून सभी सदस्य राष्ट्रों पर लागू होता है। यूरोपिय संघ में तकरीबन 500 मिलियन नागरिक हैं एवं यह विश्व के सकल घरेलू उत्पाद का 31 फीसद योगदानकर्ता है।
यूरोपिय संघ समूह आठ संयुक्त राष्ट्र संघ तथा विश्व व्यापार संगठन में अपने सदस्य देशों का प्रतिनिधित्व करता है। यूरोपिय संघ के 21 देश नाटो के भी सदस्य हैं। 28 सदस्यीय यूरोपिय संघ वैश्विक अर्थव्यवस्था की प्रमुख ताकत हैं और साथ ही सेवा और सामान का दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक एवं आयातक भी। यूरोपीय संघ भारत के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के विशालतम स्रोतों में से है।
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए यूरोपीय संघ के सर्वाधिक महत्वपूर्ण देश ब्रिटेन, जर्मनी, नीदरलैंड और इनके बाद फ्रांस, जर्मनी और बेल्जियम है। शीतयुद्घोत्तर युग में यूरोप में राजनीतिक-कुटनीतिक और आर्थिक मोर्चे पर कई तरह के बदलाव हुए जिन्होंने भारत की घरेलू और विदेश नीति को भी प्रभावित किया। नई दिल्ली में शिखर बैठक में आतंकवाद समेत कई आर्थिक-व्यापारिक मसलों पर सहमति जताकर भारत और यूरोपीय संघ ने अपने प्रगाढ़ होते रिश्ते को एक नई ऊंचाई दी है।
अरविंद जयतिलक