एक रूसी उपग्रह के मलवे और एक पुराने भारतीय रॉकेट के अवशेषों ने एक बार फिर अंतर्राष्टÑीय स्पेस स्टेशन की जान सांसत में डाल दी थी। अंतरिक्ष में छाया कचरा इससे पहले भी नासा और शेष विश्व के वैज्ञानिकों की नींदे उड़ाता रहा है। इस बात का अंदेशा बराबर जताया जाता रहा है कि अगर अंतरिक्ष के इस कचरे का निस्तारण नहीं किया गया तो आने वाले दिनों में अंतरिक्ष मलवे का ढेर बन जाएगा। नासा ने मलवे के ऐसे 20 हजार से भी ज्यादा टुकड़ों की सूची बना रखी है, जिनका आकार एक सॉफ्ट बॉल से भी बड़ा है और यह तेजी से अंतरिक्ष में चक्कर काट रहे हैं।
अमरीकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के मुताबिक मलवे के 5 लाख से अधिक टुकड़े या ‘स्पेस जंक’ पृथ्वी के कक्ष में 17500 मील प्रति घंटे की रफ्तार से घूम रहा है। यह वह मलवा है जिसका छोटा-सा टुकड़ा भी किसी सैटेलाइट, अंतरिक्ष यान को क्षतिग्रस्त करने के लिए पर्याप्त है। यहां तक कि 100 अरब डॉलर की लागत से बने अंतर्राष्टÑीय स्पेस स्टेशन को भी इस मलवे से बच कर निकलना होता है। अंतरिक्ष वैज्ञानिक चेतावनी देते आए हैं कि अंतरिक्ष में मलवा खतरनाक स्तर तक पहुंच गया है और अगर इसे हटाया नहीं गया तो इससे भविष्य में अंतरिक्ष यान और उपयोगी उपग्रह नष्ट हो सकते हैं और अंतरिक्ष अभियान पर रोक लग सकती है।
वहीं अमरीकी जियोलॉजिकल सर्वे के विशेषज्ञों का दावा है कि अंतरिक्ष से हर वर्ष एक हजार टन जंक पृथ्वी पर गिरता है, जिसकी ठीक से पहचान नहीं हो पा रही है। अंतरिक्ष का यह कचरा प्राकृतिक भी हो सकता है और मानव निर्मित भी। बेकार अंतरिक्ष यान, नष्ट हो चुके उपग्रह, कलपुर्जे अंतरिक्ष मिशन से संबंधित छोड़ी गई मानव निर्मित वस्तुएं ही कचरे के रूप में अंतरिक्ष में मंडराती है। अंतरिक्ष में मलवा बढ़ने की छोटी-मोटी घटनाओं से परे कुछ घटनाएं ऐसी हैं जिन्होंने अंतरिक्ष के कचरे का अंबार लगा दिया है।
2007 में चीन ने एक साथ बड़ी संख्या में अंतरिक्ष में कबाड़ जमा कर दिया था। चीन ने एंटी सेटेलाइट हथियारों के टेस्ट के दौरान एक मिसाइल के जरिए एक पुराने पड़ चुके मौसम के उपग्रह को डेढ़ लाख टुकड़ों में तोड़ दिया था जिनमें से हर टुकड़ा एक सेंटीमीटर के बराबर है। इसके बाद 2009 में 10 फरवरी को एक बेकार रूसी उपग्रह की सक्रिय अमरीकी इरीडियम कॉमर्शियल सेटेलाइट से हुई भिड़ंत ने दो हजार टुकड़ों का नया कचरा पैदा कर दिया जबकि इनसे पहले 1996 में भी एक फ्रांसीसी उपग्रह की अपने ही एक पुराने रॉकेट के अवशेषों से हुई टक्कर ने भी काफी मलवा जमा कर दिया था।
अंतरिक्ष के कचरे से न केवल अंतरिक्ष अभियान मुसीबत में है, बल्कि धरती पर यह कचरा आफत ला सकता है। अंतरिक्ष में मलवा बन चुके सेटेलाइट धरती पर आकर गिर सकते हैं। पिछले वर्ष 6 टन वजनी यूआरए सैटेलाइट पृथ्वी पर गिरा था जबकि इससे पहले 1989 में 100 टन वजनी सेटेलाइट ‘स्काइलैब’ हिंद महासागर में और 2001 में रूस का स्पेस स्टेशन ‘मीर’ दक्षिणी महासागर में आ गिरा था। हालांकि अंतरिक्ष अभियान के इतिहास में अब तक इस कचरे से कोई मानवीय क्षति होने के समाचार नहीं मिले हैं और अधिकांश कचरा धरती पर पहुंचने से पहले ही जल जाता है लेकिन जान-माल की हानि की आशंकाआेंं से इंकार नहीं किया जा सकता।
हाल में स्विट्जरलैंड के वैज्ञानिकों ने पृथ्वी के चारों ओर चक्कर काट रहे अंतरिक्ष कबाड़ के टुकड़ों को पकड़कर उन्हें पृथ्वी के वायुमंडल में फिर से फेंकने के लिए ‘क्लीनस्पेस वन’ नामक उपग्रह के निर्माण की भी घोषणा की है। इसका निर्माण स्विस स्पेस सेंटर द्वारा किया जा रहा है जिस पर करीब 1.1 करोड़ डॉलर का खर्च आएगा। इसे 3 से 5 साल के अंदर लांच किया जाएगा। ईपीएफएल के अनुसार 10 सेंटीमीटर से बड़े आकार के 16 हजार और इससे छोटे लाखों अवशेष पृथ्वी के आसपास चक्कर लगा रहे हैं। इनकी गति कई सौ किलोमीटर प्रति सेकंड है। इस सफाई उपग्रह को सबसे पहले दो स्विस उपग्रहों को पकड़ने के लिए भेजा जाएगा जो 2009 और 2010 में छोड़े गए थे और अब निष्क्रिय हैं।
-लेखक नरेंद्र देवांगन